भाई राजीव दीक्षित की लाश पर खड़ा है पतांजलि के 6 हजार करोड़ का कारोबार ?? । जरूर पढ़ें ।

6,00,00,00,00,000 ( छ:हजार करोड़ ) के व्यवसाय का प्रति वर्ष दावा करने वाले योगगुरु बाबा रामदेव ने साल 2004 में अपनी वार्षिक विक्रय (एक वर्ष की बिक्री) मात्र 6,73,000 (छह लाख 73 हजार) रुपये बतलाया था जिस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर भी दिया था !

यह वही वर्ष है जब बाबा रामदेव की पहली भेंट फरवरी 2004 में श्री राजीव दीक्षित से महाराष्ट्र में हुई थी उस समय राजीव दीक्षित इलाहाबाद मे स्थित स्वदेशी के लिए संघर्ष कर रहे “आजादी बचाओ आंदोलन” के प्रवक्ता थे जिसके संस्थापक “डा बनवारी लाल शर्मा” थे, और बनवारी लाल शर्मा जो कि इलाहाबाद विश्व विध्यालय के गणित के प्राध्यापक थे |

उस समय श्री राजीव जी की यह इच्छा थी कि बाबा रामदेव के योग शिविरों में योग साहित्य के साथ-साथ “आजादी बचाओ आंदोलन” का भी साहित्य रखा जाये | जिससे देश के लोगो मे देश की वर्तमान समस्याओ को लेकर जागृति आ सके ।

तब बाबा रामदेव ने राजीव भाई से कहा अपने साहित्य के साथ “आजादी बचाओ आंदोलन” का साहित्य रखने के लिए हम कमीशन भी लेंगे । तो कमीशन के आधार पर हुए समझौते के तहत स्वामी रामदेव के योग शिविरों में “आजादी बचाओ आंदोलन” का साहित्य रखा जाने लगा किंतु यह सिलसिला ज्यादा नहीं चला !

क्योंकि स्वामी रामदेव के लोगों का आरोप था कि “आजादी बचाओ आंदोलन” द्वारा उन्हें निर्धारित कमीशन नहीं दिया जाता है जबकि “आजादी बचाओ आंदोलन” के स्वयंसेवकों का यह कहना था की आंदोलन के साहित्य को स्वामी रामदेव के कार्यकर्ता अपना साहित्य बताकर कर समाज को भ्रमित करते हैं
अर्थात रामदेव के लोग साहित्य रखने के लिए एक ओर कमीशन भी खा रहे है
ओर दूसरी और साहित्य को भी अपना बता रहे हैं ।

अतः यह सिलसिला 1 वर्ष के अन्दर ही दिसंबर 2004 में समाप्त हो गया किन्तु राजीव दीक्षित जी का संपर्क रामदेव जी से यथावत बना रहा | समय-समय पर यात्राओं के दौरान राजीव दीक्षित जी की चर्चा स्वामी रामदेव जी से व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दे पर हुआ करती थी रामदेव जी को राजीव जी की बात से यह समझ में आया कि व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दे का व्यवसायीकरण किया जाए तो यह भी कमाई का एक अच्छा जरिया बन सकता है

अत: राजीव जी के ज्ञान से प्रभावित होकर रामदेव जी ने उन्हें अपने योग मंचों पर वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित करना प्रारंभ कर दिया | व्यवस्था परिवर्तन की लालसा में राजीव जी ने एक इतने अच्छे प्लेटफार्म को शीघ्र ही स्वीकार कर लिया और जो भी ज्ञान उनके पास था वह उन्होंने रामदेव जी के मंचों से समाज को देना प्रारंभ कर दिया |

राजीव जी की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देख कर रामदेव जी के मन में यह विचार आया कि यह यदि राजीव जी के विचारों को एक अलग प्लेटफॉर्म बनाकर राजनीतिक मंच के रुप में प्रयोग किया जाए तो बहुत संभावना है कि भविष्य में भारत का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का चुनाव भी मेरे कार्यालय से होने लगेगा इसी महत्वाकांक्षी योजना को लेकर स्वामी रामदेव जी ने वर्ष 2008 में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की जिसमेँ राजीव दीक्षित जी को राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया | जिसका रजिस्ट्रेशन 5 जनवरी 2009 को दिल्ली मे करवाया गया ।

राजीव दीक्षित जी का उद्देश्य संगठन के माध्यम से वर्ष 2014 मे देश को एक नया राजनीतिक विकल्प देना था जो भारत मे चल रही अँग्रेजी व्यवस्था मे परिवर्तन कर सके ,देश को स्वदेशी की राह पर आगे बढ़ा सके ,विदेशो मे पड़ा देश का काला धन वापस ला सके ।

इस उद्देशय की पूर्ति के लिए देशभर मे से 1100 रु प्रति सदस्य के नाम पर 3 लाख लोगो को जोड़ा गया जिसमें 1- 1 लाख रु वाले भी बहुत से आजीवन भी सदस्य थे लगभग 50 करोड़ से अधिक की धनराशि एकत्रित की गई जिसे 30 नवंबर 2010 को राजीव भाई की रहस्यमय मृत्यु के बाद बाबा रामदेव ने अपनी फैक्ट्रीयों मे लगा दिया और 4 जून 2011 मे दिल्ली मे हुए आंदोलन मे डंडे खाने के बाद बाबा ने ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट’ को पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया और आंदोलन के लिए एकत्रित किये गये करोड़ो रु मे से एक भी पैसे का हिसाब आज तक देशवासियों को नहीं दिया , । वर्तमान मे भारत स्वाभिमान के नाम का कोई भी आंदोलन सक्रिय नहीं है ।

इस तरह बाबा रामदेव ने साल 2004 में अपने व्यवसाय की वार्षिक विक्रय मात्र 6,73,000 (छह लाख 73 हजार) रुपये बतलाया था वह आज राजीव भाई के सहयोग से उनकी रहस्यमय मृत्यु के बाद स्वदेशी का नारा लगा कर 6,00,00,00,00,000 ( छ:हजार करोड़ ) रुपय का प्रति वर्ष हो गया है जो अब राजीव भाई का नाम भी नहीं लेते | कोई इनसे इनके काले धन की जानकारी क्यों नहीं मांगता है ?

कहीं यही धन तो राजीव भाई की ह्त्या कारण नहीं है ??

योगेश मिश्र
ज्योतिषाचार्य,संवैधानिक शोधकर्ता एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)
संपर्क – 9044414408

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …