आधार कार्ड भारत के गुलामों का नया पहचान पत्र तो नहीं ! Yogesh Mishra

वैसे कहने को तो हम 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गए लेकिन वर्ष 1992 में मैंने पहली बार भारत के आम आवाम को यह सूचित किया था कि भारत के नागरिकों के अप्रत्यक्ष गुलामी का दस्तावेज 69 माउंटबैटन पेपर के नाम से 13 अगस्त 1947 को ही भारत के तत्कालीन राजनेताओं द्वारा लिख दिया गया था | बाद को मेरे इसी शोध को मेरे मित्र स्वर्गीय राजीव दीक्षित में विभिन्न मचों पर विभिन्न व्याख्यानों के माध्यम से बतलाया |

सुप्रीम कोर्ट के लाख मना करने के बाद भी भारत की राजसत्ता ने भारत के प्रत्येक नागरिकों के दसों उंगलियों के निशान और आंखों के रेटीना की डिजाइन स्कैन करके आधार कार्ड के नाम पर संग्रहित करवाने हेतु ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी कि जो व्यक्ति अपने दसों उंगलियों के निशान या आंखों के रेटिना की डिजाइन आधार कार्ड के नाम पर संग्रहित नहीं करवाता वह न तो खाना बनाने के लिए गैस पा सकता है और न ही घर चलाने के लिए अपनी ही मेहनत की कमाई का पैसा अपने ही बैंक खाते से निकाल सकता है |

कहने को तो आधार कार्ड कोई विधिक दस्तावेज नहीं है (क्योंकि विधिक दस्तावेजों पर मुकदमें फाईल किये जा सकते हैं |) किंतु फिर भी सभी विधिक दस्तावेजों ( ड्राइविंग लाइसेंस, चुनाव पहचान पत्र, जीवन जीवन बीमा पॉलिसी, आदि) से अधिक महत्वपूर्ण है और राष्ट्रप्रेमी सत्ताधारीयों की पुरजोर कोशिश है कि हिंदुस्तान के अंदर जन्म लेने वाले बच्चे से लेकर मृत्यु के इंतजार में बैठे हुए प्रत्येक व्यक्ति तक कोई भी व्यक्ति अपने दसों उंगलियों के निशान और आंख की रेटिना की डिजाइन संग्रहित करवाने में छूट न जाए |

प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या हमारी सुरक्षा प्रणाली कितनी मजबूत है कि हम इस पर विश्वास करके अपनी सारी स्थाई पहचान, जिस पर आश्रित हमारी चल-अचल संपत्ति की समस्त जानकारी और अपनी व्यक्तिगत जीवन की सुरक्षा को सुरक्षित रख सके | यदि ऐसा नहीं है तो सत्ता में बैठे हुए लोगों को आखिरकार यह हड़ा-बड़ी क्यों है कि भारत के प्रत्येक नागरिक के दसों उंगलियों के निशान और आंखों की रेटिना की डिजाइन आधार कार्ड के नाम पर संग्रहित करा दी जाए |

मुझे व्यक्तिगत रुप से ऐसा महसूस करता हूँ कि भारत की गुलामी का दस्तावेज जो 69 माउंटबैटन पेपर के नाम से जाना जाता है जिस दस्तावेज के आधार पर भारत की आजादी टिकी हुई है उस तथाकथित आजाद देश में भारत के आम नागरिकों की गुलामी का नया इतिहास लिखना शुरु कर दिया गया है इस विषय वस्तु को स्पष्ट किया जाना चाहिए अन्यथा यदि इसमें कोई संदेह है तो हम ही नहीं हमारी आने वाली पीढ़ियां भी विश्व सत्ता की गुलाम होंगी |

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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