आखिर लोन लेकर उच्च शिक्षा की आवश्यकता ही क्या है ? : Yogesh Mishra

वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति पाइप लाइन की तरह है ! जिसमें बच्चा लोअर के.जी. से डाला जाता है और वह हाई स्कूल में उसी पाइप लाइन में रेंगते-रेंगते बाहर निकलता है ! इसके बाद उसे पुनः किसी भिन्न पाइप लाइन में डाल दिया जाता है जैसे साइंस साइड, आर्ट साइड, कॉमर्स साइट आदि आदि !

और बच्चा फिर उसी पाइप लाइन में 2 साल रेंगता रहता है ! इंटर के बाद फिर उच्च शिक्षा के लिये भयंकर भ्रम और संघर्ष शुरु होता है ! जिस संघर्ष में विजय दिलाने के नाम पर भारत में 5 लाख से अधिक कोचिंग इंस्टिट्यूट लोगों का अरबों रुपये निगल जाती हैं ! लेकिन परिणाम दशमलव के प्रतिशत में ही प्राप्त होता है ! शेष सभी माता-पिता का पैसा उच्च शिक्षा की प्रतियोगिता में दुर्रव्यवस्था को बलि चढ़ जाता है !

इसके बाद जिन बच्चों का सिलेक्शन नहीं होता है ! उनमें से कुछ आत्महत्या कर लेते हैं ! कुछ के माता-पिता डोनेशन रूपी घूस देकर अच्छे शैक्षिक संस्थाओं में बच्चे के प्रवेश का प्रयास करते हैं ! जहां पर शिक्षण संस्थाओं द्वारा अनाप-शनाप डिमांड की जाती है ! जो माता-पिता धूर्तता और बेईमानी से धन कमाये होते हैं ! वह शिक्षण संस्थानों की मांग पूरी कर देते हैं और जो माता पिता सीधे-साधे ईमानदारी के मार्ग पर चल कर जीवन यापन करते हैं ! वह इन धन भक्षी शिक्षण संस्थाओं की भूख को मिटाने के लिये अपने समस्त जीवन की पूंजी ले जाकर इन शिक्षा के नाम पर व्यवसाय करने वाले धन के दरिंदो की आर्थिक हवस पूरी करते हैं !

इनमें कुछ माता-पिता ऐसे भी होते हैं ! जिनके पास इतनी संपत्ति नहीं होती है कि वह इन आर्थिक वहशी दरिंदों की लूट पूरी कर सकें तो वह लोग शिक्षा के नाम पर चलती इस दुर्रव्यवस्था में अपने बच्चे को उच्च शिक्षा देने के लिये अपनी संपत्ति गिरवी रखकर लोन लेते हैं ! तब अपने बच्चे का प्रवेश इन शिक्षा का तथाकथित मंदिर चलाने वाले डकैतों के संस्थानों में करवा पाते हैं !

भैर हाल मेरा विषय इससे अलग है ! मैं यह कहना चाहता हूं कि जब इंटर के बाद ही व्यक्ति में पढ़ने लिखने की समझ पैदा हो जाती है और व्यक्ति का यह निश्चय होता है कि उसे भविष्य में किसी की नौकरी नहीं करनी है ! अपना निजी व्यापार, व्यवसाय या प्रतिष्ठान आदि चलाना है तो उस स्थिति में उच्च शिक्षा के लिये इतनी मारामारी क्यों ?

सरकार की सभी योजनाओं में कम से कम स्नातक अर्थात ग्रेजुएट होने की आवश्यकता पर ही अधिक बल क्यों दिया जाता है ! जब सरकार के पास कोई रोजगार का अवसर ही नहीं उपलब्ध है तो जो व्यक्ति इंटर के बाद अपना निजी व्यापार व्यवसाय करना चाहता है ! उसको अनावश्यक 4 वर्ष उच्च शिक्षा में बर्बाद करने के लिये योजनाओं का लाभ उठाने के नाम पर बाध्य क्यों किया जाता है !

अत: इन 4 वर्षों में उच्च शिक्षा के नाम पर व्यक्ति जो पैसा धन के हवसी शिक्षण संस्थानों में बर्बाद करता है वही पैसा उस बच्चे के लिये नये व्यवसाय को शुरू करने की पूंजी हो सकती है ! लेकिन मात्र अंधी प्रतिस्पर्धा और सरकार की अस्पष्ट और अव्यावहारिक नीतियों के कारण आज समाज उच्च शिक्षा के नाम पर ठगा जा रहा है !

जबकि यह सिद्ध है कि फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, जैसे बड़े बड़े प्रतिष्ठानों के मालिक ग्रजुएट नहीं हैं और पूरे विश्व में सफलता पूर्वक अपना व्यवसाय चला रहे हैं !

जिन देशों को आज हम आदर्श के रूप में देखते हैं ! चाहे वह जापान हो, चीन हो या अमेरिका हो कहीं भी अपने निजी व्यापार व्यवसाय को आरंभ करने के लिये या सरकारी मदद हेतु किसी भी प्रकार के उच्च शिक्षा की कोई अनिवार्यता नहीं है ! अतः इन सभी देशों में जिन लोगों को किसी विशेष विधा में पारंगत होना होता है ! वहाँ मात्र वही लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये आगे पढ़ते हैं अन्यथा जनसामान्य इंटर की पढ़ाई के बाद अपने आसपास के ही किसी योग्य गुरु के सानिध्य में अपना व्यवसायिक हुनर सीखने लगते हैं और जितना समय व्यक्ति ग्रेजुएट होने में लगाता है ! उतने समय में ही इन विकसित देशों के बच्चे एक सफल उद्यमी बनकर विश्व के साथ अपना व्यापार करने लगते हैं !

अतः मेरी कहने का तात्पर्य है कि यदि शैक्षिक योग्यता पर आधारित व्यवसाय के क्षेत्र में व्यक्ति को जाना हो ! जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, अधिवक्ता, प्रशासनिक सेवा या शिक्षा जगत आदि ! तब ही व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिये ! स्नातक आदि पढ़ना चाहिये ! अन्यथा व्यक्ति को यदि अपना निजी व्यापार व्यवसाय करना है तो इंटर के बाद ही अपने व्यापार व्यवसाय की शुरुआत कर देना चाहिये और सरकार को भी ऐसी नीतियां बनानी चाहिये कि जिसमें किसी भी व्यापार व्यवसाय करने वाले के लिये जो सुविधाएं सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही हैं ! उसमें स्नातक होने की अनिवार्यता न हो !

अगर उच्च शिक्षा से ही सब कुछ होता है तो आपने देखा होगा कि हमारे यहां देश को चलाने वाले ज्यादातर जनप्रतिनिधि व्यावहारिक ज्ञान तो रखते हैं लेकिन इनमें वर्तमान जगत की उच्च शैक्षिक योग्यता जैसी कोई चीज नहीं होती है और जो लोग वर्तमान जगत की शैक्षिक योग्यता के साथ राजनीति में आते हैं ! वह प्राय: उतने कुटिल और जटिल नहीं हो पाते हैं ! जितना व्यवहारिक राजनीति में होना अनिवार्य होता है ! इसीलिये वह लोग राजनीति के क्षेत्र में शैक्षिक योग्यता रखते हुये भी जीवन भर संघर्ष करने के बाद कभी भी देश के कर्णधार नेता नहीं बन पाते हैं !

भारतीय राजनीति में इतिहास गवाह है कि इसमें लंबे समय तक सफल राजनीति करने वाले लोग प्राय: अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे ! पर उन्हें समाज के साथ संबंध व्यवहार रखने का व्यावहारिक ज्ञान जरुर था ! उन्होंने कभी भी अपनी डिग्री और काबिलियत के आधार पर राजनीति में कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं की है !

अतः भारत के नीति निर्माताओं से मेरा यह अनुरोध है कि उच्च शिक्षा के नाम पर हो रही खुलेआम डकैती को अपने राजनीतिक चंदे का मोह त्याग कर तत्काल बंद करें ! अन्यथा आने वाले युग में व्यक्ति के पास डिग्रियां तो बहुत होंगी लेकिन हुनर कोई भी नहीं होगा ! जो भारत के सर्वनाश का कारण बनेगा !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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