बताया गया है कि लोकसभा में किसानों के हितों में तीन बिल (विधेयक) पास हुये हैं ! लेकिन इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल केंद्रीय मंत्री श्री हरसिमरत कौर बादल ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया है ! और अब भी सम्पूर्ण भारत के लाखों किसान पिछले 8 महीने से दिल्ली की सीमा पर इस नये कृषि कानूनों के विरोध में धरना दिये बैठे हैं !
आखिर कार क्या है इन कृषि बिलों के अन्दर ! इस पर क्यों चर्चा की आवश्यकता है ! इस पर विचार करते हैं !
पहला कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
इसके मुताबिक अब किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं ! बिना किसी रुकावट के दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते हैं ! इसका मतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित ए.पी.एम.सी. (APMC) के दायरे से बाहर भी फसलों की खरीद-बिक्री संभव हो सकेगी ! साथ ही फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा ! ऑनलाइन बिक्री की भी अनुमति होगी ! इससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे ! ऐसा सरकार का कहना है !
दूसरा मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020
इसको देश भर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है ! फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी ! किसान कंपनियों को अपनी कीमत पर फसल बेचेंगे ! इससे किसानों की आय बढ़ेगी और बिचौलिया राज खत्म होगा ! ऐसा बतलाया जा रहा है !
तीसरा आवश्यक वस्तु संशोधन बिल
आवश्यक वस्तु अधिनियम जिसे 1955 में बनाया गया था ! अब उसमें संशोधन कर खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है ! बहुत जरूरी होने पर ही इन पर स्टॉक लिमिट लगाई जायेगी ! ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियां शामिल हैं ! प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिये ऐसी कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी ! उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा !
लेकिन इस कृषि बिल के पीछे की मंशा पर भी विचार होना चाहिये ! इस कृषि बिल की वजह से किसान और व्यापारियों को यह आशंका है कि इन विधेयकों से न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित ए.पी.एम.सी. मंडियां खत्म हो जायेंगी ! मंडियों में फसलों की खरीद सरकार बंद कर देगी और जिससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किसानों का शोषण करेंगी ! इस आशंका का आधार यह है कि अभी तक कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में इस संबंध में कोई व्यवहारिक व्याख्या नहीं की गयी है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी, वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे के भाव पर होगी या नहीं !
दूसरा देश भर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के पक्ष में कानून बन जाने से किसान अपनी सुविधा के अनुसार कृषि करने के लिये स्वतंत्र नहीं रहेगा ! बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां सविदा के उपरांत स्वयं ही किसान को अपनी रूचि के अनुसार बीज देंगी और किसान को उस को ही उगाना पड़ेगा !
यदि किसान संविदा कंपनी के साथ शर्तों के अनुसार कार्य नहीं करेगा तो किसान को जेल में बंद कर दिया जायेगा और हानि के आधार पर उसकी संपत्ति को जप्त करके उसे बहुराष्ट्रीय कंपनी को सौंप दिया जायेगा ! इसकी आशंका किसानों को बराबर सता रही है !
तीसरा कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दिये जाने के कारण बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने यहां आवश्यक खाद्यान्न सामग्री का भंडारण कर लेंगी ! जिस पर न तो किसान का हक होगा और न ही भारत के आम आवाम का ! उस स्थिति में किसान के पैदा किये गये अनाज को बहुत ही सस्ते दामों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां खरीद लेंगी और जब पुन: कृषि को बीज आवश्यकता होगी ! तो वही किसानों का अनाज उन्हीं किसानों को कई गुना अधिक मूल्य पर बीज के रूप में उपलब्ध करवा जायेगा और अकाल आदि के समय लाभ प्राप्त करने की मंशा से खाद्यान्न के अभाव में यह बड़ी-बड़ी कंपनियां समाज का शोषण करेंगी !
यह सभी विषय विचार करने योग्य हैं ! इनमें से किसी भी विषय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि आज यदि हम इन विषयों को नजरअंदाज कर देंगे, तो कल यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिये समस्या का कारण बनेगी ! अपने इसी अधिकार के लिये आज अस्सी लाख किसान दिल्ली के बॉर्डर पर बैठा है, लेकिन हमारे बहुमत के नेता उनकी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं !!