जानिये कैसे समस्त रोगों की औषधि आपके ही अंदर है ! Yogesh Mishra

मनुष्य की शारीरिक संरचना शायद इस प्रकृति की सबसे जटिल संरचना है ! प्रकृति ने मनुष्य को इस तरह से निर्मित किया है कि वह अपने शरीर और जीवन की रक्षा के लिये उसे किसी भी वाह्य संसाधन की आवश्यकता नहीं है ! किंतु मनुष्य ने अपने आलस्य और विलासिता पूर्ण जीवन के कारण अपनी बहुत सी स्वाभाविक प्राकृतिक क्षमताओं को खो दिया है ! उन्हीं में एक क्षमता है “शरीर को स्वयं ठीक करने की क्षमता” !

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क के अंदर कई ग्रंथियां हैं और हर ग्रंथी शरीर की आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर अलग-अलग तरह के रसायनों का निर्माण करती हैं ! जैसे कोई गर्भवती महिला जब शिशु को जन्म देती है, तो उस समय उसके शरीर के अंदर मस्तिष्क के निर्देश पर “ऑक्सीटॉसिन” नामक रसायन की उत्पत्ति होना शुरू हो जाती है ! इस रसायन के प्रभाव से उस महिला को प्रसव पीड़ा होती है और वह महिला स्वाभाविक रूप से शिशु को जन्म देती है !

किंतु अब विज्ञान की बढ़ती हुई सुविधाओं के कारण महिलाएं प्रसव पीड़ा बर्दाश्त नहीं करना चाहती हैं ! उसका परिणाम यह है कि प्रसव पीड़ा आरंभ होने के पूर्व ही महिलाएं सिजेरियन ऑपरेशन के द्वारा शिशु को जन्म देती हैं !

अतः यही प्रक्रिया यदि 21 पीढ़ी तक निरंतर चलती रहेगी तो एक समय आएगा, जब महिलाओं के अंदर ऑक्सीटॉसिन नामक रसायन का प्राकृतिक उत्पादन ही बंद हो जायेगा और उस स्थिति में महिलायें शिशु को जन्म देने के लिए ऑपरेशन प्रक्रिया पर पूरी तरह निर्भर हो जाएंगी !

ठीक इसी तरह ठंड के वातावरण में जो लोग हीटर, ब्लॉवर, अलाव आदि का इस्तेमाल करते हैं ! तब उनके शरीर के अंदर धीरे-धीरे ठंड बर्दाश्त करने की क्षमता कम हो जाती है और शरीर में ठंड को बर्दाश्त कर उससे लड़ने वाले रसायन बनने बंद हो जाते हैं ! ऐसी स्थिति में ठंड पड़ने पर व्यक्ति स्वाभाविक रूप से वाह्य उपकरणों पर आश्रित हो जाता है !

ठीक इसी तरह जो लोग गर्मी से बचने के लिए धूप आदि में नहीं निकलते हैं ! धीरे-धीरे उनका शरीर छाया या ठंड में रहने का आदी हो जाता है और परिणाम स्वरुप गर्मी से बचने के लिये जो शरीर में जो स्वाभाविक रसायन बनते हैं, वह बनने बंद हो जाते हैं और उसका परिणाम यह होता है कि जरा सी गर्मी में निकलने पर वह व्यक्ति बीमार हो जाता है !

ठीक इसी तरह प्रकृति से दूर रहने के कारण मनुष्य में अनेक तरह के रसायनों का स्वाभाविक निर्माण बंद हो जाता है और मनुष्य धीरे-धीरे इन रसायनों के अभाव में बीमार रहने लगता है लेकिन यदि मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बनाये और थोड़ा ध्यान साधना करें तो वह पुनः अपने अंदर इस तरह के रसायनों के निर्माण की प्रक्रिया को आरंभ कर सकता है और अवसाद, पक्षघात, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, ह्रदय रोग आदि रोगों से स्वत: मुक्त हो सकता है !

इसके लिए “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” सबसे सरल और प्रभावशाली साधना पद्धति है ! यदि कोई अस्वस्थ व्यक्ति “ब्रह्मास्मि क्रिया योग” की साधना का आधे घंटे निरंतर अभ्यास करता है तो 3 माह के अंदर बिना किसी औषधि के स्वस्थ हो सकता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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