आज हिंदू समाज में सबसे बड़ी दिक्कत यह हो रही है कि हिंदू धर्म के नये व्याख्याकार परंपरागत हिंदू धर्म के प्रवक्ताओं के लिये आधुनिक विज्ञान का सहारा लेकर चुनौती बनते जा रहे हैं !
और हिंदू धर्म के परंपरागत व्याख्याकारों के पास आधुनिक परिवेश के अनुसार नई पीढ़ी के लिए कोई भी वैज्ञानिक तार्किक आधार नहीं है और नई पीढ़ी अब परंपरागत भक्ति नहीं करना चाहती है !
नई पीढ़ी का ढोलक, मजीरा, भजन, कीर्तन आदि से विश्वास उठ चुका है, क्योंकि उसने अब विश्व के नये वैज्ञानिक तार्किक मानकों से इन परंपरागत धर्म मानकों को मानना बंद कर दिया है !
इसी अवसर का लाभ उठाकर आधारहीन और अनुभवहीन धर्म के नये व्याख्याकार नई पीढ़ी को आधे अधूरे ज्ञान से धर्म की व्याख्या के नाम पर गुमराह कर रहे हैं, जिनकी संख्या अत्यधिक होने के कारण यह आज हिंदू धर्म के लिए बड़ी चुनौती बन चुके हैं !
किंतु यदि गहराई से विचार किया जाये तो इस समस्या का मूल कारण परंपरागत हिंदू प्रवक्ताओं का नये परिवेश के लिये स्वयं को तैयार न करना ही है !
क्योंकि परंपरागत हिंदू प्रवक्ताओं ने मनुष्य के विकसित मस्तिष्क के अनुरूप धर्म को समझाने के लिए नई व्याख्याओं का निर्माण नहीं किया है ! इसी वजह से आज के समाज पर उनका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है !
अब नई पीढ़ी को मंदिर, घंटा, मूर्ति, दीक्षा, अनुष्ठान आदि में कोई वैज्ञानिकता नहीं दिखाई देती है क्योंकि परंपरागत हिंदू प्रवक्ता आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से इन सब मान्यताओं को वह सिद्ध करने में अक्षम रहे हैं !
यह उनकी शिक्षा का दोष है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय हिंदू धर्म ग्रंथों को रटने में लगा दिया, उसके विज्ञान को समझ कर, उसकी व्याख्या करने में नहीं लगाया है और न ही कोई भी परंपरागत हिंदू प्रवक्ता हिंदू धर्म ग्रंथों के सिद्धांतों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर सिद्ध करने की चेष्टा कर रहा है !
वह तो मात्र राम-कृष्ण की कथा सुना कर या मंच पर अश्लील नृत्य दिखाकर धर्म के नाम पर अपनी कमाई के लिये भीड़ को आकर्षित करना करना चाहता है !
आज यही हिंदू धर्म के विनाश का कारण है !!