आज भारत का लोक (नागरिक) अपने अधिकांश दैनिक कार्यों के लिये अब स्मार्ट फोन, आई-पैड, आई-पॉड, टैब जैसे संचार उपकरणों पर निर्भर हैं ! क्योंकि वह बाजार में उपलब्ध नए गैजेट्स या नए अनुप्रयोगों के माध्यम से सोशल नेटवर्क पर वर्तमान प्रवृत्ति के अनुरूप अपडेट रहना चाहते हैं ! जितनी अधिक उन्नत तकनीक की हुई है, उतना ही लगता है कि यह हमारे जीवन को नियंत्रित कर रही है ! खास तौर से राजनीति के क्षेत्र में !
लोकतंत्र में समाचार माध्यमों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है ! उनके द्वारा प्रकाशित अथवा प्रसारित और उस पर की गयी टीका-टिप्पणियों पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई जाती ! अतः समाचार-पत्रों से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें मर्यादित आचरण करना चाहिये ! उन्हें किसी प्रकार की अफवाह की तह तक जाना चाहिये, जिससे सत्य को प्रकाश में लाया जा सके !
भारत जैसे देश में अफवाहों के माध्यम से साम्प्रदायिक दंगे तक फैला दिये जाते हैं, तोड़फोड़ की कार्यवाही कर सरकारी और निजी सम्पत्ति को क्षति पहुंचायी जाती है और कभी-कभी सत्ता परिवर्तन में भी सफलता प्राप्त की जाती है ! उत्तेजनात्मक समाचारों से समाचार-पत्र की बिक्री बढ़ती है किंतु इसका कोई दीर्घकालिक लाभ नहीं मिलता ! इससे जनता तुरंत तो भ्रमित होती है, किंतु बाद में सत्य का प्रकटीकरण होने पर उस समाचार-पत्र की साख भी प्रभावित होती है ! प्रायः यह देखा जाता है कि दोषी कोई और होता है, किंतु प्रारम्भ में किसी निर्दोष को बलिक का बकरा बना दिया जाता है !
मीडिया द्वारा दिये गये समाचार के आधार पर क्रोधित जनता उस निर्दोष व्यक्ति के साथ ऐसा दुव्र्यवहार कर डालती है, जिसकी क्षतिपूर्ति बाद में नहीं हो पाती ! मीडिया को अपने महत्व का स्वयं आकलन करना चाहिये तथा समाचार सम्प्रेषण में लगे कर्मियों को आत्मानुशासन के लिए प्रेरित करना चाहिये ! समाचार को संपादन करने वाले स्टाफ को भी यथेष्ट सजगता का परिचय देना चाहिये !
समाचार-पत्रों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य जनमत का निर्माण करना है ! समाचार-पत्रों को भारतीय लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ माना जाता है ! समाचार-पत्र सरकार, सरकारी नीतियों व कार्यक्रमों तथा महत्वपूर्ण फैसलों के विषय में जनमत का निर्माण करते हैं ! जनमत का प्रतिनिधित्व करने के कारण समाचार-पत्रों की आवाज को सुनना तथा उस पर जरूरी निर्णय लेना लोकतांत्रिक सरकार के लिए लगभग बाध्यकारी होता है !
समाचार-पत्रों के विश्लेषण एवं लेखों से चुनावी परिणामों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है ! बड़ी संख्या में मतदाता समाचार-पत्रों की खबरों को आधार बनाकर अपना मतनिर्णय करते हैं ! इस प्रकार समाचार-पत्र किसी पार्टी या व्यक्ति के पक्ष में चुनावी लहर को जन्म देने वाले मुख्य अभिप्रेरक होते हैं !
आज समाचार-पत्र जनमत के निर्माण की नहीं, बल्कि जनमत के भटकाव की प्रक्रिया को गतिशील बनाने में सहयोगी बन रहे हैं ! पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, अफसरों, उद्योगपतियों की चैकड़ी द्वारा जन-सामान्य के ध्यान को मूलभूत मुद्दों से हटाकर सतही समस्याओं पर केन्द्रित किया जा रहा है ! समाचार-पत्रों में जातीय एवं धार्मिक नेताओं के प्रभाववश सामाजिक एवं धार्मिक मतभेदों को उभारने वाली खबरें प्रकाशित होती हैं तथा वास्तविक सामाजिक कार्यकर्ताओं के कार्यों एवं अपीलों को उपेक्षित कर दिया जाता है !
मीडिया को यह अधिकार है कि वह प्रशासन की विफलताओं तथा भ्रष्ट अधिकारियों अथवा कर्मचारियों के काले कारनामों का पर्दाफाश करे ! किंतु अफसरों से अनावश्यक विज्ञापन प्राप्त करने अथवा धन उगाही के लिए उनका भयादोहन करने का प्रयास निदंनीय है !
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय संविधान में दी गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जितना दुरूपयोग मीडिया द्वारा किया गया है, उतना किसी अन्य के द्वारा नहीं किया गया ! आज अनेक ऐसे अकर्मण्य अफसर हैं जो मीडिया से अच्छे सम्पर्क के कारण कर्मठ दिखाई देते हैं, जबकि मीडिया से दूर रहने वाले ईमानदार और कर्मठ अफसर गुमनामी के अंधेरे में डूबे रहते हैं !
इस प्रकार मीडिया को आड़म्बरीय अफसरों को अधिक महत्व नहीं देना चाहिये और मीडिया से दूर रहने वाले लोक सेवकों को अनावश्यक रूप से तंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिये ! यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों का नैतिक हा्रस हुआ ! ऐसी स्थिति में राजनीतिक दलों का एकमात्र उद्देश्य ‘येन केन प्रकारेण’ सत्ता-प्राप्ति ही रह गया है !
राजनीतिक दलों द्वारा सार्वजनिक जीवन में असत्य का व्यवहार, झूठी घोषणाएँ, पृथक्तावादी आंदोलन और साम्प्रदायिक मतभेदों की स्थिति को जन्म दिया जाता है ! ये परिस्थितियाँ लोकमत के निर्माण में सहायक होती हैं लेकिन उनके द्वारा असामाजिक तत्वों और अपराधियों को लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों के लिए चुनावों में टिकट दिये जाने से अब मीडिया पर ही लोकमत निर्माण कर गुरूत्तर भार आ गया है !
मीडिया को इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा कि भारत में अनेक राजनीतिक दल क्षेत्रीय, पृथक्तावादी और संकीर्ण आधारों पर गठित हैं ! इन राजनीतिक दलों के द्वारा नागरिकों में राष्ट्रीय दृष्टिकोण उत्पन्न करने के बजाए उनमें ऐसे संकुचित दृष्टिकोण को जन्म दिया जाता है, जिससे नागरिक स्वस्थ लोकमत के निर्माण का कार्य कर ही नहीं पाते ! इस स्थिति का मुकाबला राष्ट्रीय टीवी चैनल अधिक आसानी से कर सकते हैं ! विभिन्न टीवी चैनल सम्पूर्ण भारत में ही नहीं विदेशों में भी देखे जाते हैं, अतः यह अपना दृष्टिकोण सदा राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही बनाते हैं और इन्हें ऐसा करना भी चाहिये !