मित्रो बात 14 अक्तूबर 1956 की है, भारत के नागपुर शहर मे दीक्षा भूमि मे भारत के आजतक के सबसे बड़े ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन होने का कार्यक्रम रखा गया था । जिसमे 8,00,000 (8 लाख) लोगो का हिन्दू (सनातन ) धर्म से बौद्ध धर्म में रूपांतरण होना था ।
क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था। तो अंबेडकर ने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.उनकी निर्धारित की गई प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और हिन्दू पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं। ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं।
किन्तु विशेष बात यह है कि डॉ. आंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि से नवाजा था , हालांकि उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व को माना और ना ही बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपना कर उसका प्रचार – प्रसार किया ।
डा भीम राव अंबेडकर की निम्नलिखित प्रतिज्ञाएँ जो उन्होंने अपना
राजनीतिक प्रभाव दिखने के लिये तथाकथित धर्म परिवर्तन के समय ली थी ।
1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
2. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा ।
3. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
5. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
6. मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा।
7. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा।
8. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
09. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है।
10. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
मित्रो मैंने अपने अन्य लेखो मे पहले भी कहा है कि अंबेडकर पूरी तरह से गांधी और नेहरू की तरह अंग्रेज़ो के चाटुकार थे ,
इनका एक मात्र उद्देश्य अंग्रेजो के दलाल बन कर सदैव हरिजनों के नाम पर राजनीतिक सत्ता की लोलुपता में अंग्रेजों की चाटुकारिता करना था ।
ऊपर की प्रतिज्ञाएँ पढ़कर भी यदि किसी को अंबेडकर द्वारा अपने निजी स्वार्थ के लिए हरिजनों को ब्राह्मणो के विरुद्ध भड़काने की रजीनीति समझ मे ना आये तो वो अपने मानसिक दिवालियापन का उपचार करवाएँ ।