नव दांपत्य जीवन में दो अपरचित व्यक्ति अपने-अपने ग्रहों के प्रभाव के अनुरूप विकसित अलग-अलग विचारधारा व संस्कार के लोग एक साथ मिलकर जीवन यापन आरंभ करते हैं ! ऐसी स्थिति में यदि दोनों के ग्रहों की ऊर्जा में आपसी तालमेल ठीक है तो उनका दांपत्य जीवन बहुत ही सुख के साथ व्यतीत होता है !
किंतु ज्यादातर देखा जाता है कि अलग-अलग प्रष्ट भूमि से आये हुए दो व्यक्तियों की ग्रहीय ऊर्जा के कारण उनके आचार, विचार, व्यवहार में प्रायः अंतर होता है ! जिससे वह दोनों एक दूसरे के साथ तालमेल नहीं बना पाते हैं ! परिणामत: मनमुटाव धीरे-धीरे बढ़कर एक बड़े विवाद का रूप ले लेता है और यदि इसे न संभाला गया तो नव निर्मित दांपत्य जीवन नष्ट हो जाता है ! दोनों के मध्य तलाक तक हो जाता है !
ऐसी स्थिति में “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” करने से दोनों के मध्य ग्रहों के ऊर्जा का तालमेल जो नहीं बन रहा होता है, वह संतुलित होने लगता है ! दांपत्य जीवन का एक व्यक्ति अपने ग्रह की नकारात्मक ऊर्जा को शांत करके दूसरे व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा के साथ तालमेल स्थापित करने लगता है ! यह प्रक्रिया बहुत ही सहज है !
लोगों को ज्ञान न होने के कारण लोग इस “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” का उपयोग करके अपने दांपत्य जीवन को सुख में नहीं बना पा रहे हैं !
मैंने निजी तौर पर यह अनुभव किया है कि जिन परिवारों में मैंने “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” करने के लिए लोगों को प्रेरित किया ! उन परिवारों में होने वाले विवाद कुछ ही समय में शांत हो गये और नव दांपत्य में इस तरह के आत्म विश्लेषण करने की क्षमता विकसित हुई कि दोनों पति-पत्नी में आपसी सहयोग और ताल मेल के कारण वर्तमान में वह लोग सुख पूर्वक अपने दांपत्य जीवन का आनंद ले रहे हैं ! अब तो संतान आदि भी प्राप्त कर लिया है और पूरे सम्मान के साथ अपने दांपत्य जीवन का आनंद उठा रहे हैं !
इसलिए मेरा यह परामर्श है कि जो लोग अपने दांपत्य जीवन से परेशान हैं ! उन दोनों ही पति-पत्नी को “ब्रह्मास्मि क्रिया साधना” का सहारा लेना चाहिये ! मेरा यह पूर्ण विश्वास है कि इससे उनके दांपत्य जीवन में अवरोध करने वाले ग्रह ऊर्जा शांत होगी और उनका दांपत्य जीवन सुखमय होगा !