विचार कीजिये कि आप कितना धार्मिक हैं ! Yogesh Mishra

वैदिक सनातन व्यवस्था में ‘धर्म’ शब्द ‘ऋत’ पर आधारित है ! ‘ऋत’ वैदिक धर्म में सही सनातन प्राकृतिक व्यवस्था और संतुलन के सिद्धांत को कहते हैं, यानि वह तत्व जो पूरे संसार और ब्रह्माण्ड को धार्मिक स्थिति में रखे या लाए ! वैदिक संस्कृत में इसका अर्थ ‘ठीक से जुड़ा हुआ, सत्य, सही या सुव्यवस्थित’ होता है !

ऋग्वेद के अनुसार – ”ऋतस्य यथा प्रेत” अर्थात प्राकृत नियमों के अनुसार जीओ !

लेकिन इस सूत्र का मात्र इतना ही अर्थ नहीं है कि प्राकृत नियमों के अनुसार जीओ ! सच तो यह है कि ऋत शब्द के लिए हिन्दी में अनुवादित करने का कोई उपाय नहीं है ! इसलिए इसको समझना ज्यादा जरुरी है, क्योकि यह शब्द अपने आप में बहुत ही विराट है ! ‘प्राकृत’ शब्द से भूल हो सकती है ! निश्चित ही वह एक आयाम है ऋत का, लेकिन बस एक आयाम जबकि ऋत बहुआयामी है !

ऋत का अर्थ है – जो सहज है, स्वाभाविक है, जिसे आरोपित नहीं किया गया है ! जो अंतस है आपका, आचरण नहीं ! जो आपकी प्रज्ञा का प्रकाश है, चरित्र की व्यवस्था नहीं जिसके आधार से सब चल रहा है, सब ठहरा है, जिसके कारण अराजकता नहीं है ! बसंत आता है और फूल खिलते हैं ! पतझड़ आता है और पत्ते गिर जाते हैं ! वह अदृश्य नियम, जो बसंत को लाता है और पतझड़ को भी ! सूरज है, चाँद है, तारे हैं ! यह विराट विश्व है और कही कोई अराजकता नहीं ! सब सुसंबद्ध है ! सब एक तारतम्य में है ! सब संगीतपूर्ण है ! इस लयबद्धता का ही नाम ऋत है !

बहुत गूढ़ व्याख्याओं पर न जाते हुए साधारण शब्दों में कहा जायह तो सनातन धर्म में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र और वैश्य को कर्म के आधार पर बांटा गया है ! आप बतायह गयह माध्यम से सही-सही कर्म करते रहें तब आपके वही कर्म, धर्म बन जाएंगे और आप धार्मिक कहलायेंगे ! मनुष्यों के लिए यही धर्म है !

यहाँ एक और शब्द आया है, सनातन !

अब तक आपने जहाँ भी पढ़ा होगा उसके अनुसार ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त ! और यही सबसे बड़ी भूल हुई जो आज बड़े धर्म के जानकार भी बड़े गर्व से कहते हैं कि सनातन धर्म कभी नष्ट नहीं हो सकता, चिरकाल से चलता आ रहा है और चिरकाल तक चलता रहेगा जबकि वैदिक सनातन धर्म की आज की स्थिति तो आपके सामने है या यूँ कहें तो आज ही वैदिक सनातन धर्म आपको शायद ही कहीं दिखे ! दूसरी ओर अगर ऐसा होता तो मनुस्मृति में “धर्मो रक्षति रक्षितः” कहने की क्या आवश्यकता हुई ?

धर्मान्तरण, धार्मिक कट्टरता और भारत में बढ़ते विदेशी N.G.O. का असर कहें या सनातन धर्मियों की उदासीनता कि जब 1999 में पोप ने भारत में घोषणा की थी कि चर्च 21 वीं सदी तक एशिया में ईसाई धर्म पूर्णतया स्थापित कर देगा ! तो मीडिया ने इसे साधारण घटना की भाँति प्रस्तुत किया और यह जताने की कोशिश की कि चर्च का कर्तव्य सम्पूर्ण विश्व में ईसाई धर्म का प्रसार करना है और ऐसा कर के पोप अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं !

जब जाकिर नाइक आदि जैसों के द्वारा हिन्दुओं का सामूहिक धर्म परिवर्तन करके उन्हें मुस्लिम बनाए जाने का समाचार आता है, तो मीडिया ऐसी घटनाओं को अनदेखा करती है अथवा यह सन्देश देती है कि ऐसी घटनायें सामान्य हैं ! अंततोगत्वा इस्लाम का प्रसार भी तब तक होना चाहिये ! जब तक कि सारी मानवता मुसलमान न हो जाय !

लेकिन जब कोई हिन्दू समुदाय हिन्दू धर्म से परे अन्य मजहबों को स्वीकार कर चुके लोगों को पुन: हिन्दू धर्म में प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है तो मीडिया सहसा उत्तेजित हो जाती है ! उनके अनुसार ऐसे हिन्दू समूह साम्प्रदायिक एवं विभाजनकारी शक्तियाँ हैं जो हमारे विविधतापूर्ण ढाँचे को अस्त व्यस्त करना चाहती हैं तथा एक असहिष्णु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहती हैं ! कई दिनों तक टीवी चैनलों पर ऐसी घटनाओं की निन्दा की जाती है !

अमेरिका कि संस्था विकिपीडिया के अनुसार “हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं ! “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है !“

खैर, आगे बढ़ते हैं !

अथर्ववेद कि निम्नलिखित ऋचा के अनुसार:

सनातनमेनमाहुरुताद्य स्यात पुनर्णवः !
अहोरात्रे प्र जायहते अन्यो अन्यस्य रुपयो: ! ! (अथर्ववेद 10/8/23)

अर्थात, उसे (जो सत्य के द्वारा ऊपर तपता है, ज्ञान के द्वारा नीचे जगत को प्रकाशित करता है अर्थात ईश्वर) सनातन कहते हैं, वह आज भी नया है जैसे कि दिन और रात अन्योन्याश्रित रूप से नित नए उत्पन्न होते हुए भी सनातन हैं !

वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है ! मोक्ष का मार्ग इसी धर्म की देन है ! एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है ! मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है !

यहाँ सनातन का अर्थ आज और कल से नहीं है, यहाँ सनातन का अर्थ है कि जैसे दिन और रात अन्योन्याश्रित रूप से नित नए उत्पन्न होते हुए भी सनातन हैं ! उसी प्रकार वैदिक धर्म की व्यवस्था में उत्पन्न प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में जन्म से मृत्यु तक और उसके बाद भी जन्म – मृत्यु के चक्र को पूरा करते हुए मोक्ष तक अर्थात दिन और रात की तरह, जब तक यह सृष्टि चलेगी तब तक वैदिक व्यवस्था में उत्पन्न हुआ व्यक्ति धर्म से जुड़ा रहेगा ! यह है जिसका कोई आदि और अंत नहीं है !

और यही सनातन धर्म का सत्य है ! जिसमें हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि:

ॐ असतो मा सद्गमय !
तमसो मा ज्योतिर्गमय !
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ वृहदारण्य उपनिषद

अर्थात: हे ईश्वर! मुझे मेरे कर्मों के माध्यम से असत्य से सत्य की ओर ले चलो ! मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ! मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो !

वैदिक सनातन धर्म में हम मानते हैं कि:

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते !
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ! ! ईशोपनिषद्

अर्थात: सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत् ! सत का अर्थ है ‘यह’ और तत का अर्थ है ‘वह’ ! दोनों ही सत्य हैं ! अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि ! अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो ! यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है ! ब्रह्म पूर्ण है ! यह जगत् भी पूर्ण है ! पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है ! पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती ! वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है ! यही सनातन सत्य है !

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कभी अपना देश ‘सोने की चिडिया’ कहलाता था, लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि हमारा देश तो आज भी ‘सोने की चिडिया’ ही है ! लगभग सभी प्रमुख क्षेत्रों में भारत की गिनती विश्व के उच्चपदस्थ देशों में होती है !

बात समझने की है ! राष्ट्र रुपए – पैसों से महान नहीं बनता, वह महान बनता है लोगों के उच्च विचारों से, ऐसे देश में जहाँ सामान्य लोगों में उच्च विचार हों, वह देश कभी किसी भी रूप से निर्धन नहीं हो सकता ! हमारा इतिहांस भी ऐसा ही रहा है !

जहाँ एक ओर ‘ऋत’ शब्द को हिंदी में अनुवाद करने का कोई उपाय नहीं है वहां दूसरी ओर आज की पीढ़ी, जो खुद को धार्मिक कहती है, धर्मग्रंथों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ती है ! क्या उनको वह सही रूप से समझ पाएंगे? कुछ लोग अगर धर्म को नहीं मानते हैं या नास्तिक हैं तो यह चलता है, चिर काल से ऐसा होता आया है लेकिन अगर सभी या अधिकतर ऐसे ही हो गयह तब ?

इसको इस बात से समझियह कि अगर गेहूं में कुछ घुन निकल गयह, तो वह तो चल जाता है लेकिन घुन, गेहूं में बहुत अधिक हो जायें या यदि घुनों ने गेहूं को नष्ट कर दिया, तब ?

सनातन धर्म की विशेषता है कि यह विचारों के उच्चता की बात करता है ! विश्व में केवल और केवल सनातन धर्म ही है जिसमें कोई धार्मिक कट्टरता नहीं है, नास्तिकता की भी मान्यता है ! एक और जहाँ लगभग सभी धर्म बाकियों के धर्मान्तरण की बात करते हैं वहीँ सनातन धर्म का सिद्धांत है: ‘‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’’ (ऋग्वेद 9/63/4) अर्थात विश्व के सभी लोगों को श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वभाव वाले बनाओ !

वेदों से लेकर बाद के भी किसी ग्रन्थ में यह नहीं लिखा कि सबको सनातन धर्मी या हिन्दू बनाओ ! हिंदू प्रार्थनायें और दृष्टि केवल मानव ही नहीं, अपितु समस्त सृष्टि मात्र के कल्याण, समन्वय और शांति की कामना करती हैं ! इसीलिए हिंदू ने अपने को हिंदू नाम भी नहीं दिया ! वीर सावरकर के शब्दों में, “आप सनातन धर्म विरोधी हो इसलिये मैं हिंदू हूं ! अन्यथा मैं तो विश्वमानव हूं !”

दूसरे शब्दों में गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है कि

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् !
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥

अतः बिना ज्ञान के केवल कर्म और संन्यास मात्र से मनुष्य निष्कर्मता रूप की सिद्धि को प्राप्त नहीं करता है ! अर्थात धर्म के नाम पर जो भी कर रहे हो ! उसके करने का कारण जरुर जानो तभी तो उस धर्म का लाभ है और वह धर्म आपकी रक्षा करेगा !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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