षडयंत्र मृत्यु-भोज पर : Yogesh Mishra

भारतीय वैदिक परम्परा के सोलह संस्कारों में मृत्यु यानी अंतिम संस्कार भी शामिल है ! इसके अंतर्गत मृतक के अग्नि या अंतिम संस्कार के साथ कपाल क्रिया, पिंडदान आदि किया जाता है ! स्थानीय मान्यता के अनुसार तीन या चार दिन बाद श्मशान से मृतक की अस्थियों का संचय किया जाता है ! सातवें या आठवें दिन इन अस्थियों को गंगा, नर्मदा या अन्य पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है !

दसवें दिन घर की सफाई या लिपाई-पुताई की जाती है ! इसे दशगात्र के नाम से जाना जाता है ! इसके बाद एकादशगात्र को पीपल के वृक्ष के नीचे पूजन, पिंडदान व महापात्र को दान आदि किया जाता है ! द्वादसगात्र में गंगाजली पूजन होता है ! गंगा के पवित्र जल को घर में छिड़का जाता है ! अगले दिन त्रयोदशी पर तेरह ब्राम्हणों, पूज्य जनों, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को सामूहिक रूप से भोजन कराया जाता है ! इसे ही मृत्युभोज कहा जाने लगा है !

जिसे राजस्थान सरकार ने मृत्यु-भोज निषेध अधिनियम 1960 के तहत मृत्यु-भोज का आमंत्रण देना एक दंडनीय अपराध घोषित किया है ! इस अधिनियम की धारा अधिनियम की धारा 2 में लिखा है कि कोई भी व्यक्ति अपने परिजनों या समाज या पंडों, पुजारियों के लिए धार्मिक संस्कार या परंपरा के नाम पर मृत्यु-भोज नहीं करेगा !

धारा 3 में लिखा है कि कोई भी व्यक्ति मृत्यु-भोज न तो करेगा, न जीमण में शामिल होगा न भाग लेगा ! 4 में लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति धारा 3 में लिखित मृत्युभोज के आयोजन का अपराध करेगा या मृत्युभोज करने के लिये किसी को उकसायेगा, सहायता करेगा, प्रेरित करेगा तो उसे एक साल की जेल या फिर एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों का दण्ड दिया जायेगा !

धारा 5 के अनुसार यदि किसी व्‍यक्ति या पंच, सरपंच, पटवारी, लम्‍बरदार, ग्राम सेवक को मृत्‍यु-भोज आयोजन की सूचना एवं ज्ञान हो तो वह प्रथम श्रेणी न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट की कोर्ट में प्रार्थना-पत्र देकर स्‍टे लिया जा सकता है पुलिस को सूचना दे सकता है ! पुलिस भी कोर्ट से स्‍टे ले सकती है एवं नुक्‍ते को रूकवा सकती है ! सामान को जब्‍त कर सकती है !

कोर्ट स्‍टे का पालन न करने पर सजा :-

धारा 6 में लिखा है कि यदि कोई व्‍यक्ति कोर्ट से स्‍टे के बावजूद मृत्‍यु-भोज करता है तो उसको एक वर्ष जेल की सजा एवं एक हजार रूपये के जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जायेगा !

सूचना न देने वाले पंच-सरपंच-पटवारी को भी सजा :-

धारा 7 में लिखा है कि यदि मृत्‍यु-भोज आयोजन की सूचना कोर्ट के स्‍टे के बावजूद मृत्‍यु-भोज आयोजन होने की सूचना पंच, सरपंच, पटवारी, ग्रामसेवक कोर्ट या पुलिस को नहीं देते हैं एवं जान बूझकर ड्यूटी में लापरवाही करते हैं तो ऐसे पंच-सरपंच, पटवारी, ग्रामसेवक को तीन माह की जेल की सजा या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जायेगा !

मृत्‍यु-भोज में धन या सामान देने वाला रकम वसूलने का अधिकार नहीं है :-

धारा 8 में लिखा है कि यदि कोई व्‍यक्ति बणिया, महाजन मृत्‍यु-भोज हेतु धन या सामान उधार देता है तो उधार देने वाला व्‍यक्ति, बणिया, महाजन मृत्‍यु-भोज करने वाले से अपनी रकम या सामान की कीमत वसूलने का अधिकारी नहीं होगा ! वह कोर्ट में रकम वसूलने का दावा नहीं कर सकेगा ! क्‍योंकि रकम उधार देने वाला या सामान देने वाला स्‍वयं धारा 4 के तहत अपराधी हो जाता है !

यह कानून ही नहीं बना है बल्कि राजस्थान में सीकर की एक अदालत ने राजस्थान परिवहन मंत्री युनूस खान को 12 साल पुराने मृत्यु भोज के मामले में दोषी करार दिया है !

अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने परिवहन मंत्री खान को पिता का मृत्यु भोज आयोजित करने पर कानून का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया है जबकि तत्कालीन जिला कलक्टर एवं पुलिस अधीक्षक सहित अन्य अधिकारियों को बरी कर दिया गया !

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के कार्यकर्ता कैलाश मीणा ने वर्ष 2005 में लक्ष्मणगढ़ की अदालत में खान के खिलाफ पिता ताजू खान की मृत्यु पर भोज आयोजित करने पर कानून का उल्लंघन करने का मुकदमा दायर किया था ! इसमें तत्कालीन अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया था ! खान ने मृत्यु भोज को अखबारों के जरिये प्रचारित भी कराया था !

शास्त्र भी यही कहते हैं ! गरुड़ पुराण में बताया गया है कि किसी भी मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक पानी पीना भी हिन्दुओं के लिये वर्जित है ! इसके बाद सामूहिक भोजन कर समाज को यह सन्देश दिया जाता है कि अब आप मेरे यहाँ आ सकते हैं और भोजन भी कर सकते हैं ! मुस्लिम परम्परा और ग्रन्थ भी यही कहते हैं ! उनमें भी नियत समय तक मृतक के घर ऐसे भोजन को गैर इस्लामी कहा गया है !

12-13 वें दिन के बाद घर की शुद्धि और आत्मा की शांति के लिए कुछ क्रियाकर्मों का प्रावधान है ! मुस्लिमों में ऐसा 40 वें दिन पर होता है ! घर-परिवार और पंडित-पुरोहित-फ़क़ीरों के लिए भोजन बन जाये, ताकि शोक को औपचारिक रूप से तोड़ा जा सके ! इस भारतीय परम्परा का अपना मनोवैज्ञानिक पहलू भी है ! इस प्रकार की प्रक्रियाओं में उलझने और आने-जाने वालों के कारण परिवार को परिजन के बिछुड़ने का दर्द भूलने में मदद हो जाती है !

कई लोग इसे संस्कार से जोड़कर देखते हैं ! आर्य समाजी तर्क देते हैं कि हिन्दू धर्म व्याख्या में मुख्य 16 संस्कार बनाये गये हैं, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अन्त्येष्टि है ! इस प्रकार जब 17वां संस्कार बनाया ही नहीं गया तो 17वां संस्कार तेरहवीं संस्कार कहां से आ गया ! लेकिन शायद उन्हें 21 संस्कारों की जानकारी नहीं है !

अब प्रश्न यह है कि इसके पीछे षडयंत्र क्या है ! जबकि राजस्थान सरकार का तर्क है कि गरीब परिवारों का कितना पैसा इस तरह के मृत्यु भोज में खर्च हो जाता है ! जिसका दूसरी जगह सदुपयोग किया जा सकता है !

भगवान श्रीकृष्ण का मत है कि शोक की अवस्था में करवाये गये भोजन से जीवनी ऊर्जा का नाश होता है ! जब महाभारत का युद्ध होने को था ! तब श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिये संधि करने का आग्रह किया, तो दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराये जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े !

तब दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ अर्थात हे दुर्योधन जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिये ! लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के मन में पीड़ा हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिये !

लेकिन महाभारत के इस प्रसंग को कुछ बुद्धिजीवियों ने मृत्युभोज से जोड़कर देखा है ! जिसके अनुसार अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद मन में अथाह पीड़ा होती है, ऐसे में कोई भी प्रसन्नचित अवस्था में भोज का आयोजन नहीं कर सकता ! वहीं दूसरी ओर मृत्युभोज में आमंत्रित लोग भी प्रसन्नचित होकर भोज में शामिल नहीं होते हैं !

लेकिन दूसरी तरफ इस कष्ट के अवसर पर दूर-दूर से सांत्वना देने के लिये आये हुये परिचित, रिश्तेदार, और क्षेत्रीय लोगों के लिये भोजन की व्यवस्था करना व्यक्ति का सामाजिक दायित्व भी है और धर्म के अनुसार उस आवश्यक भी है ! जिसके यहां सभी सम्मानित जान आये हुये हैं ! उसे भोजन का इन्तजाम तो करना ही चाहिये !

वैदिक परम्परा के अनुसार मृतक के घर पर आज भी लोग कपड़े आदि लेकर जाते हैं ! इसका दायरा पहले और भी व्यापक था ! परिचित व रिश्तेदार क्षमतानुसार अपने घरों से अनाज, राशन, फल, सब्जियां, दूध, दही मिष्ठान्न आदि लेकर मृतक के घर पहुंचते थे ! लोगों द्वारा लाई गई तरह-तरह खाद्य सामग्री ही बनाकर लोगों को खिलाई जाती थी ! इसे पहले समाज के प्रबुद्धजनों यानी ब्राम्हणों को दिया जाता था और वे अपने हाथों से बनाकर भोजन ग्रहण करते थे ! अब तो खास रिश्तेदार भी मात्र वस्त्र आदि लेकर मृतक के घर पहुंचते हैं ! बाकी लोग सद्भावना लिए केवल खाली हाथ ही पहुंच जाते हैं !

प्रियजन की मृत्यु से परिवार बेहद दु:खी रहता था ! अपने आत्मीय स्वजन की मृत्यु के दु:ख में कई बार परिवार के लोग बीमार व अशक्त तक हो जाते थे ! सदमे में आत्मघाती कदम तक उठा लेते थे ! ऐसा नहीं हो.. वे सदमे में नहीं रहें इसलिये व्यवस्था दी गई कि खास परिचत और रिश्तेदार मृतक के परिजनों के पास ही रहेंगे ! रोज उसके साथ सादा भोजन करेंगे ! उसे ढाढस बंधायेंगे ताकि उसका दु:ख व मन हलका हो जाये !

गरुण पुराण के अनुसार परिचितों और रिश्तेदारों को मृतक के घर पर अनाज, रितु फल, वस्त्र व अन्य सामग्री लेकर जाना चाहिये ! यही सामग्री सबके साथ बैठकर ग्रहण की जाती थी ! बीमारियों के कीटाणु असर न करें इसलिये किसी तरह का बघार लाना वर्जित था ! उबला हुआ या फिर कंडे पर महज सादा भोजन बनाया व परोसा जाता था !

सामूहिक भोज के माध्यम से मृतक परिवार में लोगों का आना-जाना सामान्य रूप से प्रारंभ तो होता ही है साथ ही जो व्यक्ति उक्त कर्म में शामिल होने से रह गया हो वह भी उस दिन आकर अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता है ! साथ ही यह रीति प्राचीनकाल में इसलिये भी महत्वपूर्ण थी कि इसी दिन यदि घर का कोई प्रमुख गया हो तो उसकी जगह दूसरे को प्रतीकात्मक रूप से पगड़ी की रस्म द्वारा प्रमुख मान लिया जाता था ! सभी रिश्तेदारों के एक जगह जुटने से मृतक परिवार को इससे हिम्मत मिलती थी और पारिवारिक एकता भी बढ़ती थी ! भोज तो निमित्त होता था, लोगों को एक-दूसरे से मिलाने हेतु !

पश्चिम के देशों में परिवार और समाज की कोई अवधारणा नहीं है ! वहां पर परिवार के लोग, नातेदार, रिश्तेदार भी एक दूसरे के लिये समय नहीं निकालते हैं ! वहां मनुष्य का जीवन सामाजिक न होकर पूरी तरह पशुवत है !

अत: उनके समाज में मृत्यु के उपरांत किसी भी सामूहिक भोजन की कोई व्यवस्था नहीं है ! लेकिन भारतीय समाज की अवधारणा पश्चिम से अधिक विकसित और वैज्ञानिक है ! अतः हमें अपने सामर्थ और सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुये मृत्यु भोज का आयोजन शास्त्र अनुसार अवश्य आयोजित करना चाहिये ! ऐसा मेरा मत है !

गरुण पुराण भी इसकी मान्यता देता है ! ऐसी स्थिति में महाभारत और रामायण काल के उपरांत सामाजिक नियमों में बहुत से परिवर्तन हुये हैं ! उन्हें देखते हुये आज के नये परिवेश में यह अंतिम भोजन समाज की आवश्यकता ही नहीं धार्मिक अनिवार्यता भी है !

फ़िलहाल देश की अन्य राज्य सरकारों भी राजस्थान सरकार के तर्ज पर पर मृत्यु भोज पर प्रतिबन्ध हेतु शीघ्र ही कानून बनाने की तैयारी कर रही है ! जो शीघ्र ही आपके सामने आयेगा !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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