षड्यंत्र मेव जयते : Yogesh Mishra

‘सत्यमेव जयते’ मूलतः मुण्डक-उपनिषद से लिया गया मंत्र है ! इसका राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार मदन मोहन मालवीय ने उस समय किया था, जब वह अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई “कांग्रेस पार्टी” के सभापति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल (1918) पूरा कर रहे थे !

क्योंकि उस समय प्रथम विश्व युद्ध हाल ही में खत्म हुआ था और अंग्रेजों ने धोखा देकर जिन भारतीयों को प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने के लिये यूरोप भेजा था ! उनमें से अधिकांश योरोप में ही युद्ध में मर गये थे और अपने वादे के अनुसार अंग्रेजों ने मृतकों के परिवार वालों को न तो उन मरे हुये भारतीय सैनिकों का शव उनके परिवार वालों को दिया था और न ही उनके परिवार वालों को वह सरकारी सुविधाएं दी थी ! जिसका फौज में भर्ती समय वादा किया गया था !

अत: इस बात को लेकर पूरे भारत में भारतीयों का अंग्रेजों के विरुद्ध बहुत बड़ा आक्रोश था ! जगह-जगह लोग कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में इस विषय को उठाते थे और अंग्रेजों की नीतियों का विरोध करते थे तथा कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों से भी यह आग्रह करते थे कि वह लोग भी जन सामान्य की ओर से अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ें किन्तु कांग्रेस के पदाधिकारी जनता की इस इच्छा पर आंदोलन को करने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थे !

अत: तब मदन मोहन मालवीय ने कांग्रेस पार्टी की बिगड़ी हुई छवि को सुधारने के लिये और भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये हिंदू धर्म शास्त्रों का सहारा लिया और मुण्डक-उपनिषद से लिये गये निम्नलिखित मंत्र को जगह-जगह दोहराना शुरू कर दिया !

सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम्॥
अर्थात अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की ! यही वह मार्ग है जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों) ऋषीगण जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं !

बात क्योंकि धर्म शास्त्र से थी अत: कोई विरोध नहीं करता था !

और इस तरह उन्होंने जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया ! उन्होंने कहा कि हमारे धर्म शास्त्र झूठ नहीं बोलते हैं क्योंकि इसे भारतीय सनातन ऋषियों ने लिखा है और हमारे शास्त्र में लिखा गया है कि अंततः सत्य की विजय होती है, इसलिये आप लोग अंग्रेजों के खिलाफ क्रोध को छोड़ कर धैर्य रखिये ! कांग्रेस पर विश्वास कीजिये ! निश्चित रूप से आप को न्याय प्राप्त होगा !

बाद में यही “सत्यमेव जयते” भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये उच्च न्यायालयों के मुख्य स्लोगन के रूप में न्यायपालिका द्वारा स्वीकार कर लिया गया !

जिसने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म शास्त्रों में वर्णित सिद्धांत उस समय के देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार तो उचित हो सकते हैं, जब उन्हें लिखा गया था किंतु वर्तमान षड्यंत्रकारिर्यों के प्रभाव से रचे गये षडयंत्र के समय अब यह सनातन धर्म शास्त्रों में लिखे हुये सिद्धांत अव्यावहारिक सिद्ध हो चुके हैं !

मेरे अपने विशेषण में मैंने यह पाया कि षड्यंत्र वह महाशक्ति है, जो सत्य को निगल जाती है ! इसके हजारों उदहारण अनादि काल से लेकर आज तक देखे जा सकते हैं ! इसलिये सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है !

सतयुग में हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, राजा बलि जैसे प्रतापी दैत्य, दानव, असुर, ऋषि, मुनि, महर्षि आदि आदि सत्य के मार्ग पर चलने वाले हजारों लोग देवताओं के षड्यंत्र का शिकार हुये ! जिन्हें आज समाज विलियन की निगाह से देखता है !

इसी तरह राम युग में विलासी इंद्र का षड्यंत्र महाप्रतापी रावण, इंद्रजीत मेघनाथ, कुंभकरण, शम्बूक, राजा बाली, आदि न जाने कितने सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने वाले प्रतापी युगपुरुषों को निगल गया ! जिन्हें आज के वैष्णव लेखक विलियन घोषित करने में लगे हैं !

ठीक इसी तरह कृष्ण युग में वैष्णव जीवन शैली के विस्तार के लिये भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, धृतराष्ट्र शकुन, जयद्रथ, आदि को एक विश्वव्यापी षड्यंत्र के द्वारा विलियन बना कर ख़त्म कर दिया गया ! और अर्जुन जब इस षडयंत्र का हिस्सा बनने के लिये तैयार नहीं था तो उसे श्रीमद् भगवत गीता का प्रवचन स्वयं भगवान कृष्ण ने दे दिया और अपने षडयंत्र को सफल कर लिया !

आज के युग में भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई, लोकमान्य तिलक, बहादुर शाह जफर कैसे लाखों लोग इसी षड्यंत्र का शिकार हुये हैं ! यही नहीं मैंने तो अपने जीवन काल में भी देखा है कि न्याय की अपेक्षा में सत्य के मार्ग पर चलने वाले न जाने कितने भारतीय नागरिक आज भी न्यायालयों में षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं !

वर्तमान समय में भारतीय राजनीति में भी देखा जाये तो भारत का आम आवाम राजनीतिज्ञों के भरोसे, इस हद तक षड्यंत्र का शिकार हो रहा है कि उसके घर की जमा पूंजी नष्ट हो गई ! संपत्ति बिक गई ! परिवार में लाशें बिछ गई और वह यह समझ ही नहीं पा रहा है कि इस पूरे के पूरे षडयंत्र के पीछे कौन है ! किससे दोष दूँ ! अपने भाग्य को या सफल षड्यंत्रकारिर्यों को !

अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि “सत्यमेव जयते” के स्थान पर यदि व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि अनादि काल से “षड्यंत्र मेव जयते” ही स्थापित सिद्धांत रहा है !

जिसने चाणक्य, पुष्यमित्र, आदि शंकराचार्य आदि की तरह इस षड्यंत्र को समझ लिया, अनादि काल से वही बचा है वरना धर्म ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों की चर्चा करने वाले आज खुद षड्यंत्र का शिकार होकर लाइन में लगकर महामारी की वैक्सीन लगवा रहे हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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