उच्च शिक्षा को बेचने का षड्यंत्र : Yogesh Mishra

मानव संसाधन विकास मंत्री ने जब यह घोषणा की कि यू.जी.सी को खत्म कर उच्च शिक्षा की मौनिटरिंग और वित्त के लिए दो नये संस्थान एच.ए.सी.आई. (हेकी) और एच.इ.एफ.ए. (हेफा) बनाये जाएँगे ! तब आश्चर्यजनक रूप से केंद्र सरकार के हर फैसले पर विरोध करने वाला विपक्ष चुप रहा व मीडिया ने भी इसे कोई तवज्जो नहीं दी !

एक तरफ तो सरकार उच्च शिक्षा से अपना हाथ खींच कर इसे बाज़ार के रहमोकरम पर छोड़ रही है और दूसरी तरफ विशिष्ट संस्थान का दर्जा देकर “जिओ इंस्टिट्यूट” को 1000 करोड़ रुपये दे रही है ! एक शिक्षण संस्थान जो अभी खुला नहीं है ! जिसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है ! उस पर इतनी मेहरबानी करना संदेहास्पद तो है ही !

खैर ! हेकी और हेफा के द्वारा शिक्षा को बाज़ार के हाथों सौपना यह कोई अचानक से घटने वाली घटना नहीं है ! अपितु इसकी पूर्वपीठिका काफी पहले से लिखी जा रही थी ! यू.पी.ए.सरकार के कार्यकाल से ही शिक्षा के निजीकरण के प्रयास ज़ोरों पर थे ! इसकी परिणिति आज मोदी सरकार के कार्यकाल में जाकर हो रही है ! कुल मिलाकर इसकी एक गतिकी है जो कई दौरों से होकर गुजरी है !

“हेकी और हेफा” आखिर हैं क्या

हेकी यानी हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया एक ऐसा निकाय होगा ! जो मानव संसाधन मंत्रालय के मातहत कार्य करेगा और इसके पास शिक्षण संस्थानों को मान्यता देने ! नियमित करने ! विनिवेश करने का अधिकार होगा !

यू.जी.सी. के पास अपनी स्वायत्तता थी ! जबकि अब हेकी सरकार के मातहत कार्य करेगा ! सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि हेकी के पास किसी तरह की आर्थिक शक्तियाँ नहीं होंगी अर्थात शिक्षण संस्थानों को फण्ड देना इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं होगा ! अब फण्डिंग देने का काम एक और नयी संस्था हेफा ( हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी ) करेगी !

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह नयी संस्था फाइनेंस करेगी ! यह शिक्षण संस्थानों को ग्राण्ट नहींं देगी ! हालाँकि ! हेफा कोई सरकारी संस्थान नहीं है ! यह आर.बी.आई के पास कम्पनी एक्ट के अन्तर्गत पंजीकृत एक नॉन बैंकिंग फाइनेंसिंग कम्पनी है ! खुद इसकी वेबसाइट पर यह लिखा है कि यह कैनरा बैंक व एम.एच.आर.डी का संयुक्त उपक्रम है !

हेफा की स्थापना के वक़्त इसकी मूल पूँजी 2000 करोड़ थी ! जिसे केबिनेट के फैसले के बाद बढ़ाकर अब 10000 करोड़ कर दिया गया है ! हेफ़ा के दायरे में पहले जहाँ आई.आई.टी. ! एन.आई.टी. ! आई.आई.एस.सी. ! आई.सर. आते थे ! अब इसका दायरा बढ़ाकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है !

दरअसल हेफा शिक्षण संस्थानों को अनुदान नहींं बल्कि उधार देगी ! यह बाज़ार से कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) और निजी परोपकारी दानकर्ताओं के जरिये पूँजी इकठ्ठा करेगी और शिक्षण संस्थानों को देगी ! परन्तु ! इस उधार का मूलधन शिक्षण संस्थानों को खुद ही चुकाना होगा व ब्याज केंद्र सरकार चुकायेगी ! यानी जनता का पैसा निजी कोर्पोरेटो को समर्पित कर देगी !

उच्च शिक्षा में फंडिंग करने का यह मॉडल अमेरिका के ‘येल मॉडल’ के आधार पर बनाया गया है ! जहां उच्च शिक्षा में निवेश सरकार के बदले निजी क्षेत्रों से आता है ! इसका यह परिणाम भी निकला है कि अमेरिका में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करना बहुत महँगा हो चुका है ! अब इस पूरे खेल को समझिये ! इस फैसले से केंद्र सरकार कई चीज़ों पर निशाना साध रही है !

अब वह विश्वविद्यालयों पर सीधा नियंत्रण भी कर सकेगी ! क्योंकि पिछले कुछ समय से मोदी सरकार की फासीवादी नीतियों के खिलाफ सबसे ज्यादा प्रतिरोध के स्वर विश्वविद्यालयों से आये है ! अब इन सुधारों के जरिये वह इस पर लगाम लगा सकेगी ! साथ ही शिक्षण संस्थानों को सीधे-सीधे बाज़ार के हवाले किया सकेगा| इसके लिए सीएसआर जैसा शब्द भी इजाद किया जा चुका है ! अब पूँजीवाद में अगर कोर्पोरेट पूँजीपति अगर कहीं पैसा लगाएगा तो मुनाफा कमाना उसका मुख्य ध्येय होगा ! अब तो यह केंद्र सरकार ही समझ सकती है कि बाज़ार और चन्द परोपकारी पूँजीपतियों की “भलमनसाहत” से उच्च शिक्षा का कितना “भला” हो सकता है?

लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि ज्यादतर निजी शिक्षण संस्थान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहींं कराते ! एक तरफ बाज़ार के हाथों में उच्च शिक्षा को निजी विश्वविद्यालय कुकुरमुत्ते की तरह खुलते रहे वहीं सरकारी विश्वविद्यालयों की हालत बद से बदतर होती रही ! 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 677 विश्वविद्यालय है जिनके अन्तर्गत करीब 37 !204 कॉलेज है !

लेकिन वास्तविकता में इनमे से ज्यादातर सिर्फ डिग्री देने वाले संस्थान भर है ! एक हालिया सर्वे के अनुसार सिर्फ 18 प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातक ही नौकरी कर पाने के लायक है वहीं केवल 5 प्रतिशत अन्य विषयों के स्नातक छात्र नौकरी करने के लायक है ! देशभर के विश्वविद्यालयों में करीब 65000 शिक्षकों के पद खाली हैं ! राज्य विश्वविद्यालय की बात छोड़ भी दें तो देश के सैंतालीस केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में करीब 47 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली हैं ! यहाँ तक की आईआईटी जैसे संस्थानों में भी करीब 40 प्रतिशत पद खाली हैं ! ऐसे वक़्त में जब उच्च शिक्षा पर सरकारी खर्चे बढ़ाने की जरूरत है उस वक्त सरकार शिक्षा से विनिवेश की तैयारी कर रही है !

अब आप ही सोचिये अगर ये प्रस्तावित बदलाव संसद में पास हो गये तो यह कितना भयावह होगा ! 12वीं पास करने वाली आबादी का केवल 7 प्रतिशत ही विश्वविद्यालयों की दहलीज़ तक पहुँच पाता है ! इन तथाकथित सुधारों के बाद उच्च शिक्षा आम मेहनतकश आबादी की पहुँच से ही दूर हो जाएगी !

अब एक उदाहरण लीजिये ! बिहार के शिवहर जिला की औसत वार्षिक आय 7000 रु है ! बिहार के अधिकतर जिलों की औसत आय 15000 रु से कम ही है ! कमोबेश ऐसा ही हाल उड़ीसा और झारखंड जैसे राज्यों का भी है ! इन इलाकों से आने वाले छात्रों के लिए यह तथाकथित सुधार विनाशकारी होगा ! इन सुधारों के कारण होगा यह कि आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों से आने वाले छात्र उच्च शिक्षा तक नहीं पहुँचेंगे और बहुत मुमकिन है कि वे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर बनेंगे !

इस प्रकार ऐसे पिछड़े इलाके उद्योगों के लिए मजदूरों की सप्लाई चेन बन जायेंगे ! भारत के छात्र-युवा आन्दोलन के लिए अब यह आवश्यक है कि इसके लिए संगठित हो क्योंकि अब बड़ी छात्र आबादी के लिये अस्तित्व का संकट ही पैदा हो चुका है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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