कोरोना की कहानी एक अमेरिकी उपन्यास से शुरू हुई थी : Yogesh Mishra

“आईज़ ऑफ़ डार्कनेस” अमेरिकी लेखक “डीन कोन्टोज़” का एक रहस्य-रोमांच उपन्यास है ! जो सबसे पहली बार 1981 में प्रकाशित हुआ ! जबकि इसके ठीक पहले अमेरिका के जॉर्जिया स्टेट में जब 1980 में एक विशेष ग्रह नक्षत्रों में तंत्र की सहायता लेकर विश्व सत्ता के कुछ अज्ञात व्यक्तियों द्वारा एक शिलालेख की स्थापना की गई थी ! जिसके कार्य सिद्धि का जिम्मा पिशाचों को दिया गया है ! जिसमें विश्व सत्ता का सबसे पहला कार्य विश्व के 750 करोड़ की आबादी को घटा कर मात्र 50 करोड़ करना है !

यह उपन्यास एक माँ पर केंद्रित है, जो यह पता लगाने के लिये खोज करती है, कि क्या उसका बेटा एक साल पहले सही में मर गया था या फिर वह अभी भी जीवित है !

इसमें एक माँ अपने बेटे को शिविर यात्रा पर एक ऐसे व्यक्ति के साथ भेजती है ! जिसने इस यात्रा से पहले अब तक 16 बार बिना किसी दुर्घटना के पहाड़ों पर यात्रा को पूरा किया था ! लेकिन इस बार सभी के सभी टूरिस्ट, लीडर और ड्राइवर सभी बिना किसी स्पष्टीकरण के मारे जाते हैं !

जैसा कि यह पीड़ित मां जो की इस उपन्यास की नायिका है ! इस तथ्य को स्वीकार करना शुरू कर देती है कि उसका बेटा, डैनी मर चुका है, तभी पता नहीं कैसे उसे कुछ अजीब संकेत मिलने लगते हैं जैसे कि बोर्ड पर लिखे कुछ शब्द, प्रिंटर से निकले शब्द आदि जो इस बात का संकेत करते हैं कि उसका बेटा अभी जिन्दा है ! तब वह अपने नये दोस्त, इलियट स्ट्राइकर, के साथ बेटे की खोज में निकल पड़ती हैं और यह पता लगाना चाहती है कि उसके बेटे की ‘मृत्यु’ के दिन वास्तव में हुआ क्या था !

जिस खोज में उसे अमेरिकी और चीनी देशों के उस जैविक हथियारों के बारे में काफी कुछ पता चलता है ! जिसके द्वारा यह देश मिलकर पूरे दुनियां की आबादी कम कर देना चाहते हैं !

इस पूरी किताब में लेखन से क रोना से जुड़े जो कमाल के तथ्य दिये हैं उसके अनुसार इसमें तो वह जगह भी बतलायी गयी है जहाँ क रोना बनाया गया था ! लेकिन सबसे ज्यादा अचरज की बात यह है कि जिस क रोना वायरस को लेकर आज पूरी दुनिया चिंतित है, उसका न सिर्फ इस किताब में जिक्र है बल्कि उसके उद्गम के तौर पर चीन के ठीक उसी वुहान प्रांत के उस स्थान का भी जिक्र है, जहां से वाकई में यह वायरस फैलया गया बतलाया जाता है !

इस उपन्यास में “ली चेन” नाम के एक व्यक्ति का भी जिक्र है जो चीन के एक महत्वाकांक्षी “जैविक हथियार प्रोजेक्ट” की जानकारी चुराकर अमेरिका को बेच देता है क्योंकि चीन इस वायरस के जरिये दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी देश के किसी भी क्षेत्र से इंसानों को खाली कर देने की ताकत हासिल करना चाहता है, लेकिन अमेरिकी एजेंसियां बमुश्किल ही सही इस खतरनाक जैविक हथियार का तोड़ तलाश लेती हैं और चीन के मनसूबे पर पानी फिर जाता है !

इस किताब में क रोना “जैविक हथियार प्रोजेक्ट” का नाम “वुहान 400” रखा गया है और किताब में यह तर्क दिया गया है कि इसे चीन के वुहान प्रांत के बाहरी क्षेत्र में बनाया गया है इसलिये इसे वुहान और कोड में 400 इसलिये जोड़ा गया क्योंकि यह इस लैब में तैयार किया गया विश्व का 400 वां जैविक हथियार है !

पर एक कमाल की बात यह भी है कि इस किताब में दूसरे वायरस का भी जिक्र किया गया है वह है खतरनाक “इबोला वायरस” ! जिससे पिछले कुछ समय से दुनिया रुबरु हो रही है ! इन दोनों का ही जिक्र इस किताब में शामिल है !

यदि किताब के तर्क को मानें तो यह वायरस इंसानी शरीर से बाहर एक मिनट भी जीवित नहीं रह पाता है और इस तरह का संक्रामक वायरस तैयार करने से आक्रमण करने वाले देश के लिये कब्जा करना आसान हो जाता है क्योंकि इस वायरस का संक्रमण मृत इंसानों के साथ ही खत्म भी होते जाता है ! इस थ्रिलर उपन्यास के कई और भी चौंकाने वाले तथ्य हैं !

जैसे वैज्ञानिक इस तथ्य पर भी बहुत ध्यान दे रहे हैं कि क्या मरने के बाद भी यह वायरस जिन्दा रहता है तो इस किताब में बतलाया गया है कि संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद जैसे ही लाश का तापमान 86 डिग्री फेरनहाइट या इससे कम पर हो जाता है, तो यह वायरस तुरंत ही मर जाता है ! जो वास्तव में व्यवहारिक रूप से सही पाया गया है !

बताया जाता है कि इस किताब को पढ़ने के बाद विश्व की बड़ी बड़ी दवाईयां बनाने वाली कंपनियां और मेडिकल से जुड़ी हस्तियां ने इस विषय पर “मानवता को बचाने के लिये” काम शुरू किया और उसका परिणाम आज विश्व देख रहा है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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