चमचा और अंधभक्त में अंतर : Yogesh Mishra

प्रायः लोग अंधभक्त और चमचे को एक ही मान लेते हैं ! लेकिन यह गलत है ! दोनों में ही गुणधर्म, प्रवृत्ति, आचार-विचार और उद्देश्यों के अनुरूप बहुत अंतर होता है !

चमचा वह नायाब जीव है ! जो अपने मालिक से किसी विशेष स्वार्थ के प्रयोजन के लिये जुड़ा होता है ! यह सदैव प्रत्यक्ष और साक्षात जीवित व्यक्ति की चाटुकारिता करके अपने कार्य को निकालने के प्रयास में रहता है जबकि इसके विपरीत अंधभक्त बिना किसी स्वार्थ के अपने जीवित या मृत आदर्श का गुणगान समाज में करता फिरता है ! प्राय: अंधभक्त का मालिक से कभी कोई निजी साक्षात्कार नहीं होता है ! किन्तु बिना किसी स्वार्थ और प्रयोजन के मात्र अपने आत्म संतोष के लिये अंधभक्त अपने आदर्श या मालिक का समाज में सकारात्मक प्रचार प्रसार करते रहते हैं !

चमचा प्रायः राजनीतिक व्यक्ति होता है और राजनीति में कोई बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ किसी जीवित राजनीतिज्ञ के आगे पीछे घूमता रहता है जबकि अंधभक्त जीवित व्यक्ति की तरह ही मरे हुये व्यक्ति की भी प्रशंसा करता रहता है ! इसका उद्देश्य कोई निजी राजनीतिक लाभ लेना नहीं होता है बल्कि भावनात्मक रूप से जीवित या मरे हुये दोनों ही प्रकार के व्यक्तियों का यह गुणगान करता रहता है !

चमचा प्रायः जब किसी सामाजिक व्यक्ति का कोई कार्य अपने किसी राजनैतिक संपर्क से करवाता है तो उसमें कुछ न कुछ आर्थिक लाभ की जुगाड़ देखता रहता है किंतु इसके विपरीत अंधभक्त अपने आदर्श के गुणगान करने के लिये अपनी जेब से भी अपने सामर्थ्य के अनुसार धन लगाने को सदैव तत्पर रहता है और जबकि वह जानता है कि जो पूंजी वह लगा रहा है ! उससे उसे भविष्य में कोई लाभ नहीं होगा किंतु फिर भी आत्म संतोष के लिये वह अपने पास से धन और समय दोनों ही अपने आदर्श के प्रचार प्रसार के लिये व्यय करता रहता है !

चमचा प्रायः चरित्र में दूषित और आहार-विहार में सर्व भक्षी होता है अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि चमचा सिगरेट भी पीता है ! दारू भी पीता है ! मांसाहार का सेवन भी करता है और अवसर मिल जाये तो परस्त्रियों का भोग भी कर लेता है किंतु अंधभक्त प्रायः ऐसा नहीं होता है यह सात्विक प्रवृत्ति के आहार विहार से संतुष्ट रहता है ! वह सिगरेट, गुटखा, पान मसाला आदि से दूर नशीले पदार्थों का सेवन न करने वाले, मांसाहार की तरफ देखते भी नहीं हैं ! परस्त्री गमन की तो बात ही छोड़ दीजिये क्योंकि इनका उद्देश्य अपने आदर्श के अनुरूप एक उच्च व श्रेष्ठ समाज बनाना होता है ! इसलिये यह लोग सामाजिक विकृत से दूर रहने का भरसक प्रयास करते हैं !

चमचा देश काल परिस्थितियों के अनुसार अपने बयान बदलता रहता है ! अवसर के हिसाब से उसकी निष्ठा भी बदलती रहती है ! लेकिन अंधभक्त ऐसा नहीं होता है ! उसकी निष्ठा सदैव अपने जीवित या मृत आदर्श के प्रति रहती है और वह अपने जीवन के अधिकांश समय अपने आदर्श के बयानों का ही प्रचार प्रसार करता है ! उसका अपना कोई निजी बयान नहीं होता है ! यह बात अलग है कि अपने आदर्श के बयानों की व्याख्या वह अलग-अलग समय पर अलग-अलग शब्दों से करता है किंतु उनके सभी व्याख्याओं का भाव एक ही होता है !

चमचा प्राय: राजनैतिक व्यक्ति के आसपास या राजनीतिक कार्यालय के आसपास ही दिखलाई देते हैं ! इसके विपरीत अंधभक्त एक वायरस की तरह संपूर्ण समाज में फैले होते हैं ! यह चाय बनाने वाले से लेकर टॉप क्लास के प्रशासनिक अधिकारियों के रूप में कहीं भी मिल जाते हैं ! प्राय: समाज में कोई ऐसा स्थान नहीं होता है जहां पर कोई न कोई अंधभक्त के दर्शन न होते हों !

चमचा अवसर और कार्य के अनुसार विपरीत विचारधारा के व्यक्ति से भी सामंजस्य बिठा लेता है ! किंतु अंधभक्त कभी भी अपने आदर्श के विपरीत विचारधारा के व्यक्ति के साथ किसी भी तरह का सामंजस्य नहीं बिठा पाता है ! चाहे अंधभक्त का कितना भी बड़ा नुकसान क्यों न हो जाये !

चमचा को यदि उसके राजनैतिक आदर्श के व्यक्ति से कोई नुकसान होने की संभावना होती है तो वह चमचा तत्काल उस राजनीतिक व्यक्ति से दूरी बना देता है किंतु इसके विपरीत अंधभक्त जिस किसी के साथ भी निष्ठा रखता है ! वह आदर्श पुरुष उस अंधभक्त का कितना भी नुकसान कर दे लेकिन अंधभक्तों की उस आदर्श पुरुष के प्रति निष्ठा में कभी कोई कमी नहीं आती है ! विशेष परिस्थितियों में वह अंधभक्त कुछ समय के लिये निष्क्रिय हो सकता है ! लेकिन थोड़ा भी अनुकूल वातावरण बनते ही वह पुनः पूरे जोश के साथ सक्रिय हो जाता है !

यह सब बेसिक अंतर है !एक चमचा और अंधभक्त के मध्य ! इसी तरह के और भी अनेकों अंतर और वर्गीकरण किये जा सकते हैं ! लेख लंबा हो रहा है अतः मैं इसको यहीं रोकता हूं !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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