साम्राज्यवादी ताकतों की कूटनीति : Yogesh Mishra

हिटलर के बढ़ते प्रभाव से परेशान होकर उस समय के सबसे बड़े साम्राज्य ब्रिटेन ने जर्मन को लोकतंत्र की तरफ वापस लाने के लिये तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार सर चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन जिन्हें लोग चार्ली चैप्लिन के नाम से भी जानते हैं ! जो उस समय अमेरिकी सिनेमा के क्लासिकल हॉलीवुड युग के प्रारंभिक एक महत्वपूर्ण फिल्म निर्माता, संगीतकार और संगीतज्ञ रहे उनके द्वारा 1940 में एक फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ के माध्यम से लोकतंत्र के पक्ष में एक कालजयी स्पीच दिलवाई थी !

जिसका बाद में तरह-तरह से प्रचार प्रसार भी किया गया और सबसे अद्भुत बात यह थी कि इस फिल्म में चार्ली चैप्लिन भाषण देते समय हिटलर जैसे कपड़े पहनाये गये थे ! शायद यह कपड़े ही इस बात का संकेत थे कि दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य ब्रिटेन उस समय हिटलर से कितना खौफ खाता था !

“माफ कीजिए, लेकिन मैं सम्राट बनना नहीं चाहता ! यह मेरा काम नहीं है ! मैं किसी पर हुकूमत नहीं करना चाहता, किसी को हराना नहीं चाहता ! बल्कि मैं हर किसी की मदद करना पसंद करूंगा ! युवा, बूढ़े, काले, गोरे सभी की ! हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं ! इंसान की फितरत ही यही है ! हम सब साथ मिल कर खुशी से रहना चाहते हैं, ना कि एक दूसरे की परेशानियां देखकर खुश होना ! हम एक दूसरे से नफरत और घृणा नहीं चाहते ! इस दुनिया में हर किसी के लिए गुंजाइश है और धरती इतनी अमीर है कि सभी की जरूरतें पूरी कर सकती है !

ज़िंदगी जीने का तरीका आजाद और खूबसूरत हो सकता है, लेकिन हम रास्ते से भटक गए हैं ! लालच ने इंसान के ज़मीर को जहरीला बना दिया है ! दुनिया को नफ़रत की दीवारों में जकड़ दिया है ! हमें मुसीबत और खून-खराबे की हालत में धकेल दिया है ! हमने रफ़्तार विकसित की है, लेकिन खुद को उसमें बंद कर लिया ! मशीनें बेशुमार पैदावार करती हैं, लेकिन हम कंगाल हैं ! हमारे ज्ञान ने हमें पागल बना दिया है ! चालाकी ने कठोर और बेरहम बना दिया है ! हम सोचते ज्यादा हैं और महसूस कम करते हैं ! मशीनों से ज़्यादा हमें इंसानियत की जरूरत है ! होशियारी कि जगह हमें नेकी और दयालुता की जरूरत है ! इन खूबियों के बिना ज़िंदगी हिंसा से भर जाएगी और सब कुछ खत्म हो जायेगा !

हवाई जहाज़ और रेडियो जैसे अविष्कारों ने हमें एक दूसरे के करीब ला दिया ! इन खोजों की स्वाभाविक प्रवृत्ति इंसानों से ज्यादा शराफत की मांग करती है ! दुनिया भर में भाईचारे की मांग करती है ! इस समय भी मेरी आवाज दुनिया भर में लाखों लोगों तक पहुंच रही है, लाखों निराश-हताश मर्दों, औरतों और छोटे बच्चों तक, व्यवस्था के शिकार उन मासूम लोगों तक, जिन्हें सताया और कैद किया जाता है ! जो मुझे सुन पा रहे हैं, मैं उनसे कहता हूं कि नाउम्मीद ना होइए ! जो बदहाली आज हमारे ऊपर थोपी गयी है, वो लोभ-लालच का, इंसानों की नफ़रत का नतीजा है ! लेकिन एक न एक दिन लोगों के मन से नफरत खत्म होगी ही ! तानाशाह ख़त्म होंगे और जो सत्ता उन लोगों ने जनता से छीनी है, उसे वापस जनता को लौटा दिया जायेगा ! आज भले ही लोग मारे जा रहे हो, लेकिन उनकी आज़ादी कभी नहीं मरेगी !

सिपाहियो! अपने आप को धोखेबाजों के हाथों मत सौंपो ! उन लोगों को जो तुमसे नफरत करते हैं, तुम्हें गुलाम बनाकर रखते हैं ! जो तुम्हारी ज़िंदगी के फैसले करते हैं ! तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है ! जो तुम्हें खिलाते हैं, तुम्हारे साथ पालतू जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं ! अपने आप को इन बनावटी लोगों के हवाले मत करो ! मशीनी दिल और मशीनी दिमाग वाले इन मशीनी लोगों के हवाले ! तुम मशीन नहीं हो ! तुम पालतू जानवर भी नहीं हो ! तुम इंसान हो! तुम्हारे दिलों में इंसानियत के लिए प्यार है !

तुम नफरत नहीं करते! नफरत सिर्फ वो लोग करते हैं जिनसे कोई प्यार नहीं करता, सिर्फ अप्रिय और बेकार लोग ! सैनिकों, गुलामी के लिए नहीं, आज़ादी के लिए लड़ो !

सैंट ल्युक के 17 वे अध्याय में लिखा है , ‘भगवान का साम्राज्य इंसान के भीतर ही है’ ! यह साम्राज्य किसी एक इंसान या किसी ख़ास समूह के भीतर नही, बल्कि सभी इंसानों के अंदर है ! तुम में भी ! तुम में ही मशीनों को बनाने की शक्ति है ! खुशियां इजाद करने की शक्ति है ! तुम में ही अपनी ज़िंदगी को खूबसूरत और आज़ाद बनाने की ताकत है ! तुम ही इसे रोमांचक यात्रा बना सकते हो !

तो लोकतंत्र के नाम पर आइए इस ताकत का इस्तेमाल सब को एकजुट करने के लिए करें ! एक ऐसी दुनिया के लिए लड़ें, जो सभी इंसानों को काम करने के समान मौके दे ! जो देश के युवाओं का भविष्य सुनिश्चित और बूढें लोगों का बुढ़ापा सुरक्षित करे ! इन्हीं वादों के साथ क्रूर लोग सत्ता में आये हैं ! लेकिन वो झूठ बोलते हैं ! उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए ! कभी करेंगे भी नहीं ! तानाशाह खुद तो आज़ाद हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बनाते हैं ! आइए उन वादों को पूरा करवाने के लिए जंग लड़ें ! दुनिया को मुक्त करने के लिए लड़ें ! राष्ट्रीय सीमाओं से मुक्त हो जाए ! लालच, नफरत और घृणा से मुक्त हो जाएं ! एक ऐसी दुनिया के लिए संघर्ष करे, जहां विज्ञान और विकास खुशियों के पथ-प्रदर्शक हो !

यह थी उस समय दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य ब्रिटेन की औकात ! दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रिटेन ने एक सोची समझी रणनीति के तरह पूरे दुनिया को लोकतंत्र की तरफ मोड़ा ! जिससे कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते ब्रिटेन उसके बराबर शक्तिशाली न बन सके ! लेकिन दुर्भाग्य है कि आज वही लोकतंत्र हमारे देश में लागू है जो हमारे देश की अंतर्कलह और निर्बलता का कारण है ! यह है साम्राज्यवादी ताकतों की कूटनीति !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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