क्या एलियंस आज भी हिमालय के तपस्वियों से मिलते हैं ! : Yogesh Mishra

हम सब जानते हैं कि हमारे पूर्वज योग शक्ति से दूसरे ग्रहों की यात्रा किया करते थे ! जिनका विभिन्न शास्त्रों में भी वर्णन पाया जाता है ! दूसरे ग्रह के लोग भी पृथ्वी पर हमारे पूर्वजों से निरंतर संपर्क किया करते थे ! महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद ज्ञानी और तपस्वी पूर्वज समाज से हटकर हिमालय में जाकर रहने लगे और तपस्या करने लगे !

ऐसी स्थिति में उनके जो दूसरे ग्रहों के लोगों से संपर्क थे ! वह आज की सक्रिय हैं ! इस संदर्भ में दर्जनों बार दूसरे ग्रहों के अन्तरिक्ष यान हमारी पृथ्वी पर देखे गये हैं किंतु वह लोग किससे मिलने आते हैं और क्या वार्ता करते हैं यह आज भी रहस्य है ! इस तरह की सबसे अधिक घटना हिमालय के तिब्बत क्षेत्र में हुआ करती हैं ! जो हजारों साल से तपस्वियों का आध्यात्मिक केंद्र रहा है ! जहाँ आज भी दिव्य संत निवास करते हैं ! इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सूचनायें जो रिकॉर्ड में हैं ! मैं आज उनका वर्णन करता हूं !

अब प्रश्न यह है कि क्या एलियंस आज भी हिमालय के तपस्वीयों से मिलने आते हैं ! विश्व भर के वैज्ञानिक मानते हैं कि दूसरे ग्रह के लोग धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर तपस्वी लोगों से मिलने आते हैं ! उन जगहों में से एक महत्वपूर्ण जगह हिमालय भी है ! पर भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं ! लेकिन वह अस्विकार भी नहीं करते हैं !

भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010 में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उडऩे वाली अनजान वस्तुओं (यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी ! लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया ! जबकी भारतीय सेना के अधिकारियों और हिमाचल प्रदेश ग्रामीणों का दावा है कि यूएफओ को हिमालय के ऊंचाई पर ग्लेशियरों के पास देखा गया है !

पहली घटना 20 अक्टूबर, 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला उज्जवल चमकती रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती में उतरते देखा !

दो प्रकाश उत्सर्जक करीब तीन फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के छह पैर और चार आंखें थीं ! यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे, वह जवान के पास पहुंचे और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ ज़ोर्ग ग्रह का रास्ता पूछने लगे !

इसी प्रकार दूसरी घटना के अनुसार 15 फरवरी 2012 दोपहर तकरीबन 2.18 पर, भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर, एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और आठ भारतीय कमांडो, एक कुत्ते, तीन पहाड़ी बकरियों और एक बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले गायब हो गई ! बाद में छह कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल में पाया गया ! आज भी दो लापता हैं ! बचे हुये लोगों को यह घटना याद नहीं ! इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नज़दीक भेड़ चरा रहा था !

एक और घटना में 22 जून को शाम 5.42 बजे, एक बड़ा अंडाकार अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नज़र आया ! ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा ! रिपोर्टों में उर्द्धत किया गया कि वह करीब एक बड़े वायुयान के माप का था ! जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था !

आइ.टी.बी.पी. की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि यह गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं ! ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है ! यह वह नहीं था ! सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है ! इनमें 62 पूर्वी सेक्टर के लद्दाख में देखे गये थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में ! इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गये थे जहां आइ.टी.बी.पी. की तैनाती थी !

पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गये हैं ! पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत अक्साइ चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में सेना की भारी तैनाती है ! इस साल लगातार आइ.टी.बी.पी. के ऐसे प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी !

जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वह रडार की जद में नहीं आ सके. इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है. स्पेक्ट्रम एनलाइजर भी इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका. इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. इसे पहचानने में कोई मदद नहीं मिली. ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया लेकिन उड़ते हुये प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका !

भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पी.वी. नाइक कहते हैं, ‘हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते ! हमें पता लगाना होगा कि उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है !’

भारतीय वायु सेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था ! पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख में यूएफओ का दिखना बढ़ा है ! 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी ! सियाचिन पर तैनात सैन्य टुकडिय़ों ने भी चीन की तरफ तैरते हुये प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उडऩे का खतरा रहता है !

लोग हंसी उड़ाई या सत्य माने किंतु यह सत्य है कि आज भी दूसरे ग्रहों के निवासी हमारी धरती के तपस्वी संतो की संपर्क रखते हैं और समय-समय पर पृथ्वी पर होने वाली राजनीतिक उथल-पुथल में भी अपनी भागीदारी निभाते हैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण द्वितीय विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर की मदद करते हुये उन्हें देखा गया है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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