क्या आज भारत को भी एक हिटलर की आवश्यकता है ! : Yogesh Mishra

इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण हैं कि कोई इन्सान क्या बनने और करने की ख्वाहिश रखता है और क्या बन जाता है ! 20 अप्रैल 1889 को जन्मे अडोल्फ़ हिटलर का किस्सा भी उन्हीं में से एक है ! यह एक चित्रकार बनना चाहते थे ! पर राजनैतिक व्यक्ति बन गये ! जिन्होंने विश्व के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया !

एक अनुमान के मुताबिक़ जर्मन द्वारा अपने स्वाभिमान रक्षा के लिये लड़े गये दुसरे विश्व युद्ध की लड़ाई में दुनिया की तकरीबन 3.7% आबादी खत्म हो गयी थी अर्थात इसमें 6 करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं ! पहले विश्वयुद्ध के चार मुख्य कारण थे जिनकी वजह से जर्मन को द्वितीय विश्वयुद्ध लड़ना पड़ा ! सामरिक गुट बाज़ी, उपनिवेशवाद, हथियारों की दौड़ और राष्ट्रवाद ! आगे चलकर राष्ट्रवाद ने ही नस्लवाद का रूप ले लिया ! इसे दूसरा विश्व युद्ध कहने से बेहतर है कि यह कहा जाये कि प्रथम विश्वयुद्ध जो राजनैतिक कारणों से बिना निर्णायक स्थिती के जो बीच में रुक गया था ! उसी द्वितीय विश्वयुद्ध लड़ना पड़ा ! इस तरह यह दोनों युद्ध एक ही थे !

अगर आंकड़ों से अलग हट कर विचार करें तो पायेंगे कि हिटलर कोई व्यक्ति नहीं यह एक आत्म सम्मान की मानसिकता थी ! जो प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम से उपजी थी ! जब अपने साम्राज्य विस्तार के लिये इंग्लैंड ने जर्मन को अपने आधीन आने के लिये कहा तब जर्मन ने इंग्लैंड को साफ मना कर दिया ! उस स्थिति में इंग्लैंड और जर्मनी मध्य प्रथम विश्वयुद्ध हुआ और इस पूरे युद्ध का खर्चा जीतने के बाद इंग्लैंड ने जर्मन को ऊपर “कर” के रूप में इसलिये लगा दिया कि जब मैंने तुमसे अपने आधीन आने के लिये कहा था ! तो तुमने मुझसे युद्ध क्यों किया ! यह अंग्रेजों द्वारा अनावश्यक थोपा हुआ “कर” जर्मन निवासियों के स्वाभिमान के विरुद्ध था ! इसीलिये हिटलर के नेतृत्व में जर्मन ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा ! इस युद्ध में हिटलर द्वारा दुष्ट शत्रु अंग्रेजों का नामोनिशान मिटा देने का प्रयास था !

हिटलर में यह सोच भर गयी थी कि यहूदियों ने प्रथम विश्वयुद्ध में आर्थिक लाभ के कारण अंग्रेजों का साथ दिया इसलिये जर्मनी पहला विश्वयुद्ध हार गया था ! उसका यह मानना था कि जर्मन लोग दुनिया में सबसे ज़्यादा उन्नत बुद्धि रखते हैं ! हम जर्मन के लोग शुद्ध आर्य रक्त अर्थात एक दैवीय अवतार हैं !

हिटलर यह जनता था कि अंग्रेजों द्वारा थोपा गया लोकतंत्र असल में वह मकड़जाल जिससे जर्मन कभी नहीं निकल पायेगा ! इसलिये उसके लोकतंत्र के विरोध में जर्मन की संसद जला दी थी ! तब संसद में बैठे गणमान्य लोगों में यह फ़र्क कर पाना मुश्किल है कि कौन सत्ता में है और कौन प्रतिपक्ष में ! या यूँ कहिये कौन जर्मन के साथ है या कौन अंग्रेजों के साथ !

जिन कारणों से द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था ! उनका स्वरुप आज भी भारत के परिपेक्ष में बदला नहीं है ! बस आवश्यकता है एहसास करने की !

एडोल्फ हिटलर के कारण हुये द्वितीय विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की आर्थिक कमर टूट जाने के बाद धन के आभाव में विश्व के अनेक देशों को टुकड़े टुकड़े कर के औपनिवेशिक दर्जे की आजादी दे दी गयी थी ! उस समय इंग्लैंड द्वारा विश्व में स्थापित किये गये 54 उपनिवेश देश जो उस समय राष्ट्रकुल कोमन बैल्थ के आधीन थे वह आज भी विश्व के नक्शे पर मौजूद हैं ! उनमें एक भारत भी है !

अंग्रेजों के समय के बनाये गये शोषणवादी कानून आज भी भारत में उसी कठोरता से लागू है ! भारतीय नागरिकों को डंडे के जोर से नियंत्रित करने वाली पुलिस आज भी अपने विभत्स्य प्रदर्शन दिखाती रहती है ! न्याय के नाम पर भटकाने वाली न्यायपालिका आज भी उसी लहजे में भारत के आम आवाम को न्याय के लिये भटका रही है !

अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया संविधान आज भी भारत में लोकतंत्र के नाम पर भारत के स्वाभिमान का गला घोंट रहा है ! शिक्षा के नाम पर अंग्रेजों द्वारा जारी की गई ! संस्कार विहीन शिक्षा पद्धति आज भी बच्चों के मन और मस्तिष्क दोनों को दूषित कर रही है ! अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई भारत की शोषणवादी अर्थव्यवस्था आज भी अमीरों को और अमीर बना रही है और गरीब और गरीब बनता जा रहा है !

अपनी अय्याशी के लिये अंग्रेजों ने शासन सत्ता के नाम पर जो सुविधायें पाल रखी थी ! उनका उपभोग आज भी शासन सत्ता में बैठे हुये लोग उसी शौक से कर रहे हैं ! गुलाम और शासक के मध्य की जो दूरी अंग्रेजों ने बनाई थी ! वह आज भी भारत की आम जनता और शासन के बीच में मौजूद है !

सुविधाओं के नाम पर बांटा जाने वाला धन आज भी सत्ता के लालची दलाल लूट लेते हैं और कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है ! संसद के अंदर रोज एक दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाये जाते हैं लेकिन अंग्रेजों द्वारा बनाये गये लचर कानून व्यवस्था में यह आरोप-प्रत्यारोप न तो कभी सिद्ध होते हैं और न ही इन पर दंड का निर्धारण होता है ! जबकि जानते सब हैं !

शासन सत्ता के नुमाइंदे आज भी जनता के टैक्स से इकट्टा किये गये धन से अपना वेतन भत्ता तो ले रहे हैं लेकिन आज भी उनकी जनता के प्रति कोई भी जवाबदेही नहीं है ! उद्योग जगत के अंदर जो शासन सत्ता के करीबी लोग हैं उन्हें ही विकास करने का अवसर मिल रहा है और भारत का आम उद्योगपति आज भी अंग्रेजों द्वारा बनाये गये कानूनी व्यवस्था के संघर्ष को झेल रहा है !

आज अंग्रेजों के कानून और न्यायपालिका के कारण भारत में कोई भी परिवार, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक दृष्टिकोण से सुरक्षित नहीं है ! छोटी-छोटी बच्चियों के साथ रोज बलात्कार करके उनकी हत्या कर दी जा रही है ! किसान अंग्रेजों के शासन काल की तरह आज भी फांसी लगा रहा है !

विकास और तकनीक के नाम पर भारत में जो परोसा गया ! उसने अश्लीलता और मानसिक विकृति के अलावा कुछ भी नहीं दिया है ! मीडिया हाउस से लेकर दैनिक समाचार पत्र, पत्रिका तक के अंदर 1-1 समाचार बिका हुआ प्रायोजित है !

ऐसी स्थिति में क्या आपको यह नहीं लगता है कि भारत को अपने संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिये एक हिटलर जैसा ही कट्टर राष्ट्रवादी नेता की आवश्यकता है ! जो बिना किसी लाग लपेट और भेदभाव के बस सिर्फ राष्ट्र के हित में निर्णय ले और अंग्रेजों के समय के बनाये हुये सारे कानूनी ढांचे को तोड़कर भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप भारतीय परिवेश के लिये नये विधिक ढांचे का निर्माण करे ! जिससे आम जनता को तत्काल न्याय प्राप्त हो सके !

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आज शासन और जनता के मध्य दूरी है ! वह अब तथाकथित आजादी के बाद अब समाप्त होनी चाहिये ! धर्म और धन के नाम पर जो शोषण किया जा रहा है ! वह अब तत्काल बंद होना चाहिये !

शासन सत्ता के अंदर बैठे हुये लोग वह चाहे प्रशासनिक अधिकारी हों या जनसेवा इन सभी के ऊपर राष्ट्र के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये ! वास्तव में आज इसी सब की जरूरत है और अगर ऐसा नहीं हुआ तो जिस तरह देश बराबर पतन की ओर जा रहा है ! वह दिन दूर नहीं जब भारत खंड-खंड में बंट जायेगा और उस समय भी सत्ता के दलाल और राजनेता अपनी अय्याशी में डूबे होंगे और इन नेताओं के सम्मान में अंधभक्त कसीदे पढ़ रहे होंगे !

निसंदेह आज भारत में हिटलर जैसा कोई कट्टर राष्ट्रप्रेम ही देश को बचा सकता है ! यदि ऐसा कोई है तो हम उसे सहर्ष अपना नेता मानने को तैयार हैं और मेरी समझ में इस निर्णय में किसी और को भी विलंब नहीं करना चाहिये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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