पुरुषार्थ बड़ा है या भाग्य | सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला प्रश्न : Yogesh Mishra

एक अधिवक्ता और ज्योतिषी होने के नाते प्रायः मेरे समक्ष आम चर्चा में यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि पुरुषार्थ बड़ा है या भाग्य ! आज मैं इस विषय पर अपना मत व्यक्त कर रहा हूं !

मेरे दृष्टिकोण में जीवन में न पुरुषार्थ बड़ा है और न ही भाग्य ! बल्कि सत्य तो यह है कि जीवन में सफलता के लिये दोनों ही एक दूसरे पर आश्रित हैं !

इसको आप दूसरे अर्थ में समझिये जैसे एक व्यक्ति को अपनी यात्रा आरंभ करके किसी लक्ष्य पर पहुंचना है ! उसके पास एक मोटरसाइकिल है ! वह मोटरसाइकिल एकदम ठीक है ! लेकिन उसमें पेट्रोल नहीं है ! ऐसी स्थिति में वह जीवन रूपी यात्रा आरंभ करने वाला व्यक्ति कितनी भी अच्छी मोटरसाइकिल चलाना जानता हो अर्थात कितना बढ़िया योजनाकार हो, पुरुषार्थी हो ! लेकिन वह उस मोटरसाइकिल का उपयोग नहीं कर सकता है !

दूसरी तरफ मोटरसाइकिल एकदम ठीक है उसमें पूरा पेट्रोल भी भरा हुआ है लेकिन वह व्यक्ति मोटरसाइकिल चलाना ही नहीं चाहता है ! तो उस स्थिति में भी व्यक्ति उस मोटरसाइकिल का उपयोग नहीं कर सकता है !

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति का “जन्म” यात्रा का आरंभ है और “मृत्यु” जीवन का लक्ष्य ! इस पूरी की पूरी यात्रा को करने में “ज्ञान” रूपी मोटरसाइकिल उसकी सहायक है ! उस मोटरसाइकिल को चलाने की कला व इच्छा उसका “पुरुषार्थ” है और उस मोटरसाइकिल के अंदर उपलब्ध पेट्रोल उसका “भाग्य” है !

यदि व्यक्ति की जीवन रूपी यात्रा में मोटरसाइकिल के अंदर “प्रारब्ध” रूपी पेट्रोल नहीं है ! तो व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से उस मोटरसाइकिल को चलाने की कितनी भी अच्छी कला सीख ले ! लेकिन वह अपनी जीवन यात्रा को सुख पूर्वक नहीं चला पायेगा !

बल्कि वह ज्ञान रूपी मोटरसाइकिल ही उस व्यक्ति के जीवन पर एक बोझ बन जायेगी और अवसद का कारण होगी ! जैसे बिना पेट्रोल की मोटरसाइकिल को ढकेल का पेट्रोल पंप पर ले जाना हो जाता है ! उस समय वह “ज्ञान” रूपी जीवन यात्रा में सहायक वह मोटरसाइकिल उस व्यक्ति के लिये बोझ है !

दूसरी तरफ मोटरसाइकिल ठीक है अर्थात हमारे जीवन के सारे संसाधन ठीक हैं ! उसमें भाग्य रूपी पेट्रोल भी भरा हुआ है ! लेकिन हम कर्म रूपी पुरुषार्थ करना नहीं चाहते हैं अर्थात उस मोटरसाइकिल को चलाना नहीं चाहते हैं ! तो उस स्थिति में भी मात्र पेट्रोल रूपी भाग्य की शक्ति से व्यक्ति स्वत: उस मोटरसाइकिल में बैठकर कहीं नहीं पहुंचेगा !

इसलिए यह तर्क ही बेकार है कि भाग्य बड़ा है या पुरुषार्थ !

बल्कि सत्य यह है कि दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं न पुरुषार्थ के बिना व्यक्ति अपने जीवन में सफल हो सकता है और न पुरुषार्थ को फलित करने वाली ऊर्जा भाग्य की सकारात्मक शक्ति के बिना ही व्यक्ति अपने जीवन में सफल हो सकता है !

अर्थात भाग्य रूपी ऊर्जा संसार में पुरुषार्थ को फलित करती है ! तभी व्यक्ति जीवन में सफल होता है ! यहाँ कोई गणित, कोई योजना काम नहीं करती है ! वर्ना यदि पुरुषार्थ से ही सब कुछ हो रहा होता तो नेपोलियन जेल में न मारा होता और हिटलर ने आत्म हत्या न की होती ! सुभाष चन्द्र बोष को अज्ञातवास न काटना पड़ता और राम की जवानी जंगल में न गुजरती !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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