आज पूरी दुनिया दो खेमे में बाँट गई है ! एक यह मानती है कि भगवान ही इस दुनिया को चला रहा है, यदि भगवान की कृपा प्राप्त न की जाये तो, इस दुनिया में जीना और सफल होना असंभव है !
वही समाज का दूसरा वर्ग यह मानता है कि यह पूरी की पूरी सृष्टि कार्य और कारण की व्यवस्था से चल रही है ! आपके जीने या सफल होने में भगवान की कोई भूमिका नहीं है !
अब प्रश्न यह है कि इन दो विरोधाभासी विचारधारा में कौन सी विचारधारा सत्य के अधिक निकट है !
विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि ईश्वर का होना या न होना, यह संदेह का विषय ही नहीं है क्योंकि ईश्वरीय ऊर्जा से ही यह सृष्टि संचालित और व्यवस्थित है !
अब दूसरा विषय क्या भगवान की कृपा से ही हम जिंदा रह कर सफल हो सकते हैं !
इस विषय पर मेरा विचार अन्य लोगों से भिन्न है ! कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को सफलता ईश्वर की कृपा से नहीं बल्कि लोक व्यवहार की समझ से मिलती है !
जो व्यक्ति लोक व्यवहार की जितनी अच्छी समझ रखता है, वह व्यक्ति अपने जीवन में उतना अधिक सफल हो सकता है !
यह दुनिया मानवीय संवेदनाओं से चलती है ! मानवीय संवेदना का आप जितना अच्छी तरह से अर्थ में रूपांतरण कर सकते हैं ! आप जीवन में उतने अधिक सफल हों सकेंगे !
जबकि सृष्टि संचालन में किसी मानवीय संवेदना का कोई स्थान नहीं है ! यह प्रकृति के कार्य कारण की व्यवस्था से संचालित है !
इसलिए प्रकृति ने हमको जीवित बनाये रखा और इसी योग्य बनाया कि हम इस संसार में सफल हो सकें ! इसके लिये प्रकृति को धन्यवाद है !
किन्तु संसार में सफल होने के लिए “मानवीय संवेदना का मनोविज्ञान” यदि आप नहीं जानते हैं तो आप कितनी भी योग्यता, प्रतिभा रखते हों ! आप इस संसार में सफल नहीं हो सकते हैं !
सांसारिक सफलता का ईश्वर के पूजा-पाठ, कर्मकांड, अनुष्ठान, व्रत, फल-प्रसाद, मेवा, फूल-माला, धूपबत्ती आदि से कोई सम्बन्ध नहीं है !
सांसारिक सफलता नितांत मानवीय संवेदना के मनोविज्ञान का विषय है ! जो व्यक्ति इसमें जितना अधिक पारंगत होगा ! वह इस संसार में उतना अधिक सफल होगा ! यही सांसारिक सफलता का सूत्र है !!