जैसा कि विश्व के सभी अर्थशास्त्री घोषणा कर रहे हैं कि दिसंबर 2022 से जुलाई 2023 तक पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में आ जाएगी ! इस तरह की घोषणा अपने आप में यह सिद्ध करती है कि आर्थिक मंदी आती नहीं बल्कि प्रायोजित तरीके से लायी जाती है !
अब प्रश्न यह है कि पिछले 100 वर्षों में जब से पूरी दुनिया में साम्राज्यवादी शक्तियों ने उद्योग धंधों के साथ लोकतंत्र का विस्तार किया तब से लगभग हर 10 से 15 वर्ष के अंतर पर पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी क्यों आ जाती है ?
जबकि उद्योग घरानों की आर्थिक योजनाओं की हर नीति बहुत ही अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित की जाती है !
इसका सीधा सा जवाब है कि व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में जिन लोगों ने अपना एकाधिकार बना रखा है, वह लोग नहीं चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रतिस्पर्धा में नये उद्योगपति आकर उन्हें चुनौती दें !
इसीलिए जब हर 10-15 साल में यह लोग यह महसूस करने लगते हैं कि छोटे छोटे व्यापारी उनकी प्रतिस्पर्धा में उन्हें चुनौती देने लायक हो गये हैं, तब यह बड़े-बड़े उद्योग घराने एक बड़ी योजना के तहत 6 से 8 महीने के लिए पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी लाते हैं ! जिसमें अधिकांश नवोदित उद्योगपति अनुभव के आभाव में आर्थिक बोझ से नष्ट हो जाते हैं या फिर अपना व्यवसाय बड़े उद्योगपतियों को देखकर अपने को आर्थिक बोझ से मुक्त कर लेते हैं और इस तरह बड़े उद्योगपतियों की प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाती है !
इसी को व्यवसायिक जगत में मत्स्य व्यवसाय कहा जाता है ! अर्थात बड़ी मछली अवसर देखकर छोटी मछली को निगल जाती है !
लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के बेरोजगार नौजवानों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है ! यदि थोड़ी सूझबूझ और सही तरीके से इस अवसर का इस्तेमाल किया जाये तो यह भारतीय नौजवानों के लिए एक बहुत बड़ा स्वर्णिम अवसर है !