भगवान कहीं नहीं है : Yogesh Mishra

भगवान कहीं नहीं है : Yogesh Mishra

दुनिया के सारे धर्म ग्रंथ मानव द्वारा निर्मित हैं ! सभी मंत्र, चालीसा, स्त्रोत, पुराण, उपनिषद, दर्शन, वेदान्त आदि सभी कुछ मनुष्य ने अपनी अनुभूति और समझ के आधार पर निर्मित किये हैं !

इन सभी धर्म ग्रंथों के निर्माण के पीछे एक मात्र उद्देश्य अपने धर्म समूह में मनुष्य की संख्या बढ़ाकर अपने को अधिक से अधिक ताकतवर बनाना है ! जिससे वह समाज दूसरे मानव समूह का शोषण कर सके और एक विशेष धर्म को चलाने वाले उसका लाभ उठा सकें !

हजारों साल से धर्म के नाम पर यही होता आया है इसीलिये विश्व के इतिहास में जितनी हत्याएं धर्मगुरुओं ने करवाई उतनी सामान्य अपराधियों ने भी कभी नहीं की होंगी !

इसीलिए मैं कहता हूं कि यदि मनुष्य अपना समग्र विकास करना चाहता है तो उसे इस पृथ्वी से हिंसा को खत्म करने के लिए सबसे पहले विभिन्न धर्म गुरुओं द्वारा संचालित धर्म की दुकानों को बंद करना होगा !

आज मनुष्य अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा धर्म गुरुओं को अपने परिवार की आवश्यकताओं को नज़र अंदाज करके अपने धर्म प्रसार के लिए बिना किसी उपयोगिता के दे देता है और धर्म गुरु आज भी आपके मेहनत के पैसे से अपने विलासिता के संसाधन इकट्ठे करके आराम की जिंदगी जी रहे हैं !

अब मनुष्य उस भौतिक स्तर पर पहुंच गया है जहां कि उसे किसी भी धर्म की कोई आवश्यकता नहीं है ! मनुष्य यह समझ चुका है कि यह समस्त ब्रह्मांड कार्य और कारण की व्यवस्था से संचालित है !

किसी भी मूर्ति के सामने ढोलक मजीरा पीटने से या चालीसा, स्त्रोत के जाप करने से कहीं कुछ भी नहीं होने वाला है !

बल्कि सच्चाई तो यह है कि मनुष्य अपने हिंसक और अपराधिक व्यक्तित्व को छुपाने के लिए अपने धार्मिक होने का आडंबर करता है

84 लाख योनियों में बस सिर्फ मनुष्य ही है, जो धर्म के नाम पर मनुष्यों का अलग-अलग समूह बनाता है और उन समूहों को ताकतवर करने के लिए अपने मेहनत से अर्जित धन, ऊर्जा और सम्मान को व्यर्थ ही व्यय करता है !

ईश्वर कि यह समग्र व्यवस्था प्रकृति के पूर्व निर्धारित सिद्धांतों से संचालित है ! यदि आप इस में अवरोध करेंगे तो उसके दुष्परिणाम आपको भोगने ही होंगे ! आपको कोई भगवान नहीं बचा सकता और यदि आपने ईश्वर के इस कार्य कारण की व्यवस्था में सहयोग किया है, तो निश्चित तौर से प्रकृति आपका सहयोग करेगी !

यही सिद्धांत इस पूरे ब्रह्मांड को चला रहा है, यदि कोई धर्मगुरु कहता है कि दान, पुण्य, पूजा, भागवत, अनुष्ठान आदि से आप प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत जाकर भी ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, तो वह झूठ बोलता है !

इसलिए प्रकृति के कार्य कारण की व्यवस्था को समझ कर उसको सहयोग बनिये न कि मानव निर्मित किसी भी धर्म ग्रन्थ में ईश्वर की कृपा ढूंढये ! यही प्रकृति का स्पष्ट निर्देश है !

किसी भी धर्म गुरु के बहकावे में आकर प्रकृति से मत लड़िये, नहीं तो यह प्रकृति आप को नष्ट कर देगी और कोई भी भजन, कीर्तन, ढोलक, मजीरा, मंत्र, अनुष्ठान, आदि आपके कार्य नहीं आयेगा !

दूसरे शब्दों में कहा जाये तो प्रकृति कार्य कारण की व्यवस्था से संचालित है, न कि किसी कपोल कल्पित भगवान से !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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