यह घटना तब की है जब प्राचीन भारत में पश्चिमोत्तर से आये डकैत मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से एक चौथाई सदी बीत चुकी थी ! तोड़े गये मन्दिरों, मठों और चैत्यों के ध्वंसावशेष अब टीले का रूप ले चुके थे ! उनमें उपजे वन में विषैले जीवोँ का आवास था ! यहां के वायुमण्डल में अब भी कासिम की सेना का अत्याचार गूंज रहा था ! बलत्कृता कुमारियों चीख और सरकटे युवाओं का चीत्कार आज भी संवेदन शील व्यक्ति महसूस कर सकता था !
कासिम ने अपने अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जीवित नही छोड़ा था ! अस्तु अब इस क्षेत्र में हिन्दू प्रजा अत्यल्प ही थी ! संहार के भय से इस्लाम स्वीकार कर चुके कुछ निरीह परिवार यत्र तत्र दिखाई दे जाते थे ! पर उल्लास का कोई चिन्ह कहीं नही था ! कुल मिला कर एक शमशान सा वातावरण था !
इस कथा का उसी शमशान से मात्र इतना सम्बंध है कि इसी शमशान में जन्मा एक बालक जो कासिम के अभियान के समय मात्र आठ वर्ष का था ! वह इस कथा का मुख्य पात्र है ! उस वीर का नाम था तक्षक ! मुल्तान विजय के बाद कासिम के सम्प्रदायोन्मत्त आतंकवादियों ने गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था ! हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोची गयीं थीं और हजारों बालिकायें अपनी शील की रक्षा के लिये कुंए तालाब में डूब मर गयी थीं ! लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया ! अरब ने पहली बार भारत को अपने धर्म का वीभत्स रूप दिखलाया था और भारत ने पहली बार मानवता की इतनी बड़ी हत्या देखी थी !
तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर के सैनिक थे ! जो इसी कासिम की सेना के साथ हुये युद्ध में वीरगति पा चुके थे ! लूटती अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया ! स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी चौखट पर ही उनकी देह लूटी जाने लगी ! भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे !
तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी ! तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी ! माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी ! फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला ! उसके बाद काटी जा रही गाय की तरह बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया ! आठ वर्ष का बालक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था ! उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया !
पचीस वर्ष बीत गये ! तब का अष्टवर्षीय तक्षक अब बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था ! वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था ! वह न कभी खुश होता था और न कभी दुखी होता था ! उसकी आँखे सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं ! उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने और सुनाये जाते थे ! अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिये एक उच्च आदर्श था !
कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति और अरबों के सफल प्रतिरोध के लिये ख्यात थे ! सिंध पर शासन कर रहे अरब के डकैत कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे ! पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते थे ! युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते थे ! जिसके कारण वह बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे ! ऐसा पंद्रह वर्षों से चल रहा था !
आज फिर महाराज की सभा लगी थी ! कुछ ही समय पुर्व गुप्तचर ने सुचना दी थी कि अरब के डकैत खलीफा से सहयोग लेकर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिये प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी !
इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिये महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी ! नागभट्ट का सबसे बड़ा गुण यह था कि वह अपने सभी सेनानायकों का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे ! आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे ! अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला- महाराज हमे इस बार वैरी को उसी की शैली में उत्तर देना होगा !
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर देखा और बोले ! अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे !
तब तक्षक ने कहा महाराज अरब सैनिक महा बर्बर है ! उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे ! उनको उन्ही की शैली में हराना होगा ! महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं बोले- “किन्तु हम धर्म की मर्यादा नही छोड़ सकते हो सैनिक” !
तक्षक ने कहा “मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों ! यह बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं ! महाराज इनके लिये हत्या और बलात्कार ही इनका धर्म है ! पर यह हमारा धर्म नही है ! राजा का धर्म केवल एक ही होता है महाराज और वह है प्रजा की रक्षा करना !
देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज ! जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था ! ईश्वर न करे यदि हम पराजित हुये तो बर्बर अत्याचारी अरबी भी हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप जानते हैं महाराज !”
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा ! सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था ! महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गये ! अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा !
आधी रात्रि बीत चुकी थी ! अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी ! अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी ! अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी ! वह उठते सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरबी सेना गाजर मूली की तरह काट डाले गये थे !
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था ! वह अपनी तलवार चलाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी ! उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी ! सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी किन्तु आश्चर्य ! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे ! दोपहर होते-होते समूची अरब सेना काट डाली गयी ! अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले अरबी आतंकियों को पहली बार किसी ने उन्हीं की भाषा में ऐसा उत्तर दिया था !
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था ! सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा ! लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी ! उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया ! कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया !
युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा- “आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक…. भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था ! आप ने मातृभूमि के लिये प्राण लेना सिखा दिया ! भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा !”
इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई थी !