रत्नों पर कोई चर्चा करने के पहले “मैं” यह बतला देना चाहता हूं कि रत्नों को धारण करने का कोई भी विधान हमारे ऋषियों-मुनियों ने किसी भी “सनातन ज्योतिष ग्रंथ” में नहीं दिया है ! यह पद्धति “यूनान” से भारत आयी है और भारत में “रत्न के व्यवसायीयों और ज्योतिषियों” की मदद से आर्थिक कारणों से विकसित हुई है !
इस संदर्भ में “सनातन ज्ञान पीठ” ने गत 8 वर्षों में लगभग 12000 से अधिक कुंडलियों पर गहन विश्लेषण किया है ! और यह पाया कि भारत के अंदर प्रचलित अधिकांश “रत्न धारण करने के सिद्धांत” या तो ज्योतिष के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं या फिर लोग अज्ञानतावश रत्न धारण करते या करवाते हैं ! लेकिन इसका तात्पर्य यह कभी नहीं के “रत्न” हमारे जीवन को प्रभावित नहीं करते हैं ! बस आवश्यकता है “सही समय पर सही रत्न धारण करने की” !
मैं “सनातन ज्ञान पीठ” में अपने शोध के द्वारा यह बतलाना चाहता हूं कि “अनावश्यक रुप से धारण किया गया रत्न, आपके विनाश का कारण भी बन सकता है !” जो लोग प्रायः बिना इस विज्ञान को समझे-बूझे रत्न धारण करते हैं ! वह निश्चित रुप से अपने “धन, स्वास्थ्य और सम्मान आदि” की क्षति करते हैं !
इसलिए किसी भी रत्न को धारण करने के पहले निम्न 5 बिंदुओं पर विचार जरूर करना चाहिये !
नंबर: 1 – जिस रत्न को मैं धारण करने जा रहा हूं “वह रत्न मेरे शरीर के रसायन के अनुरूप है या नहीं !”
नंबर: 2 – जिस रत्न को मैं धारण करने जा रहा हूं “वह वर्तमान समय में मेरी जन्मकुंडली की महादशा, अंतर्दशा और ग्रहों की गोचर स्थिति के अनुरूप है या नहीं !”
नंबर: 3 – जो रत्न में धारण करने जा रहा हूं “उस रत्न का वर्ण, वजन, आकार, व धारण करने वाली धातु, मेरे शरीर के रसायनों के अनुरूप है या नहीं !”
नंबर: 4 – सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस रत्न को मैं धारण करने जा रहा हूं “वह मेरे द्वारा की जाने वाली पूजा, जप, अनुष्ठान, दान, आहार, आदि के अनुरूप है या नहीं !
नंबर: 5 – “रत्न एक औषधि है !” अतः किसी भी व्यक्ति को इसे “अनावश्यक रूप से” धारण नहीं करना चाहिये ! अन्यथा “उसे लाभ के स्थान पर नुकसान का सामना करना पड़ता है !” जैसे कोई भी स्वास्थ्यवर्धक औषधि को बिना किसी प्रयोजन के खाने से स्वास्थ्य की क्षति होती है !
मेरा उद्देश्य “रत्न” पहनने वालों को हतोत्साहित करने का कतई नहीं है ! लेकिन प्रायः लोग किसी भी कारण से “गलत समय पर, गलत रत्नों को, गलत तरीके से, धारण करके बड़ी-बड़ी समस्याओं में फँस जाते हैं ! अतः रत्न को सदैव किसी विशेषज्ञ की राय से ही सही समय पर सही तरीके से धारण करना चाहिए ! आम अवधारणा पर पहना जाने वाला “रत्न” आपको क्षति पहुंचा सकता है !
बल्कि दूसरे शब्दों में यह कहूंगा कि पूरा प्रयास यह करना चाहिए कि “रत्न न पहनना पड़े तो अच्छा है !” लेकिन जब कभी भी “ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा रोकने के अन्य सारे विकल्प समाप्त हो गए हों” तभी विशेष परिस्थितियों में ही “रत्न” धारण करना चाहिए अन्यथा अनावश्यक रूप से पहना हुआ “रत्न” सदैव व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकता है !