हिमालय दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है | Yogesh Mishra

हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं ! जहाँ पूर्व में कभी देवी-देवताओं और तपस्वी आदि रह कर तप किया करते थे ! हिमालय में अनेकों जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफायें हैं ! इन गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं ! जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं ! इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्धि योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है ! उनके इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं !

भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है ! इसके अलावा उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं ! यह सभी अखंड भारत तपस्वीयों की तप स्थली रही है ! इन दिव्य संतो के दर्शन यदा कदा स्वत: ही हो जाते हैं !

पूर्वज बतलाते हैं कि हिमालय पर्वत में सिद्धाश्रम तथा ज्ञानगंज जैसे अनेक दिव्य आश्रम हैं ! जहाँ सिद्ध योगी और तपस्वी आदि रहते हैं ! तिब्बती लोग इसे ही शम्भल की रहस्यमय भूमि के रूप में पूजते हैं ! एक अन्य परम्परा के अनुसार सिद्धाश्रम तिब्बत क्षेत्र में कैलाश पर्वत के अत्यन्त निकट स्थित है !

इन अलौकिक आश्रमों का उल्लेख वेदों के अलावा अनेकों प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलता है ! स्वयं विश्वकर्मा ने ब्रह्मादि के कहने पर इस आश्रमों की रचना की थी ! ज्ञानगंज हिमालय में एक गुप्त भूमि में स्थित है ! जहां महान योगी, तपस्वी, साधु और ऋषि आदि रहते हैं ! यह स्थान तिब्बतियों द्वारा शम्भाला की रहस्यमय भूमि के रूप में भी प्रतिष्ठित है ! सिद्धाश्रम के यह सन्त ब्रह्मांड के कारण ऊर्जाओं के संपर्क में रहते हैं ! जो अपने दिव्य कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं !

सिद्धाश्रम की आध्यात्मिक चेतना, दिव्यता के केंद्र और महान ऋषियों की वैराग्य भूमि के आधार पर लोक कल्याण में लगी हुई है ! सिद्धाश्रम में यह लोग दृश्य व अदृश्य रूप में निवास करते हैं ! आम प्राणियों के लिये यह सिद्धाश्रम बहुत ही दुर्लभ दिव्य स्थान है ! लेकिन साधना प्रक्रिया के माध्यम से इसे जाना जा सकता है और इसमें प्रवेश भी किया जा सकता है ! इन दिव्य स्थलों पर रहने वाले संतों की ऊर्जा को आप उनकी कृपा के बिना समझ नहीं सकते हैं ! यहाँ प्रबुद्ध गुरु के आशीर्वाद से पहुँचा जा सकता है ! बशर्ते आपमें इन दिव्य शक्ति वाले संतों की ऊर्जा को सहने का समर्थ हो !

दिव्य ज्ञानीजनों के अनुसार महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, कणाद, पुलस्त्य, अत्रि, महायोगी गोरखनाथ, श्रीमद शंकराचार्य, भीष्म, कृपाचार्य को सूक्ष्म रूप में यहाँ देखा जा सकता है ! उनके उपदेश सुनने का सौभाग्य भी प्राप्त किया जा सकता है ! कई सिद्ध योगी, योगिनियां, अप्सरा, संत आदि इस दिव्य स्थान पर आज भी ध्यान साधना करते पाये जाते हैं ! सुंदर फूल, पेड़, पक्षी, सिद्ध-योग झील, ध्यान करने वाले दिव्य संतों की ऊर्जा मात्र से संचालित होते हैं !

भारत के कई उत्कृष्ट संन्यासी-योगी सिद्धाश्रम जा चुके हैं ! सिद्धियाँ उनके लिये महज खेल के समान हैं ! परकाया प्रवेश सिद्धि, आकाशगमन सिद्धि, जलगमन प्रक्रिया, हादि विद्या (जिसके माध्यम से बिना आहार ग्रहण किए वर्षों जीवित रहा जा सकता है ), कादि विद्या, ( इसके माध्यम से साधक या योगी कैसी भी परिस्थिति में अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है ! उस पर गरमी-सरदी, बरसात, आग, हिमपात आदि का कोई प्रभाव नहीं होता है ) !

काल सिद्धि, (जिसके माध्यम से हजारों वर्ष पूर्व के क्षण को या घटना को देख सकता है ! साथ ही आने वाले हजार वर्षों के कालखंड को जाना जा सकता है कि उसमें कहाँ-क्या घटित होने वाला है और वह किस प्रकार घटित होगा !) संजीवनी विद्या, (जो शुक्राचार्य या कुछ अन्य ऋषियों को ही ज्ञात थी, इसके माध्यम से मृत व्यक्ति को भी जीवनदान दिया जा सकता है )

इच्छामृत्यु, (इसके माध्यम से काल पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त होता है और साधक चाहे तो सैकड़ों-हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है ) कायाकल्प सिद्धि, (जिसके माध्यम से व्यक्ति शरीर में पूर्ण परिवर्तन लाया जा सकता है, ऐसा परिवर्तन कि वृद्ध एवं रोगी व्यक्ति भी सुँदर, युवा, रोगरहित व स्वस्थ रूप ले सकता है ) लोकगमन सिद्धि, ( इसके माध्यम से पृथ्वी लोक में ही नहीं, अपितु अन्य लोकों में उसी प्रकार विचरण किया जा सकता है, जैसे कि हम वाहन द्वारा एक शहर से दूसरे शहर में जाते हैं ! इसके माध्यम से व्यक्ति भू-लोक, भुवः लोक, स्वः लोक, महः लोक, जनः लोक, तपः लोक, सत्य लोक, चंद्र लोक, सूर्य लोक, पाताल और वायु लोक में भी जाकर वहाँ के निवासियों से मिल सकता है, वहाँ की श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त कर सकते हैं )

शून्य साधना, (इसमें प्रकृति से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है ! खाद्य सामग्री, वस्तु, बहुमूल्य हीरे, जवाहरात आदि शून्य से प्राप्त कर मनोवाँछित सफलता एवं संपन्नता पाई जा सकती है) सूर्य विज्ञान, (इसके माध्यम से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ में रूपांतरित किया जा सकता है ) ! हनुमान जी इसी विद्या को जानते थे ! तभी वह बिना किसी कष्ट के अपने रूप को परिवर्तित कर लेते थे ! कभी ब्राह्मण रूप में, कभी सूक्ष्म छोटे रूप में और कभी अति विशालकाय रूप में ! यह विद्या उन्होंने बचपन में ही सात वर्ष की आयु में ही सीख ली थी !

इसी तरह के हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलते हैं ! हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमालय चमत्कारों की खान है ! मेरा यह निजी अनुभव है कि हिमालय की इन दिव्य वादियों मे तीर्थ यात्रा करने मात्र से दमा, टी.बी., गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारियां स्वत: ठीक हो जाती हैं !

प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे ! मुण्डकोपनिषद् के अनुसार यहाँ सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है ! इनका केंद्र हिमालय उत्तराखंड में स्थित है ! इसी लिये इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है ! पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में मानव की उत्पत्ति विवस्ता नदी के किनारे ही हुई थी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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