भारत में बहुत सारें प्राचीन मंदिर है जो कुछ खास वजय से अपनी पहचान बनाये हुये हैं, ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश राज्य के लखीमपुर खीरी के अंतर्गत ओयल नामक कस्बे में स्थित है जिसका शिवलिंग स्वयं ही रंग बदलता है !
इस मंदिर का नाम “मेंढक मंदिर” भी है ! यह एक शिवालय है और इसका निर्माण चाहमान वंश के महाराज बक्श सिंह द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था ! उस समय इस मंदिर के आसपास का संपूर्ण इलाका भगवान शिव का उपासक था और यह क्षेत्र शिव सम्प्रदाय का ही माना जाता था ! इस मंदिर की वास्तु कला किसी आम व्यक्ति के द्वारा निर्धारित नहीं है, बल्कि इसका नक्शा मंडूक तंत्र के हिसाब से तत्कालीन महान तांत्रिक कपिला द्वारा बनाया गया था !
मेंढक मंदिर की पौराणिक कथा एक बार ओयल के राजा भक्त सिंह को एक मेंढक ने आशीर्वाद दिया ! जिसके बाद उस राजा को समृद्धि की प्राप्ति हुई और उसके आने वाली पीढ़ियों का जीवन भी उस मेंढक के आशीर्वाद से सुखमय बना रहा ! इसलिए इस मंदिर को उस दिव्य मेंढक के सम्मान में बनाया गया ! यहाँ तक कि राजा भक्त सिंह के वंशजों (क्षेत्र के शाही परिवार) का भी इस मंदिर के साथ एक विशेष सम्बन्ध है और यह इस क्षेत्र के मंदिर प्रबंधन का कभी एक मजबूत गढ़ हुआ करता था !
मेंढक मंदिर की संरचना इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है, इसकी अनोखी व सुन्दर वास्तुकला ! इस पूरी रचना को देखने से ऐसा लगता है कि, एक मेंढक के पीठ पर मंदिर का पूरा पवित्र स्थान स्थापित है ! मंदिर के सामने ही मेंढक की राजसी मूर्ति पर्यटकों के बीच उत्सुकता पैदा करती है ! मेंढक के पीछे ही शिव जी भगवान को समर्पित पवित्र स्थल है, जो एक गुम्बद के साथ चौकोर आकर में बना हुआ है !
मंदिर का पवित्र स्थल कुछ फ़ीट ऊंचाई पर बनाया गया है, जहाँ मंदिर परिसर में बने सीढ़ियों द्वारा पहुँचा जाता है ! ऐसा कहा जाता है कि, तांत्रिक विद्या के अनुसार यह पवित्र स्थल एक यंत्र(एक अष्टकोणीय कमल) पर बना हुआ है ! मंदिर की दीवारों पर तांत्रिक देवी देवताओं के चित्रों व तांत्रिक शैलियों को नक्काशी का काम करके उकेरा गया है ! मंदिर के अंदर कई अनोखे व विचित्र चित्र भी लगे हुये हैं, जो इस मंदिर को एक शानदार रूप देते हैं !
तांत्रिक तंत्र एक प्राचीन भारतीय पंथ है जिसका हिन्दू व बौद्ध धर्म पर गहरा प्रभाव है ! यह वैदिक परंपरा से भी पहले की परंपरा है जो स्त्री शक्ति को समर्थन (देवियों का इस परंपरा में बहुत महत्व है) करती है ! शक्ति(देवी), विशेष रूप से देवी के क्रूर(चंडी) रूप की पूजा इस परंपरा में की जाती है ! इस पंथ से कई रीति-रिवाज़ें व प्रथाएं उत्पन्न हुई हैं ! मेंढक मंदिर जिसे मांडलुक मंदिर भी कहते हैं, इसी तांत्रिक परंपरा का पालन करता है ! मंदिर की यात्रा इसमें कोई भी शक नहीं है कि मांडलुक मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में से एक है, जहाँ धार्मिक प्रथाओं को मान्यता दी जाती है ! मेंढक को अच्छी किस्मत व प्रजनन का प्रतीक माना जाता है ! इसलिए शादीशुदा जोड़े जो इस मंदिर के दर्शन को आते हैं, उन्हें एक स्वस्थ बच्चे से धन्य होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है ! इस क्षेत्र के आसपास के कई भक्त रोज़ इस मंदिर के दर्शन को आते हैं ! इस मेंढक मंदिर के दर्शन, सबसे ज़्यादा खास त्यौहार के मौकों पर किये जाते हैं, जैसे कि शिव रात्रि व दिवाली !
मेंढक मंदिर अपनी अद्भुत व असामान्य रचना के साथ उत्तरप्रदेश के सबसे पुराने जीवित मंदिरों में से एक है ! मंदिर के चारों ओर का दिव्य वातावरण एक प्रेरणादायक वास्तुकला के साथ हर बार यहाँ आने वाले यात्रियों को अपनी अदभुत्ता से अचंभित करता है ! यह मेंढक मंदिर भारत में कहाँ है? मेंढक मंदिर उत्तरप्रदेश के लखीमपुर जिले के छोटे से नगर ओयल में स्थापित है ! यह लखीमपुर से सीतापुर की तरफ जाने वाले रास्ते पर ही स्थापित है ! लखीमपुर, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है !
मेंढक मंदिर पहुंचें कैसे? मेंढक मंदिर या मांडलुक मंदिर, लखीमपुर से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ! यह इस जिले के अन्य क्षेत्रों से, सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ ! आप लखीमपुर से इस मंदिर तक पहुँचने के लिए कोई भी निजी व स्थानीय वाहन किराये पर ले सकते हैं !
करीब दो हेक्टेयर क्षेत्रफल में बना यह शिव मंदिर चारों ओर से 10 फिट ऊंची वर्गाकार चहारदीवारी से घिरा है ! मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है जबकि चारों दिशाओं में चार छोटे निकास द्वार हैं ! मंदिर के पश्चिम में एक गुप्त द्वार भी है ! परिसर में एक कुआं बना हुआ है जिसका जलस्तर हमेशा भूतल के बराबर रहता है !
मंदिर एक विशाल मेढक की पीठ पर बना है ! मेढक का मुंह उत्तर दिशा में है ! पिछला हिस्सा दक्षिण दिशा में दिखाई देता है ! अगले और पिछले पैर पूर्व और पश्चिम दिशा में दिखते हैं ! मेढक की पीठ पर 15 फिट ऊंचा चबूतरा बनाया गया है ! चबूतरे की आकृति श्री यंत्र की है ! सीढ़ियों पर सहस्त्र दल कमल अंकित है ! सीढ़ियां पार करने के बाद भव्य गर्भ गृह में पहुंचते हैं ! गर्भ गृह में नर्मदेश्वर से लाया गया दिव्य शिवलिंग स्थापित है !
सफेद संगमरमर की जिस देवचौकी पर यह शिवलिंग स्थापित है वह भी सहस्त्र दल कमल की आकृति से अलंकृत है ! मंदिर में नंदी और वीरभद्र की मूर्तियां भी स्थापित हैं ! मंदिर में नंदी की खड़ी मूर्ति स्थापित है ! नंदी की खड़ी प्रतिमा भी मंदिर की एक विशेषता है ! आम तौर पर शिव मंदिरों में नंदी की प्रतिमा बैठी मुद्रा में होती है लेकिन यहां नंदी की प्रतिमा खड़ी मुद्रा में है ! मंदिर की ऊंचाई 120 फिट है ! मंदिर का शिखर गायों का झुंड, चक्र और गंगा की प्रतिमा से सुशोभित है !
मंदिर के बाहरी दीवारों पर देवताओं, ऋषियों, अप्सराओं, यति महारथियों और पशु पक्षियों की आकृतियां अंकित हैं ! मंदिर परिसर के चारों कोनों पर चार अन्य मंदिर हैं ! यह मंदिर दो मंजिला हैं लेकिन इनमें से किसी में भी कोई देवमूर्ति स्थापित नहीं है ! मुख्य मंदिर और चारों कोनों पर बने चार मंदिर एक दरबार का दृश्य बनाते हैं ! पूरा मंदिर परिसर हरे भरे पेड़ पौधों से आच्छादित है ! यहां का प्राकृतिक परिवेश आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है !
सावन के महीने में यहां दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु पवित्र नदियों के जल से अभिषेक करते हैं ! शिवरात्रि के मौके पर यहां विशेष तांत्रिक और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं !
साथ ही इस मंदिर की दीवारों पर शिव साधना की कलाकृतियां भी मौजूद हैं ! इस मंदिर के शिवलिंग को पवित्र नर्मदा नदी से लाया गया था, इसलिए शिवलिंग को “नर्मदेश्वर महादेव” के नाम से इस मंदिर में जाना जाता है ! यह नर्मदेश्वर महादेव नामक शिवलिंग अपना रंग स्वयं ही बदलता रहता है ! यही इस मंदिर के शिवलिंग की खासियत है, साथ ही इस मंदिर में आपको नंदी की प्रतिमा अन्य मंदिरों के जैसे बैठे हुये नहीं बल्कि खड़े हुये मिलती है ! यह मंदिर वर्तमान में इस सारे इलाके की ऐतिहासिक गरिमा का प्रतीक बना हुआ है !