नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास : Yogesh Mishra

शायद यह बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का ! दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है ! नेपाल का मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है ! यह मंदिर भव्य है और यहां पर देश-विदेश से पर्यटक आते हैं !

पशु अर्थात जीव या प्राणी और पति का अर्थ है स्वामी और नाथ का अर्थ है मालिक या भगवान ! इसका मतलब यह कि संसार के समस्त जीवों के स्वामी या भगवान हैं पशुपतिनाथ ! दूसरे अर्थों में पशुपतिनाथ का अर्थ है जीवन का मालिक !

माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था ! पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं ! पाशुपत संप्रदाय के इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किन्तु कुछ जगह पर यह उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था !

605 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण छूकर अपने को अनुग्रहीत माना था ! बाद में इस मंदिर का पुन: निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था ! दीमक की वजह से मंदिर को बहुत नुकसान हुआ, जिसकी कारण लगभग 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया !

बाद में मध्य युग तक मंदिर की कई नकलों का निर्माण कर लिया गया ! ऐसे मंदिरों में भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं ! मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ है ! इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया !

अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल की कुछ बाहरी इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयी थी जबकि पशुपतिनाथ का मुख्य मंदिर और मंदिर की गर्भगृह को किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई थी !

पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था ! बाद में ‘माल्ला राजवंश’ के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया ! दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे ! वर्तमान में प्रचंड सरकार के काल में भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का प्रभाव सौंप दिया गया !

यह मंदिर प्रत्येक दिन प्रातः 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है ! केवल दोपहर के समय और साय पांच बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है ! मंदिर में जाने का सबसे उत्तम समय सुबह सुबह जल्दी और देर शाम का होता है ! पुरे मंदिर परिसर का भ्रमण करने के लिए 90 से 120 मिनट का समय लगता है !

नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर काठमांडू के पास देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है ! मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति है ! पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है ! प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंदल मौजूद है ! मान्यता अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है !

कहते हैं कि यह पांचों मुंह अलग-अलग दिशा और गुणों का परिचय देते हैं ! पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं ! उत्तर दिशा की ओर वाले मुख को वामवेद या अर्धनारीश्वर कहते हैं और दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं ! जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है !

इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं ! वे चारों दरवाजे चांदी के हैं ! पश्चिमी द्वार की ठीक सामने शिव जी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा है जिसका निर्माण पीतल से किया गया है ! इस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई मंदिर और प्रतिमाएं है ! पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है !

यह मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का एक अच्छा मिश्रण है ! मुख्य पगोडा शैली का मंदिर सुरक्षित आंगन में स्थित है जिसका संरक्षण नेपाल पुलिस द्वारा किया जाता है ! यह मंदिर लगभग 264 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 518 मंदिर और स्मारक सम्मिलित है ! मंदिर की द्वी स्तरीय छत का निर्माण तांबे से किया गया है जिनपर सोने की परत चढाई गई है !

मंदिर वर्गाकार के एक चबूतरे पर बना है जिसकी आधार से शिखर तक की ऊंचाई 23m 7cm है ! मंदिर का शिखर सोने का है जिसे गजुर कहते हैं ! परिसर के भीतर दो गर्भगृह है एक भीतर और दुसरी बाहर ! भीतरी गर्भगृह वह स्थान है जहां शिव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है जबकि बाहरी गर्भगृह एक खुला गलियारा है !

भीतरी आंगन में मौजूद मंदिर और प्रतिमाओं में वासुकि नाथ मंदिर, उन्मत्ता भैरव मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, कीर्ति मुख भैरव मंदिर, बूदानिल कंठ मंदिर हनुमान मूर्ति, और 184 शिवलिंग मूर्तियां प्रमुख रूम से मौजूद है जबकि बाहरी परिसर में राम मंदिर, विराट स्वरूप मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंग और पंद्र शिवालय गुह्येश्वरी मंदिर के दर्शन किए जाते हैं ! पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य घाट स्थिति है ! पौराणिक काल से ही केवल इसी घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाए जाने का प्रावधान है !

पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है !

हालांकि शर्त यह है कि पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन ना करे ! यदि वो ऐसा करता है तो फिर अलगे जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है ! मंदिर की महिमा के बारे में आसपास के लोगों से आप काफी कहानियां भी सुन सकते हैं ! मंदिर में अगर कोई घंटा-आधा घंटा ध्यान करता है तो वह जीव कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त भी हो जाता है !

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे ! जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी ! कहा जाता हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था ! इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे !

दूसरी कथा एक चरवाहे से जुड़ी है ! कहते हैं कि इस शिवलिंग को एक चरवाहे द्वारा खोजा गया था जिसकी गाय का अपने दूध से अभिषेक कर शिवलिंग के स्थान का पता लगाया था !

तीसरी कथा भारत के उत्तराखंड राज्य से जुडी एक पौराणिक कथा से है ! इस कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है ! कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी !

जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है ! एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है ! पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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