शैव तन्त्र बदनाम कैसे हुआ ? : Yogesh Mishra

जिसे आम लोग तंत्र के नाम से जानते हैं वह है जादू-टोना, जिसका कोई दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार नहीं है और जिसकी बुनियाद में सदियों से चले आते अंधविश्वास हैं !

जबकि तंत्र वास्तव में अंधविश्वास को तोड़ता है ! तंत्र निराकार, सर्वव्यापी परब्रह्म को जानने का क्रांतिकारी और वैज्ञानिक तरीक़ा है !

तंत्र के प्रणेताओं में प्रमुख हैं : दत्तात्रेय,परशुराम , नारद, पिप्पलादि , वसिष्ठ, सनक, शुक, सनन्दन तथा सनतकुमार ! इसी से समझा जा सकता है कि इसे प्राचीन काल के वरेण्य बुद्धिजीवियों ने कितने शोध के बाद आम आदमी के लिये प्रतिपादित किया होगा !

तंत्र के अनुसार ब्रह्मांड की रचना शिव ने की है ! हमारे शरीर के अंदर लघु ब्रह्मांड है, जिसमे शिव के रूप में जीवनी ऊर्जा मूलाधार में ही विराजमान है ! तांत्रिक मंत्र मूलतः नाद -स्वर हैं, जो ब्रह्मांड में भी मौज़ूद हैं ! जब हम किसी महाविद्या का मंत्र जाप करते हैं तो ब्रह्मांड में मौज़ूद उस नाद से जुड़ जाते हैं !

जहाँ तक बलि का सवाल है, जिस जीव की आप बलि ले रहे हैं उसका सृजन भी तो शिव ने ही किया है, तो आपके लाभ के लिये उसकी मृत्यु को वह कैसे और क्यों पसंद करेंगे ? स्पष्ट है कि बलि कृत्रिम रूप से आरोपित प्रक्रियाएँ हैं जो कुछ शताब्दियों से तंत्र के नाम पर जोड़ दी गयी हैं !

शैव मत में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं ! महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक ! शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं ! 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाये !

कौल मार्ग के साधक मद्य, माँस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन नामक पंच मकारों का सेवन करते हैं ! ब्रह्मरंध्र से स्रवित मधु मदिरा है, वासना रूपी पशु का वध माँस है, इडा-पिगला के बीच प्रवाहित श्वास-प्रश्वास मत्स्य है ! प्राणायाम की प्रक्रिया से इनका प्रवाह मुद्रा है तथा सहस्रार में मौज़ूद शिव से शक्ति रूप कुण्डलिनी का मिलन मैथुन है

बाद में मध्यकाल के पूर्वार्द्ध में ( 6-10 शती) कुछ ऐसे लोग भी तांत्रिक साधना में घुस आये जिन्होने मकारों का भौतिक अर्थ इस्तेमाल करना शुरू किया,जो वामाचार के पतन और बदनामी का कारण बना !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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