आर्थिक लोकतंत्र की हत्या क्या “जीएसटी” से होगी ? Yogesh Mishra

“लोकतंत्र” में “लोक” चाहे जितना चीखता चिल्लाता रहे “तंत्र” अपना कार्य कर ही देता है ! ठीक इसी तरह आज से लगभग 70 साल पहले 15 अगस्त 1947 को भारत की तथाकथित औपनिवेशिक दर्जे की आजादी का उत्सव भारत के संसद के केंद्रीय भवन में आधी रात को मनाया गया था !

उस समय भी हिंदुस्तान के जागरुक और भविष्यदर्शी नागरिकों ने यह कहा था कि आज होने वाली घटना हिंदुस्तान के हित में नहीं है और भविष्य में हिंदुस्तान को इसके बड़े गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे ! वक्त गुजरा काल के प्रवाह ने हमें यह बतलाया कि उस समय के भविष्यद्रष्टाओं ने जो कहा था वह सही था !

आज हिंदुस्तान आजाद तो हो गया लेकिन हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा “हिंदी” हिंदुस्तान से ही विलुप्त हो गई ! हिंदुस्तान का आम आवाम आज न तो अपनी राष्ट्रीय भाषा में न्याय प्राप्त कर सकता है और न ही रोटी-रोजगार की तलाश कर सकता है ! आज हिंदुस्तान के अंदर हिंदुस्तानी अपने हिंदू धर्म का स्वतंत्रता के साथ पालन भी नहीं कर सकते हैं ! भारत पर कभी आक्रमण करने वाले आक्रांताओं और ठगों के धर्म को अल्पसंख्यक के नाम पर भारत में प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि यह धर्म पश्चिम के ब्रिटिश शासन की देन था ! उन्हीं की शिक्षा पद्धति आज हमारे आने वाले पीढ़ीयों के चिंतन को दूषित कर उन्हें संवेदनाविहीन और बेगान बना रही हैं ! यह सत्य हम सभी जानते हैं लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि “लोक” इस “तंत्र” के आगे असहाय है !

ठीक इसी तरह “लोक” के अत्यंत गंभीर विरोध के बाद भी आज 30 जून 2017 की मध्य रात्रि को संसद के उसी केंद्रीय भवन में “तंत्र” ने “जी एस टी” पास कर के भारत के आर्थिक गुलामी के इतिहास की शुरुआत कर ही दी !

ऐसा मेरा मानना है कि आने वाले समय में “जीएसटी” के कारण विदेशों से आने वाली बड़ी-बड़ी व्यवसायिक कंपनियां हिंदुस्तान के आम आदमियों से उनके रोटी का हक छीन लेंगी ! क्योंकि उन कंपनियों के पास यह तर्क होगा कि भारत की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ने उन्हें भारत में व्यवसाय करने के लिए आमंत्रित किया है, न की भारतीयों को रोटी खिलाने के लिये !

उनको विश्व में जहां भी सस्ता मजदूर मिलेगा ! वह अपने व्यवसायिक कंपनियों के साथ उन्हें भी लेकर भारत में आएंगे और भारत का मजदूर भारत में ही सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर होगा ! भारत के अंदर की बड़ी-बड़ी कंपनियां इन विदेशी कंपनियों के साथ उनकी शर्तों पर समझौता कर लेंगी लेकिन भारत के छोटे और मध्यम व्यवसाई इन बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा के आगे नष्ट हो जाएंगे !

जिस देश के अंदर मात्र 6 घंटे बिजली आती हो ! व्यवसाइयों के पास कंप्यूटर नहीं हो न ही वह उन्हें चलाना जानता हो ! उसके पास अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा से लड़ने का समय सम्यक ज्ञान नहीं हो ! उनको आज हमारी सत्ता में बैठे हुए लोग संरक्षण देने के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर कानून के डंडे से चलाना चाहते हैं !

मेरा आग्रह कानून का डंडा चलाने वालों से है ! पहले कम से कम भारत के प्रत्येक गांव में सड़क, पानी, चिकित्सा, शिक्षा, बिजली और कंप्यूटर आदि सुनिश्चित करवा लिया जाये फिर इसके बाद भारतीय व्यवसाइयों को विदेशी व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा की भट्टी में झोंका जाता तो शायद हिंदुस्तान के कुछ मेधावी व्यवसाईयों को अपने राष्ट्र का गौरव बचा सकने का अवसर मिलाता !

यह तो वही बात है कि तैरने की विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में विश्व के सभी तैराकों को अपनी इच्छा से तैरने की छूट होगी लेकिन भारत के तैराकों के हाथ-पैर कानून की रस्सी से बांध दिए जायेंगे और संसाधनों के अभाव का पत्थर उनके पीठ पर लाद दिया जाएगा और फिर उनसे कहा जाएगा कि विश्व के तैराकों की प्रतियोगिता में आपको जीत कर दिखाना है !

मेरे ज़हन में बार-बार यह प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर वह कौन सी जल्दी है जो “जीएसटी” नोट बन्दी की तरह बिना किसी तैयारी के तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया जबकि राष्ट्र इसके लिए कहीं भी न तो मानसिक रूप से तैयार था, न ही संसाधनों से तैयार था ! कहीं यह भारतीय कुटीर उद्योगों और छोटे व्यवसाइयों को खत्म करने के लिए कोई बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायिक साजिश तो नहीं ! और यदि ऐसा है तो धन्य है वो राष्ट्रवादी नेता जो इस देश का अंधकारमय भविष्य लिखना चाहते हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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