भारत की परंपरागत कृषि व्यवस्था कैसे नष्ट की गई ! :Yogesh Mishra

भारत को लूटने वाली विदेशी कंपनियों की निगाह इस समय भारत के किसानों की पैतृक भूमि पर लगी हुई है ! भविष्य में यह कंपनियां भारतीय किसानों की भूमि लीज पर लेकर उसमें कृषि करने के बहाने उनकी जमीनों पर अपना अधिकार कायम करेंगी और एक निश्चित अवधि (लगभग 20 वर्ष) के बाद कानून बनवाकर यह कंपनियां किसानों के जमीन की मालिक हो जायेंगी ! तब किसान अपनी पैतृक जमीन इन कंपनियों को देने के लिये बाध्य हो जायेगा और जो नहीं देगा उसे नक्सलाइट घोषित कर या तो मार दिया जायेगा या फिर जेल में डाल दिया जायेगा !

क्योंकि इतिहास यह बतलाता है कि भारत के अति संपन्न परंपरागत कृषि व्यवस्था को नष्ट करने के लिये इन्हीं कंपनियों के आकाओं ने भारत के नेताओं के सहयोग से भारत की परंपरागत कृषि व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर दिया है ! भारत का गौवंश छीन लिया और भारत को रासायनिक खाद आधारित कृषि के लिये बाध्य कर दिया ! जिसका परिणाम महंगी कृषि और कैंसर, ब्लडप्रेशर, डायबिटीज जैसे घातक रोग हैं !

क्योंकि कृषि उत्पादन की लागत लगातार बढ़ाई गई और उसके एवज में किसानों को वापस जो मिला, वह बहुत कम होता गया ! माल बेचने पर घाटा हो तो वह उत्पादन अलाभकर कहा जाता है ! कृषि उत्पादन आज अलाभकर हुआ क्यों ? और कृषि-आय को कर-मुक्तरखने की सच्चाई क्या है ? स्थिति यह है कि किसान को उत्पादन में जो लागत आ रही है, वह सब औद्योगिक क्षेत्र को जा रही रकम के कारण आ रही है ! नये संकर बीजों की आपूर्ति औद्योगिक क्षेत्र से होती है, पहले किसान खुद अपने बीज रखते थे या इलाके के ‘व्यवहार’ (बड़े आदमी) वह बीज ज्यादा मात्रा में रख कर देते थे और सवाया वापस लेते थे ! आज तो स्थिति यह है कि कंपनियों से बीज खरीदिये वरना आप कृषि भी नहीं कर सकते हैं !

पहले खाद, गोबर आदि से घर पर तैयार होती थी, अब कारखानों में बनी खाद खरीदिये ! पानी परंपरागत जल-प्रबंधन से मिलता था, तालाबों का निर्माण समूह-श्रम से साझीदारी में होता था, स्वामित्व में सबका हिस्सा था ! अब ट्यूबवेल और बिजली से पानी मिलेगा ! बिजली की रकम औद्योगिक क्षेत्र को जायेगी ! नीम के पत्ते, सरसों के तेल आदि की जगह, रासायनिक दवाएं लीजिए, छिड़काव कीजिये, पैसा औद्योगिक क्षेत्र में दीजिये !

नये कृषि-उपकरण भी कंपनियों से आते हैं, गांव के लोहार नहीं गढ़ते ! अत: वह धन भी औद्योगिक क्षेत्र को गया ! जमीन का राजस्व भी बढ़ा ! इस प्रकार, बहुत बड़ी रकम औद्योगिक क्षेत्र को किसानों को देनी पड़ती है और साथ ही कृषि-आय पर कर, कृषि आय के हस्तांतरण पर कर, विविध नगदी फसलों पर कर, पशु-कर, परिवहन-कर, स्टांप ड्यूटी आदि पचासों प्रकार के कर राज्य को देने पड़ते हैं ! ऊपर से किसानों के श्रम का कोई आकलन सरकारी मूल्य-नीति में नहीं किया जाता है !

किसान को सारा ‘इनपुट’ औद्योगिक क्षेत्र से प्रदान किया जाये, यह व्यवस्था रची गई ! हजारों सालों से पोषित धरती की उर्वरा-शक्तिऔर उत्पादकता के पोषण की कोई नीति नहीं बनी ! पहले छठा हिस्सा राज्य लेता था ! अब कुल उत्पादन के दाम का तीन चौथाई से ज्यादा हिस्सा उद्योगों को और राज्य को जाता है ! फिर, किसानों के लिए खरीदी-मूल्य सरकारें घोषित करती हैं ! यानी उसकी बिक्री में भी सरकारी दलाली आ गई, गांवों की परस्परता समाप्त कर दी गई ! लूट का यह विशाल तंत्र रच कर फिर खेती की आय पर कर में छूट की नौटंकी रची जाती है ! हजारों साल के दाता को गृहीता और कृपापात्र दर्शाया-बताया जाता है !

इस दिशा में व्यवस्थित शासकीय नीतियां चलाई गई हैं ! पहले ट्रैक्टर का प्रचार किया गया ! झूठे विज्ञापन और महिमा-गान द्वारा उसे आकर्षक बनाया गया ! ट्रैक्टर आया तो कृषि-पशु गायब ! पारंपरिक खाद गायब ! किसान गोबर से भी वंचित ! दूध को सस्ता रखा गया, जिससे गाय भी अलाभकारी हो गई ! पशु-ऊर्जा की जगह औद्योगिक ऊर्जा लाने के लिए कत्लखानों और मांस-निर्यात को बढ़ावा दिया गया ! संकर पौधे बौने हों, यह प्रबंध किया ! इससे चारा कम और दूध कम ! गाय-भैंस घटीं यानी किसानों का पोषण राज्य और नया उद्योगतंत्र खा गया- दूध, दही, मक्खन, सब किसानों के लिए दुर्लभ हो गये !

परंपरागत उर्वरक जो मुफ्त में सुलभ था, वह गायब करा दिया गया ! बहुत ऊंचे दामों पर रासायनिक उर्वरक दिए गये ! स्थानीय सिंचाई-प्रबंधन का विलोप कर उसे केंद्रीकृत किया गया, फिर उसकी भारी रकम वसूली गई !

बैंकों से ऋण देने का प्रचार कर किसानों को लुभाया गया कि वे ट्रैक्टर लें, रासायनिक खाद लें, संकर बीज लें, जहरीले कीटनाशक लें, अविवेकपूर्ण सिंचाई की ओर बढ़ें, फसलों का ढांचा बदलें ! इस प्रकार खेती को लाभकारी बनाने के नाम पर खेती-किसानी से सब कुछ निचोड़ लिया ! प्रचंड प्रचार से कुछ वर्षों के लिए कैसे समूहों को बरगलाया जा सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है स्वाधीन भारत की कृषि, सिंचाई, बीज, खाद, कीटनाशक और कृषियंत्र आदि से जुड़ी नीतियां ! इस तरह खेती से सब कुछ निचोड़ कर फिर कृषि-आय को कर-मुक्तकरने को अनुग्रह दर्शाया जाता है !

समृद्ध-सशक्तभारतीय किसान हजारों वर्षों से दाता था ! उसे गृहीता बना दिया गया ! प्रयास है कि #किसान की संतानें भूल ही जाएं कि वे हजारों वर्षों से कितने समृद्ध थे ! उनमें हीनता आ जाये, दैन्य छा जाये ! जिस पर नियंत्रण स्थापित करना है, उसके भीतर दीनता-हीनता जगाना बहुत पुरानी छल-नीति है ! वही चल रही है ! जिसमें सत्ता में बैठे हुये लोग इनके सहयोगी हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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