आध्यात्मिक ऊर्जा कैसे नष्ट होती है ! : Yogesh Mishra

मनुष्य के साथ सबसे बड़ी समस्या ही यह है की वह ऊर्जा के नियमो से अवगत नहीं है ! अध्यात्मिक शक्ति अर्थात ऊर्जा का, मंत्र इत्यादि क्रियाओं से आहवाहन तो हो सकता है किन्तु दिव्य ऊर्जा को संचित कर उसका उचित समय पर उचित प्रयोग करन नही आता है !

इसके अलावा मनुष्य को इस बात का भी ज्ञान नहीं होता है कि किस प्रकार छोटे छोटे नकारात्मक कर्मों द्वारा अपनी कठिनता से प्राप्त दिव्य ऊर्जा का नुकसान कर देता है !

ऊर्जा के क्षय का सबसे प्रमुख कारण मन के सभी छोटे और बड़े नकारात्मक विचार होते है ! मन की किसी भी वस्तु , व्यक्ति अथवा परिस्थिति को लेकर सबसे पहली जो प्रतिक्रिया होती है ! वह है एक मात्र विचार ! विचारों की प्रवृत्ति या तो भूतकाल की ओर रहती है या भविष्य की ओर रहती है !

अधिकंशतः विचार भूतकाल मे हो चुकी घटन मे संलग्न व्यक्ति अथवा वस्तुओं से हमारा भावनत्मक लगाव होने के कारण चलते रहते है ! ऐसे विचारों मे अधिकांशतः विचार तुलनत्मक, निषेधात्मक और अपेक्षात्मक होते है जो कि मानव मन को असहज बन देते है ! भविष्य की आवश्यकता से अधिक चिन्ता भी मन को असंतुलित कर देती है !

भूतकाल और भविष्य काल में रहने से हो रहे शारीरिक और मानसिक असंतुलन का कारण यह है कि वह शक्ति जो भविष्य का उचित निर्माण कर सकती है और भूतकाल की असहज परिस्थितियों को पुनः उत्पन्न नहीं होने देती वर्तमान काल मे विद्यमान होती है !

किन्तु मनुष्य कभी भी वर्तमान मे सहज हो कर नहीं रहता ! वर्तमान का सही उपयोग न कर पाने के कारण भविष्य की नयी शुभ सम्भावनये स्वरूप नहीं ले पाती है ! भूतकाल का कोई अस्तित्व नहीं होता है, किन्तु नकारात्मक विचारों द्वारा बार बार पोषित होने के कारण वह भविष्य में उसी प्रकार के व्यक्तियों से सम्बन्ध अथवा परिस्थित्यों के निर्माण की सम्भावन को सबल बनते है !

विचार अध्यात्मिक ऊर्जा को गति प्रदान करते है ! सकारात्मक ऊर्जा समय रहते सही दिशा देने पर उत्तम आतंरिक और वाह्य परिस्थितियों का निर्माण कर सकती है ! किन्तु यदि अवांछनीय विचारों पर नियन्त्रण नहीं रखा जाये तो ऊर्जा का अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण के लिये उपयुक्त मात्रा मे संचयन नहीं हो पाता है और सब कुछ यथावत नकारात्मक रूप मे चलता रहता है !

जैसे कि हम सभी जानते है कि ऊर्जा का हस्तान्तरण पाँच विधियों के द्वारा होता है – शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा व्यक्ति तक पहुचाने के वाहक होते है ! कटु , तीखे, क्रोधी, निन्दक और व्यंगात्मक शब्दों का यदि प्रयोग किया जाये तो ऊर्जा की हानि होती है ! यही कारण है कि साधनकाल मे तथा अन्य समय मे भी किसी भी प्रकार से प्रेरित होकर अपशब्दों का प्रयोग नहीं करन चाहिये ! किसी को अशीर्वाद दिया जाये अथवा श्राप ; दोनों ही स्थिति मे स्वयम की तपस्या से अर्जित की गयी ऊर्जा शब्दों के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित हो जाती है और उस समय की गयी इच्छा के अनुरूप दुसरे व्यक्ति को फल देती है !

तामसिक भोजन, मांस, मदिरा, धूम्रपान इत्यादी का उपयोग भी अध्यात्मिक शक्ति के ह्रास का प्रमुख कारण है !ऐसा भोजन जब तक सम्पूर्णतः शरीर को अपने प्रभाव से मुक्त नहीं कर देता ऊर्जा स्तर को प्रभवित करता रहता है ! तामसिक भोजन के उपरान्त ऊर्जा को व्यवस्थित होने मे 2-4 दिन साधरणतयः लग जाते है !

इसी प्रकार जब नकारात्मक विचारधारा के साथ जब भोजन बनया जाता है तो स्पर्श के साथ विचारों की ऊर्जा पदार्थों मे प्रवेश कर उसकी सात्विक शक्ति को कम कर देते है ! नकारात्मक व्यक्तियों के साथ हाथ मिलाने , उनके द्वारा दिए हुए वस्त्र पहनन अथवा उनके वस्त्र पहनने से भी उनकी ऊर्जा दूसरे व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर अस्थिरता, बेचैनी और क्रोध जैसे अन्य विकार उत्पन्न करते हैं !

सड़न इत्यादि से पैदा हुई और अन्य अप्रिय लगने वाली गंध वायु के माध्यम से नसिका से होती हुई सीधे सूक्ष्म शरीर को प्रभवित करती है और ऊर्जा भौतिक एवम सूक्ष्म शरीर के मध्य ऊर्जा मे असंतुलन पैदा करती है !

इन्ही सब कारणों से अध्यात्म मे मन की शुद्धता, भोजन, वाणी और स्पर्श इत्यादि की सावधानी पर बहुत अधिक बल दिया गया है ! यदि इन माध्यमो का सही उपयोग किया जाता है तो सकारात्मक ऊर्जा की गति अंदर की ओर होती है जिससे उसका संचय होकर मात्रा मे वृद्धी होती है ! इन माध्यमों का दुरूपयोग करने पर ऊर्जा की प्रवृत्ति वाह्य और अधोमुखी हो जाती है ! जिससे संचित ऊर्जा का भी क्षय हो जाता है ! यह वाह्य प्रवृत्ति और अधोगामी गति तब तक रहती है जब तक सही प्रयासो और संकल्प के द्वारा ऊर्जा का मार्ग परिवर्तित न किया जाये !

अत: नकारात्मक व्यक्ति, वस्तुओं अथवा परिस्थितियों से स्वयं को तब तक अलग रखन चाहिये ! जब तक कि ऊर्जा को स्थायित्व प्रदान नहीं हो जाता अर्थात अनचाहे ऊर्जा के हस्तानन्तरण पर नियन्त्रण नहीं आ जाता है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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