जातक पारिजात के अनुसार सूर्य और चंद्रमा एक साथ होकर लग्न में हो अथवा किसी एक त्रिकोण में हो और गुरू तीसरे स्थान में हो या केंद्र में हो तो जातक मंदबुद्धि होता है !
जन्म कुंडली में चंद्रमा अगर राहु के साथ है तब व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने की संभावना बनती है क्योकि राहु मन को भ्रमित रखता है और चंद्रमा मन है ! मन के घोड़े बहुत ज्यादा दौड़ते हैं ! व्यक्ति बहुत ज्यादा हवाई किले बनाता है !
यदि जन्म कुंडली में बुध, केतु और चतुर्थ भाव का संबंध बन रहा है और यह तीनों अत्यधिक पीड़ित हैं तब व्यक्ति में अत्यधिक जिदपन हो सकती है और वह सेजोफ्रेनिया का शिकार हो सकता है ! इसके लिए बहुत से लोगों ने बुध व चतुर्थ भाव पर अधिक जोर दिया है !
जन्म कुंडली में गुरु लग्न में स्थित हो और मंगल सप्तम भाव में स्थित हो या मंगल लग्न में और सप्तम में गुरु स्थित हो तब मानसिक आघात लगने की संभावना बनती है !
जब जन्म कुंडली में शनि लग्न में और मंगल पंचम भाव या सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है !
सूर्य और चंद्रमा एक साथ होकर लग्न में या फिर किसी त्रिकोण में एक साथ हों तथा गुरू तीसरे स्थान में हो या फिर वह भी केंद्र में हो तो जातक को मानसिक रोग होने की संभावना होती है !
कृष्ण पक्ष का बलहीन चंद्रमा हो और वह शनि के साथ 12वें भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग की संभावना बनती है ! शनि व चंद्र की युति में व्यक्ति मानसिक तनाव ज्यादा रखता है !
जन्म कुंडली में शनि लग्न में स्थित हो, सूर्य 12वें भाव में हो, मंगल व चंद्रमा त्रिकोण भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है !
जन्म कुंडली में मांदी सप्तम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रह से पीड़ित हो रही हो !
राहु व चंद्रमा लग्न में स्थित हो और अशुभ ग्रह त्रिकोण में स्थित हों तब भी मानसिक रोग की संभावना बनती है !
मंगल चतुर्थ भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि चतुर्थ भाव में राहु/केतु अक्ष पर स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है !
जन्म कुंडली में शनि व मंगल की युति छठे भाव या आठवें भाव में हो रही हो !
जन्म कुंडली में बुध पाप ग्रह के साथ तीसरे भाव में हो या छठे भाव में हो या आठवें भाव में हो या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है !
यदि चंद्रमा की युति केतु व शनि के साथ हो रही हो तब यह अत्यधिक अशुभ माना गया है और अगर यह अंशात्मक रुप से नजदीक हैं तब मानसिक रोग होने की संभावना अधिक बनती है !
जन्म कुंडली में शनि और मंगल दोनो ही चंद्रमा या बुध से केन्द्र में स्थित हों तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है !
इन योग से बनता हैं सन्देह करने वाले योग :-
यदि जन्म कुंडली मे चंद्रमा और बुध केंद्र में हो या शुभ नवांश में न हों तो जातक अत्यंत भ्रम वाला होता है अर्थात सभी बातों में संदेह करने वाला होता है !
यदि चंद्रमा पाप ग्रह के साथ हो और राहु लग्न से पांचवें, आठवें और बारहवें घर में हो तो जातक को मत भ्रष्ट होने का संदेह हमेशा रहता है !
इन कारणों से होता हें मिरगी रोग (जानिए जन्म कुंडली में मिरगी रोग के लक्षण)
इसके लिए चंद्र तथा बुध की स्थिति मुख्य रुप से देखी जाती है ! साथ ही अन्य ग्रहों की स्थिति भी देखी जाती है !
1- शनि व मंगल जन्म कुंडली में छठे या आठवें भाव में स्थित हो तब व्यक्ति को मिरगी संबंधित बीमारी का सामना करना पड़ सकता है !
2- कुंडली में शनि व चंद्रमा की युति हो और यह दोनो मंगल से दृष्ट हो !
3- जन्म कुंडली में राहु व चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हों !
4– चंद्रमा और बुध केंद्र में हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो साथ ही पांचवें भाव या आठवें भाव में पाप ग्रह हो तो ऐसे जातक को मिर्गी की शिकायत होती है !
5- जब चंद्रमा शनि के साथ हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक कभी-कभी जन्म से पागल होता है !
क्यों होते हैं मानसिक रुप से कमजोर बच्चे अथवा मंदबुद्धि बच्चे
जन्म के समय लग्न अशुभ प्रभाव में हो विशेष रुप से शनि का संबंध बन रहा हो ! यह संबंध युति, दृष्टि व स्थिति किसी भी रुप से बन सकता है !
1- शनि पंचम से लग्नेश को देख रहा हो तब व्यक्ति जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है !
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2- जन्म के समय बच्चे की कुण्डली में शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हो, बुध बारहवें भाव में स्थित हो और पंचमेश पीड़ित अवस्था में हो तब बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है !
3- पंचम भाव, पंचमेश, चंद्रमा व बुध सभी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब भी बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है !
4- जन्म के समय चंद्रमा लग्न में स्थित हो और शनि व मंगल से दृष्ट हो तब भी व्यक्ति मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है !
5- पंचम भाव का राहु भी व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट करने का काम करता है, बुद्धि अच्छी नहीं रहती है !
कैसे करें मानसिक रोग की (भूलने की बीमारी) रत्न चिकित्सा :-
पण्डित दयानन्द शास्त्री के विचार से मानसिक बीमारियों के निवारण हेतु बुध को बल प्रदान करना सर्वथा उपयुक्त होगा ! ऐसे व्यक्ति को पन्ना रत्न की अंगूठी चाँदी में बनवाकर दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुली में धारण करना चाहिए ! कुछ विशेष परिस्थितिओं में गले में भी धारण किया जा सकता है ! पन्ना का भष्म आदि भी खिलाना लाभप्रद होगा ! प्रज्ञा मन्त्र का अनुष्ठान एवं अपामार्ग की लता से हवन भी कराना चाहिए !
मानसिक रोग में बीती हुई बहुत सी घटनाएं अथवा बातें याद नहीं रहती है !ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में जब लग्न और लग्नेश पाप पीड़ित होते हैं तो इस प्रकार की स्थिति होती है !सूर्य और बुध जब मेष राशि में होता है और शुक्र अथवा शनि उसे पीड़ित करते हैं तो स्मृति दोष की संभावना बनती है !साढे साती के समय जब शनि की महादशा चलती है उस समय भी भूलने की बीमारी की संभावना प्रबल रहती ह !रत्न चिकित्सा पद्धति के अनुसार मोती और माणिक्य धारण करना इस रोग मे लाभप्रद होता है !
उपरोक्त रोग पूर्व जन्म में किये गए पापों से उत्पन्न होते हैं इन्हें दूर करने के लिए दवाइयां, दान, मंत्र, जप, पूजा, अनुष्ठान करने चाहिए ! तथा गलत काम करने से भी बचना चाहिए ! तभी पापों के दुष्प्रभाव से मुक्त मिलेगी !