भगवान ने तो मानव बना दिया ! पर हमने खुद को दानव लिया ! उसने सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बना कर हमको भेजा ! पर हमने उसकी सृष्टि को ही खाने की ठान ली ! उसने प्रकृति बनाई नदी, पहाड़, पशु, पक्षी, अनेक प्रकार के जीव जन्तु दिये ताकि हम समझ सकें कि हम ही सर्वश्रेष्ठ क्यो हैं !
पर हमने सभी को खाना ही शुरू कर दिया ! नदी खा गये ! पहाड़ खा गये ! पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, साँप, गोजर, बिच्छू, कीट, पतंगे सभी को खाने से भी हमारा पेट नही भरा ! हमने प्रकृति पर विजय की ठान ली ! अंतरिक्ष को भी अशांत कर दिया ! धरती पर जीना तो सीख नही पाये ! अंतरिक्ष में और चांद, मंगल जैसे ग्रहों पर जीवन जीने के सपने देखने लगे !
हमें यह याद ही नही रहा कि कोरोना जैसा कोई अदृश्य विषाणु किसी समय आयेगा और आपकी समस्त कथित प्रगति को ऐसी चुनौती देगा कि आप निरीह प्राणी की तरह तड़प उठेंगे ! आपकी सारी आधुनिक सभ्यता संस्कृति धरी की धरी रह जायेगी !
ईश्वर ने जो देह दी ! उसमें आपने मनुष्यता के रूप में भावना, संवेदना, प्रेम, संस्कार आदि विकसित नहीं होने दिये ! जो पहले से थे उन्हें भी पैशाचिक संस्कृति के अनुसरण में नष्ट कर दिया और विकास के नाम पर जुट गये ऐसे निर्माण में जिससे केवल विध्वंस ही हो सकता है ! विकास नहीं !
विकास के नाम पर पता नही किससे युद्धों की तैयारी में हम जुटे हुये हैं ! अपार धन खर्च कर अकूत युद्ध सामग्री का निर्माण कर रहे हैं ! टैंक, मिसाइल, बम, परमाणु बम, धरती से धरती पर मार करने वाली मिसाइल, तोप, बंदूक, पिस्टल, रिवाल्वर, राइफल और न जाने कैसे कैसे स्वचालित हथियार आदि बना लिये ! पर किस लिये ! ईश्वर निर्मित मनुष्य को मरने के लिये ! धन्य है यह विनाश रूपी विकास !
धरती को हमने अपने-अपने हिसाब से बांट कर अपने-अपने साम्राज्य का निर्माण कर लिया ! और उसको बढ़ने की होड़ में लग गये ! इसके लिये तरह-तरह के विध्वंसक समान बनाने लगे ! कई तो इनका परिक्षण भी कर चुके हैं ! हम इन विध्वंसकारी निर्माणों के आगे भूल गये कि यह जो देह है वह मानव की है ! इसमें मनुष्यता भी भरनी है ! इसमें संवेदना भी भरनी है ! इसे प्रकृति से सामंजस्य के गुर सिखाने हैं ! सृष्टि के बाकी अवयवों से इसके संबंध कैसे स्थापित हों ! यह सिखाना है !
लेकिन यह याद ही नही रहा ! दुनिया मे शोध के बड़े बड़े संस्थान बना लिये ! मनुष्य के विनाश के लिये ! किसी संस्थान में मनुष्य को केंद्र में नही रखा ! केवल मनुष्यता के विनाश की तरकीबें खोजते रहे ! कोई ऐसा संस्थान किसी देश ने नही बनाया जहां मनुष्य को वास्तव में मनुष्य बनाये जाये !
याद रहे विकास की ओट में मानवता के सर्वनाश के लिये आज जो तैयारियां चल रही हैं ! उससे उत्पन्न होने वाला युद्ध कभी भी मानवता के लिये हितकारी नहीं रहेगा ! क्योंकि युद्ध से सदैव विनाश ही होता है ! इससे मानवता की रक्षा नहीं हो सकती है !