अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है ! इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं ! अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः !
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम् ! ! (अथर्व०-१/३२/३) !
भूत-प्रेत के अपसारण की प्रथा से संबंधित धारणा और/अथवा रिवाज़ मुख्य रूप से दक्षिण के प्राचीन द्रविड़ों से जुड़े हुए हैं ! चार वेदों (हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ) में, बताया जाता है कि अथर्ववेद में जादू-टोनों और औषधि से संबंधित रहस्य हैं ! इस ग्रंथ में वर्णित अनेक अनुष्ठान भूतों और दुष्ट आत्माओं को भगाने से संबंधित हैं ! ये धारणाएं, खास तौर पर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में मजबूत और प्रचलित हैं !
भूत-प्रेत के अपसारण का मुख्य साधन मंत्र और यज्ञ होते हैं जिनका प्रयोग वैदिक तथा तांत्रिक दोनों परंपराओं में किया जाता है ! हिन्दि धर्म् का झाड़-फूँक इन्ड़दु धर्म मे -फूँक के विश्वास तथा प्रार्थना हिन्दु धर्म मे प्रमुख्ता से जुदा हुआ हे ! झाड़-फूँक के क्शेत्र हिन्दु धर्म के अन्य धर्म ग्रन्थ मे दिया गया हे ! झाड़-फूँक के बारे मे चार वेदो मे कुछ इस तरह कहा गया हे ! अथर्व वेद मे जादू और कीमिया से सम्बन्धित के बारे मे रहस्य हे ! हिन्दि धर्म धर्म मे मन्त्रा, यग्न जाद फून्क के बुनियाअदि सादान हे ! गीता महत्या पद्मा पुराना के अनुसार जब भागवत गीता के तीस्रा, सात्वा और नौवि अध्याय पद्ने और मानसिक रूप से प्रस्ताव कर्ने पर आथ्मा उद्धार बहुत आसान हो जाता हे ! पूजा पाठ कर्ना, पवित्र जल का छिड़काव, शास्त्रों और देवताओं की पवित्र तस्वीर रखना, पूजा के दौरान जलती धूप, यह सब झाड़-फूँक के लिये अछ्ची प्रथा हे !
वैष्णव परंपराएं भी नरसिंह के नामों के उच्चारण तथा जोर-जोर से बोलकर धर्मग्रंथों (खासकर भागवत पुराण) के पाठ का सहारा लेती हैं ! पद्म पुराण के गीता महात्म्य के अनुसार, भगवद् गीता के तीसरे, सातवें तथा आठवें अध्याय का पाठ तथा इसका फल दिवंगत व्यक्तियों को मानसिक रूप से प्रदान करने से, उन्हें प्रेत-योनि से छुटकारा पाने में सहायता मिलती है ! कीर्तन, निरंतर मंत्रोच्चार, घर में धर्मग्रंथों तथा देवी-देवताओं (शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति इत्यादि) (खासकर नरसिंह) की पवित्र तस्वीरों की उपस्थिति, पूजा के दौरान देवता के आगे धूप-अगरबत्ती जलाना, पवित्र नदियों से लाए गए जल का छिड़काव तथा पूजा के दौरान शंखनाद अन्य प्रभावकारी रिवाज हैं !
भूगोल, खगोल, वनस्पति विद्या, असंख्य जड़ी-बूटियाँ, आयुर्वेद, गंभीर से गंभीर रोगों का निदान और उनकी चिकित्सा, अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त, राजनीति के गुह्य तत्त्व, राष्ट्रभूमि तथा राष्ट्रभाषा की महिमा, शल्यचिकित्सा, कृमियों से उत्पन्न होने वाले रोगों का विवेचन, मृत्यु को दूर करने के उपाय, प्रजनन-विज्ञान अदि सैकड़ों लोकोपकारक विषयों का निरूपण अथर्ववेद में है ! आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व अत्यन्त सराहनीय है ! अथर्ववेद में शान्ति-पुष्टि तथा अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठन वर्णित हैं ! अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं !
चरणव्युह ग्रंथ के अनुसार अथर्व संहिता की नौ शाखाएँ- 1.पैपल, 2. दान्त, 3. प्रदान्त, 4. स्नात, 5. सौल, 6. ब्रह्मदाबल, 7. शौनक, 8. देवदर्शत और 9. चरणविद्य बतलाई गई हैं !
वर्तमान में केवल दो- 1.पिप्पलाद संहिता तथा 2. शौनक संहिता ही उपलब्ध है ! जिसमें से पिप्लाद संहिता ही उपलब्ध हो पाती है ! वैदिकविद्वानों के अनुसार 759 सूक्त ही प्राप्त होते हैं ! सामान्यतः अथर्ववेद में 6000 मन्त्र होने का मिलता है परन्तु किसी-किसी में 5987 या 5977 मन्त्र ही मिलते हैं !
अभी हाल में ही बनारस विश्व विद्यालय में भूत विज्ञान का विधिवत कोर्स शुरू किया गया है !