यह वाणी का सबसे स्थूल रूप है ! कुछ कहने से पहले उसका विचार हमारा मन सोच लेता है ! जब आप उस स्तर को पकड़ लेते हैं तो वह मध्यमा है ! पश्यन्ति संज्ञानात्मक है !
शब्द बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है ! परा वह अनकहा, अप्रकट ज्ञान है जो इन सबके परे है ! पूरा ब्रह्मांड गोलाकार है ! उसका न ही कभी आदि हुआ और न ही कभी उसका अंत होगा ! वह अनादि और अनंत है अगर ऐसा है तब ब्रह्मा – रचयिता का क्या काम है? कहते हैं कि हर युग में बहुत सारे ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं !
समय और स्थान में यह होता चला आ रहा है ! तो इस सृष्टि का स्रोत क्या है? ज्ञान आकाश से परे है ! ज्ञान पांच तत्वों से भी परे है ! जिन्हें वहद समझा गया वह वैखरी नहीं हैं ! उनकी अनुभूति आकाश से परे है ! उसके विस्तार में सभी दिव्य स्पंदन समाहित हैं जो कि सर्वव्यापी है ! आकाश क्या है? आकाश को व्योम या व्याप्ति वर्णित किया जाता है – जिसका मतलब है जो सर्वव्यापी और सब में समाया हुआ है ! आकाश से परे क्या है? आकाश से परे के बारे में सोचना अकल्पनीय है !
सब कुछ आकाश में निहित है, सभी चार तत्व आकाश में ही हैं ! सबसे स्थूल है पृथ्वी और फिर जल, अग्नि, वायु और आकाश ! वायु अग्नि से अधिक सूक्ष्म है ! आकाश सूक्ष्मतम है ! वह क्या है जो कि आकाश से भी परे है? वह है मन, बुद्धि, अहंकार और महत तत्त्व ! यही तत्त्व ज्ञान है- ब्रह्मांड के सिद्धांत को जानना ! जब तक आप ब्रह्मांड के सिद्धांत को नहीं जानेंगे तब तक आत्मा का भी पता नहीं लगा सकते हैं !
जब आप आकाश से परे जाते हैं तो यह एक अनुभूति का क्षेत्र है ! यह पूरा क्षेत्र आकाश से परे शुरू होता है ! हमारे प्राचीन ऋषियों ने पदार्थ और उसके गुण के बीच रिश्ते के बारे में बात की है ! एक बहुत ही दिलचस्प बहस चल रही है – क्या हम पदार्थ के गुणों को उससे अलग कर सकते हैं? यह पूरा दर्शन बहुत दिलचस्प है और इसका निष्कर्ष यह निकला की आप पदार्थ की गुणों को पदार्थ से अलग नहीं कर सकते हैं !
क्या चीनी की मिठास को चीनी से अलग किया जा सकता है? क्या वह तब भी चीनी कहलाएगी? क्या गर्मी और प्रकाश को आग से अलग किया जा सकता है? ऐसा होने पर क्या उसे आग कहा जाएगा? पदार्थ के गुण कहाँ से आते हैं? पहले क्या आता है – गुण या पदार्थ ? इस तरह के कई सवाल हैं ! आप अधिक सूक्ष्म जाकर परम व्योम में पहुँच जाते हैं !
सभी देवी – देवता उसी स्थान में रहते हैं ! ब्रह्मांड के सिद्धांतों को समझे बिना, परम व्योम को जाने बिना वैदिक भजन और मंत्र को जानने का क्या प्रयोजन है? उस आकाश के गुण को स्वरूप कहते हैं ! स्वरूप वह चेतना है जो स्वरूप से स्फुट होता है – स्वरित – जिससे रचना बहती है और नाम एवं रूप के साथ प्रकट होती है – जिसे साकार कहते हैं ! सृष्टि के लाखों जीव स्वरूप से प्रकट हुए !
आकाश के अलावा चार तत्वों में समय समय पर खलबली आती है अगर सहारे के लिए आप उन पर निर्भर हो जाते हैं, तो वह आपको हिलाकर आकाश तत्व की ओर तुम्हें वापस ले जाएंगे !