भविष्य में विश्व को सुरक्षा भारत ही देगा :Yogesh Mishra

आज शीत युद्ध सारा संसार एक विश्वव्यापी सुरक्षा-नीति के लिए चिंतित हैं ! कुछ वास्तव में चिंतित हैं, कुछ आशंकित हैं और कुछ सुरक्षा के ठेकेदार हैं ! इस चिंता, आशंका एवं ठेकेदारी का आधार है-आणविक क्षमता ! विज्ञान का विकास मानवता के इतिहास में सबसे अधिक आणविक हथियारों में दिखाई पड रहा है ! मानव-बम के संघर्ष ने आज़ पूरी मानवता के अस्तित्व के लिए ही संकट पैदा कर दिया है ! आधुनिक विश्व सामरिक दृष्टि से दो भागों में बंटा हुआ है- परमाणु क्षमता सम्पन्न देश और परमाणु क्षमता विहीन देश ! इसके अतिरिक्त कोई तीसरा ध्रुवीकरण आज दिखाई नहीं पड़ता !

परमाणु क्षमता सम्पन्न देश, जिनका नेतृत्व अमेरिका कर रहा है, अपनी इस क्षमता का प्रयोग उस जादुई सिक्के की तरह करना चाह रहे हैं, जिसकी क्रय शक्ति असीम हो और देश-काल की सीमा से परे हो ! अमेरिका और अन्य चार आणविक शक्तियां- फ्रांस, चीन, रूस और ब्रिटेन पिछले कुछ वर्षों से एक विश्वव्यापी भेदभावपरक उपबंध पर ‘आम सहमति’ के लिए प्रयासरत हैं, जिसका उद्देश्य परमाणु क्षमता के प्रसार को रोकना है !

एन.पी.टी. और सी.टी.बी.टी. ऐसी ही दो दवाओं के नाम हैं, जिन्हें आणविक क्षमता सम्पन्न देश शेष विश्व के लिए निश्वेतक के रूप में प्रयुक्त करना चाहते हैं ! इन देशों का कहना है कि आणविक हथियारों का विस्तार मानवता के लिए संकट पैदा कर देगा, क्योंकि इनका उपयोग बिना विवेक के किया जाएगा ! इन देशों की चिंता का आधाऱ बिंदु ही कितना निम्न है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है ! क्या किसी भी देश द्वारा किसी भी परिस्थिति में आणविक हथियारों का प्रयोग उचित माना जा सकता है? ऐसा कोई भी प्रयास जो मानवता के लिए संकट पैदा करें, कहीं से विवेकसम्मत नहीं माना जा सकता ! अब तक का एकमात्र आणविक बम अमेरिका ने जापान पर गिराया था,जिसमें लाखों निरीह नागरिक मारे गए थे !

इतिहास तो इस बात का कोई प्रमाण नहीं देता कि अमेरिका ने बड़े विवेक से इसका प्रयोग किया था ! या तो इतिहास-लेखन के दृष्टिकोण से विवादस्पद तथ्य है कि उन परिस्थितियों एवं प्रभावों का आज तक कोई सर्वमान्य विश्लेषण नहीं हुआ, जिसमें अमेरिका द्वारा परमाणु-बम के प्रयोग की शव परीक्षा होती ! नाजियों की हिंसा और जापानियों के नवसाम्राज्यवाद में ही विश्वयुद्ध के बीज खोजने का इतिहास का प्रयास ऐसे ही आणविक क्षमता सम्पन्न देशों की सोची-समझी तरकीब है !

एक बात तो तय है कि आणविक हथियारों से कोई भी लडाई जीती नहीं जा सकती ! फिर, ऐसे हथियारों का प्रयोजन क्या है? जाहिर है कुछ देशों का इसमें स्वार्थ छिपा है ! इन हथियारों का प्रयोग सामरिक दादागिरी के लिए किया जा रहा है ! अमेरिका या चीन आज विकासशील या अविकसित देशों को सिर्फ आर्थिक महाशक्ति होने के कारण धमकी नहीं देते, उनकी सम्पन्न आणविक क्षमता इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है !

सच तो यह है कि अमेरिका पूंजीवाद की उस पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, जिसमें वह हर चीज को बिकाऊ समझता है- चाहे वह किसी राष्ट्र की प्रभुसत्ता ही क्यों न हो ! जहाँ तक आणविक हथियारों की होड़ का प्रश्न है, तो यह बात विस्तार से बताने की ज़रूरत नहीं है कि संसार के किसी भी कोने में हथियारों की होड़ बढाने का काम किसने किया है ? आज C.T.B.T- या N.T.P के द्वारा जो बात कही जा रही है, उसमें विकसित एवं परमाणु क्षमता सम्पन्न राष्ट्रों की दोहरी मानसिकता साफ नजर आती है ! एक ओर आणविक हथियारों को मानवता के लिए खतरनाक बताया जा रहा है, जिसके आधार पर वे इसके प्रसार को प्रतिबंधित करने की बात का रहे हैं और दूसरी ओर आणविक क्षमता सम्पन्न देश अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए दलीलें दे रहे हैं ! यदि आणविक हथियार ख़तरनाक हैं तो सबके लिए खतरनाक होना चाहिए- इसके प्रसार पर अंकुश के बजाए इसका कोई भी साक्ष्य ही नहीं बचने देना चाहिए !

पर, कहावत है न – पर उपदेश कुसल बहुतेरे’ ! भारत हमेशा से पूर्ण नि:शस्त्रीकरण पर बल देता रहा है, वह किसी भी तरह के सामरिक भेदभाव का शिकार होकर अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा पैदा नहीं करना चाहता ! सी.टी.बी.टी. में आणविक देशों ने निम्नस्तरीय कपट की बात की हे- इसमें आणविक हथियारों के परीक्षण पर रोक की बात की गई है, आणविक हथियारों के प्रयोग पर रोक को बात को नहीं ! कारण स्पष्ट है ! अमेरिका परमाणु परीक्षणों के दौर से बहुत आगे निकल चुका है औंर वह सारे आंकडे कम्यूटर में डाल चुका है- वह परीक्षण की कंप्यूटर-प्रणाली विकसित कर चुका है ! इंग्लैण्ड को अमेरिका से यह तकनीक मिल गई है ! रूस भी इसकी क्षमता प्राप्त कर चुका है ! फ्रांस और चीन ने भी तमाम विरोधों के बावजूद ताबड़तोड़ कई परीक्षणों के द्वारा लगभग कंम्प्यूटर-परीक्षण-प्रणाली के लिए सारे आंकडे जुटा लिए हैं !

आज आणविक मुद्दे को जो इतना तूल दिया जा रहा है, उसकी एक वजह यह भी बताई जा रही है कि रूस और अमेरिका आणविक हथियारों का खौफ एवं प्रसार पूरे विश्व में पैदा कर अपने उन वैज्ञानिकों एवं उन आणविक सामग्रियों के लिए काला बाजार बनाना चाह रहे हैं, जिनकी उन्हें अब जरूरत नहीं है ! यदि इस खबर में थोडी भी सच्चाई है, तो निश्चय ही यह मानवता के साथ एक नीचतापूर्ण छल है !

इस पूरे विश्व-सुरक्षा संकट के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण से एक बात स्पष्ट है कि आज पुनः भारत विश्व के कल्याण मार्ग का पुरोधा बनने की स्थिति में है ! भारत का भेदभावरहित पूर्ण नि:शस्त्रीकरण का पक्ष निश्चित रूप से अस्तित्व की लडाई लड़ रही मानवता के बचाव का एकमात्र साधन है ! भारत को अपने इस पक्ष पर अडिग रहना चाहिए और विश्व जनमत को इस कल्याण मार्ग की निर्विकल्पना से परिचित कराकर उसे अपने पक्ष में करना चाहिए ! नवभारत राष्ट्र फिर शांति का संदेश लेकर पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने वाला है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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