महर्षि कश्यप ब्रम्हा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे ! इस प्रकार वे ब्रम्हा के पोते हुए ! महर्षि कश्यप ने ब्रम्हा के पुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया ! संसार की सारी जातियां महर्षि कश्यप की इन्ही 17 पत्नियों की संतानें मानी जाति हैं ! इसी कारण महर्षि कश्यप की पत्नियों को लोकमाता भी कहा जाता है ! उनकी पत्नियों और उनसे उत्पन्न संतानों का वर्णन नीचे है:
अदिति: आदित्य (देवता) ! ये 12 कहलाते हैं. ये हैं अंश, अयारमा, भग, मित्र, वरुण, पूषा, त्वस्त्र, विष्णु, विवस्वत, सावित्री, इन्द्र और धात्रि या त्रिविक्रम (भगवन वामन) !
दिति: दैत्य और मरुत ! दिति के पहले दो पुत्र हुए: हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप ! इनसे सिंहिका नमक एक पुत्री भी हुई ! इन दोनों का संहार भगवन विष्णु ने क्रमशः वराह और नरसिंह अवतार लेकर कर दिया ! इनकी मृत्यु के पश्चात् दिति ने फिर से आग्रह कर महर्षि कश्यप द्वारा गर्भ धारण किया ! इन्द्र ने इनके गर्भ के सात टुकड़े कर दिए जिससे सात मरुतों का जन्म हुआ ! इनमे से 4 इन्द्र के साथ, एक ब्रम्ह्लोक, एक इन्द्रलोक और एक वायु के रूप में विचरते हैं !
दनु: दानव जाति ! ये कुल 61 थे पर प्रमुख चालीस माने जाते हैं ! वे हैं विप्रचित्त, शंबर, नमुचि, पुलोमा, असिलोमा, केशी, दुर्जय, अयःशिरी, अश्वशिरा, अश्वशंकु, गगनमूर्धा, स्वर्भानु, अश्व, अश्वपति, घूपवर्वा, अजक, अश्वीग्रीव, सूक्ष्म, तुहुंड़, एकपद, एकचक्र, विरूपाक्ष, महोदर, निचंद्र, निकुंभ, कुजट, कपट, शरभ, शलभ, सूर्य, चंद्र, एकाक्ष, अमृतप, प्रलब, नरक, वातापी, शठ, गविष्ठ, वनायु और दीघजिह्व ! इनमें जो चंद्र और सूर्य नाम आए हैं वै देवता चंद्र और सूर्य से भिन्न हैं !
काष्ठा: अश्व और अन्य खुर वाले पशु !
अनिष्ठा: गन्धर्व या यक्ष जाति ! ये उपदेवता माने जाते हैं जिनका स्थान राक्षसों से ऊपर होता है ! ये संगीत के अधिष्ठाता भी माने जाते हैं ! गन्धर्व काफी मुक्त स्वाभाव के माने जाते हैं और इस जाति में विवाह से पहले संतान उत्पत्ति आम मानी जाती थी ! गन्धर्व विवाह बहुत ही प्रसिद्ध विवाह पद्धति थी जो राक्षसों और यक्षों में बहुत आम थी जिसके लिए कोई कर्मकांड की आवश्यकता नहीं होती थी ! प्रसिद्ध गन्धर्वों या यक्षों में कुबेर और चित्रसेन के नाम बहुत प्रसिद्ध है !
सुरसा: ये जाति विधान और मैत्री में विश्वास नहीं रखती और चीजों को हड़प करने वाली मानी जाति है ! कई लोगों का कहना है की राक्षस जाति की शुरुआत रावण द्वारा की गयी ! दैत्य, दानव और राक्षस जातियां एक सी लगती जरुर हैं लेकिन उनमे अंतर था ! दैत्य जाति अत्यंत बर्बर और निरंकुश थी ! दानव लोग लूटपाट और हत्याएं कर अपना जीवन बिताते थे तथा मानव मांस खाना इनका शौक होता था ! राक्षस इन दोनों जातियों से हट कर अधिक संस्कारी और शिक्षित थी ! रावण जैसा विद्वान् इसका उदाहरण है ! राक्षस जाति का मानना था कि वे रक्षा करते हैं ! एक तरह से राक्षस जाति इन सब में क्षत्रियों की भांति थी और इनका रहन सहन, जीवन और ऐश्वर्य दैत्यों और दानवों की अपेक्षा अधिक अच्छा होता था !
इला: वृक्ष और समस्त वनस्पति !
मुनि: समस्त अप्सरागण ! ये स्वर्गलोक की नर्तकियां कहलाती थीं जिनका काम देवताओं का मनोरंजन करना और उन्हें प्रसन्न रखना था ! उर्वशी, मेनका, रम्भा एवं तिलोत्तमा इत्यादि कुछ मुख्य अप्सराएँ हैं !
क्रोधवषा: सर्प जाति, बिच्छू और अन्य विषैले जीव और सरीसृप !
सुरभि: सम्पूर्ण गोवंश (गाय, भैंस, बैल इत्यादि) ! इसके आलावा इनसे 11 रुद्रों का जन्म हुआ जो भगवान शंकर के अंशावतार माने जाते हैं ! भगवान शंकर ने महर्षि कश्यप की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपने अंशावतार के पिता होने का वरदान दिया था ! वे हैं: कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुधन्य, शम्भू, चंड एवं भव !
सरमा: हिंसक और शिकारी पशु, कुत्ते इत्यादि !
ताम्रा: गीध, बाज और अन्य शिकारी पक्षी !
तिमि: मछलियाँ और अन्य समस्त जलचर !
विनता: अरुण और गरुड़ ! अरुण सूर्य के सारथि बन गए और गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन !
कद्रू: समस्त नाग जाति ! कद्रू से 1,000 नागों की जातियों का जन्म हुआ. इनमे आठ मुख्य नागकुल चले ! वे थे वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड, महापद्म और धनञ्जय ! सर्प जाति और नाग जाति अलग अलग थी ! सर्पों का मतलब जहाँ सरीसृपों की जाति से है वहीँ नाग जाति उपदेवताओं की श्रेणी में आती है जिनका उपरी हिस्सा मनुष्यों की तरह और निचला हिस्सा सर्पों की तरह होता था ! ये जाति पाताल में निवास करती है और सर्पों से अधिक शक्तिशाली, लुप्त और रहस्यमयी मानी जाती है !
पतंगी: पक्षियों की समस्त जाति !
यामिनी: कीट पतंगों की समस्त जाति !
इसके अलावा महर्षि कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया ! पुलोमा से पौलोम नमक दानव वंश चला और कालका से 60,000 दैत्यों ने जन्म लिया जो कालिकेय कहलाये ! रावण की बहन शूर्पनखा का पति विद्युत्जिह्य भी कालिकेय दैत्य था जो रावण के हाथों मारा गया था !
इंद्र व 300 अन्य वैष्णव संस्कृति के पोषक राजाओं के सहयोग से जब राम ने रावण विजय प्राप्त की तब उसके बाद निरंतर शैव संप्रदाय का पतन होता चला गया और वैष्णव संप्रदाय का महत्व बढ़ता चला गया ! कालांतर में शैव संप्रदाय बस सिर्फ उपासना पद्धति तक ही सीमित रह गया और शासन सत्ता पूरी तरह से वैष्णव शासकों के हाथ में चली गई ! अतः यह कहा जा सकता है कि रावण शैव संप्रदाय का आखिरी शासक था !