क्या आदि गुरु शंकराचार्य ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं : Yogesh Mishra

प्रकृति की व्यवस्था यदि पूर्वाग्रही होकर देखा जाये तो अत्यंत जटिल है ! अन्यथा तटस्थ भाव से यदि प्रकृति को समझने की चेष्टा की जाये ! तो प्रकृति अपने रहस्य स्वयं ही खोलने लगती है ! प्रकृति बहुत ही व्यवस्थित तरीके से चलने वाली एक ईश्वरीय व्यवस्था है ! जिसमें “कर्म” के “कार्य कारण” की व्यवस्था ही समस्त सृष्टि के रहस्यों की कुंजी है ! अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि हमने “कार्य कारण” की व्यवस्था को समझ लिया है तो प्रकृति के गहरे से गहरे रहस्य भी हमें सहज ही समझ में आ जायेंगे !

आज से लगभग 7500 साल पहले जब समस्त पृथ्वी पर “रक्ष संस्कृति” का प्रादुर्भाव हुआ और सत्य सनातन धर्म का विलोप होने लगा ! तब भगवान श्रीराम ने पृथ्वी पर अवतार लिया और “रक्ष संस्कृति” के नायक रावण का उन्हीं की कर्मभूमि में जाकर संघार किया ! उसके ढाई हजार साल बाद जब पुनः कुरु साम्राज्य के माध्यम से समस्त पृथ्वी के राजाओं ने सनातन धर्म के सिद्धांतों का परित्याग कर “स्वेच्छाचारी धर्म” का अनुसरण किया ! तब वही भगवान श्रीराम, श्री कृष्ण के रूप में पुनः अवतरित हुये और कुरुक्षेत्र में समस्त विधर्मी राजाओं का विनाश करवा दिया ! जिसकी पुष्टि निम्नलिखित घटनाक्रमों से होती है !

भगवान श्री राम का जन्म उनके पिता राजा दशरथ की प्रबल इच्छा पर एक पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा हुआ था ! जबकि इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय कंस के कारावास में कृष्ण के पिता वासुदेव की बिल्कुल इच्छा नहीं थी कि उनके आठवीं संतान पैदा हो ! नहीं तो कंस उसे मार देगा !

किंतु इसके बाद भी श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार दुख में जब वासुदेव की आंख का आंसू देवकी के मस्तक पर गिरा और वह लुढ़क कर देवकी के आंख में चला गया तो उसी से कृष्ण की मां देवकी गर्भवती हो गई और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को जन्म दिया !

इसी तरह भगवान श्री राम के जन्म के उपरांत उनकी बाल्यावस्था बहुत ही लाड प्यार में और सभी सुख-सुविधाओं में बीती थी किंतु जब वही राम कृष्ण के रूप में अवतरित हुये तो उनकी बाल्यावस्था राक्षसों से संघर्ष करते-करते और जंगल-जंगल घूम कर गाय को चराने में ही कष्ट के साथ बीती !

ठीक इसी तरह युवावस्था में जब राम जंगल-जंगल घूम रहे थे ! तब श्री कृष्ण द्वारिका में नवनिर्मित राजमहल में भोग कर रहे थे ! भगवान श्रीराम को अपने दांपत्य जीवन में अनेक बार दांपत्य जीवन के दुख का सामना करना पड़ा ! जबकि उसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण को बचपन से ही गोपीओं का और जीवन भर सुखद दांपत्य जीवन का सुख मिलता रहा !

राम के चरित्र और व्यक्तित्व पर कभी कलंक नहीं लगा और न ही उन्होंने कभी कोई मर्यादा थोड़ी ! इसीलिये वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये ! इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही शरारती थे ! वह अपने ही नहीं दूसरों के घरों में जाकर भी चोरी किया करते थे और जीवन भर अवसर के अनुसार छल का प्रयोग करते रहे और छलिया कहलाये !

भगवान श्रीराम को जीवन भर अपने परिवार के भाई बंधु का सुखद सहयोग मिला जबकि इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण को बचपन में ही अपने बचपन के साथी ग्वाल बालों, गोपीयों को छोड़कर मथुरा जाना पड़ा और बाद में मथुरा को भी छोड़कर सभी नातेदार रिश्तेदारों से बहुत दूर द्वारिका जाकर बसना पड़ा !

राम रावण के युद्ध में राम के भाई लक्ष्मण सदैव राम के साथ रहे ! जबकि महाभारत के युद्ध में कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने उस युद्ध में भाग नहीं लिया और वह तीर्थ यात्रा पर चले गये थे !

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपने एक जीवन में जिस तरह का जीवन जीता है ! उसके कर्मों के अनुसार उसे अगले जन्मों में उसके विपरीत परिस्थितियों में जीवन यापन करना पड़ता है !

ठीक इसी प्रकार आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था और बचपन में ही इनके पिता का देहांत हो गया था ! जिससे उन्हें बहुत तरह का कष्ट सहना पड़ा तथा यह अपने माता पिता की अकेली संतान थे ! ठीक इसके विपरीत नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक कायस्थ अति संपन्न परिवार में आठवीं संतान के रूप में जन्मे थे और उन्हें अपने पिता का स्नेह और आशीर्वाद लंबी आयु तक प्राप्त हुआ था !

यहां पर कायस्थ शब्द का प्रयोग मैंने विशेष रूप से किया है ! सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था में चार वर्णों का वर्णन मिलता है ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ! कायस्थ इन चारों वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत नहीं आते हैं ! तो कायस्थों की उत्पत्ति कैसे हुई !

इस विषय पर मैंने काफी गहन अध्ययन किया और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि बौद्ध काल में जिन हिंदुओं ने बौद्ध मत को स्वीकार कर लिया था और बौद्ध धर्मावलम्बी हो गये थे ! जब आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत से बौद्ध मत के बौद्ध विहारों को उखाड़ फेंका तब बौद्ध अनुयाईयों ने वापस सनातन धर्म में आना चाहा ! तब उन्हें सनातन धर्म के आचार्यों ने सनातन धर्म में प्रवेश देने से मना कर दिया ! उस स्थिति में भारत में जितने भी बौद्ध अनुयाई थे ! उन सभी ने एक अलग वर्ण का निर्माण किया ! जो कायस्थ कहलाये !

अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने पूर्व जन्म में जिस बौद्ध धर्म को उखाड़ कर सत्य सनातन हिंदू धर्म की स्थापना की थी ! अगले जन्म में शंकराचार्य का जन्म उसी पूर्व के बौद्ध धर्म अनुयाई कायस्थ परिवार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रूप में जन्म हुआ !

आदि गुरु शंकराचार्य ने बाल्यावस्था में ही सन्यास ले लिया था जबकि इसके विपरीत नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विधिवत अपनी समस्त शिक्षा पूर्ण की और भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा देकर उसमें भी उत्तीर्ण हुये ! भले ही बाद में राष्ट्र प्रेम के कारण उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी !

आदि गुरु शंकराचार्य को अपने सामाजिक जीवन में कभी भी कहीं भी कोई भी विरोध नहीं झेलना पड़ा जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सारी योग्यता, प्रतिभा, क्षमता होते हुये भी जीवन भर अपने सामाजिक जीवन में शासन व सहयोगियों का विरोध झेलना पड़ा !

आदि गुरु शंकराचार्य धर्म के रक्षार्थ कभी भी समुद्री यात्रा या वायुयान यात्रा नहीं किये न ही वह कभी भारत के बाहर गये जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन का अधिकांश समय भारत के बाहर विदेशों में ही गुजरा और उन्होंने अनेक बार समुद्री व वायुयान यात्रा की !

आदि गुरु शंकराचार्य जन्म से ही योग और तंत्र के प्रकांड ज्ञानता थे ! उन्होंने अपने जीवन में समय-समय पर अनेक बार योग और तांत्रिक क्रियाओं का उपयोग किया ! जबकि अगले जन्म में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1945 की तथाकथित विमान दुर्घटना के बाद ही तिब्बत में तंत्र और यौगिक क्रियाओं को समझने और अभ्यास करने का अवसर मिला !

आदि गुरु शंकराचार्य कि मात्र 32 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी ! इसके पूर्व ही इन्होंने परकाया प्रवेश के विज्ञान के द्वारा दांपत्य जीवन के सुख के रहस्य को आध्यात्मिक मर्यादा के तहत जाना था ! जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को परकाया प्रवेश का ज्ञान 1948 के बाद 50 वर्ष की आयु में तिब्बत के बौद्ध संप्रदाय के द्वारा प्राप्त हुआ जिस साधना पध्यति का उन्होंने पूर्व जन्म में विरोध किया था !

आदि गुरु शंकराचार्य को सदैव शासन सत्ता का सहयोग प्राप्त होता रहा है ! जिससे वह अपने कार्य को पूर्ण कर सके जबकि इसके विपरीत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सदैव देश में और देश के बाहर भी शासन सत्ता के विरोध का सामना करना पड़ा ! जिस कारण उन्हें अपनी अनेकों योजनायें अधूरी ही छोड़ कर अज्ञातवास में जाना पड़ा !

आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन में उनके अनुयायियों में उनको लेकर कभी कोई भ्रम की स्थिति नहीं रही जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ उनके अनुयायियों में अनेकों बार यह भ्रम फैला है कि अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई है पर उसके कुछ ही समय उनके बाद बार-बार जीवित होने की सूचना भी प्राप्त होती रही है !

अत: ऐसा मेरा विश्वास है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिये वर्तमान में भी परकाया प्रवेश विज्ञान के द्वारा गहन तप और साधना में लगे हुये हैं जो तृतीय विश्वयुद्ध की पराकाष्ठा पर एक संत के रूप में प्रकट होकर भारत की पुनः रक्षा करेंगे और सत्य सनातन धर्म के विरोधी नवोदित धर्मों का सर्वनाश करेंगे !

इसलिये मेरा यह मानना है कि आदि गुरु शंकराचार्य ही वर्तमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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