कोरोना कहीं भारतीय स्वदेशी उद्योगों को नष्ट करने की साजिश तो नहीं है ! : Yogesh Mishra

भारतवर्ष जैसे देश जहाँ की अर्थव्यवस्था मध्यम वर्ग की व्यापारिक कुशलता और निम्न वर्ग के श्रम पर टिकी है ! वहां कोरोना के कारण सोशल डिस्टेन्सिंग का फार्मूला हर स्थिति में छोटे और मंझोले उद्योग-धंधों, कारखाने , दुकानें आदि के लिये अभिशाप है ! पूर्व में भी इस वर्ग को तबाह करने के लिये कई प्रयास किये जा चुके हैं ! जैसे प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर कुटीर उद्योग नष्ट करना, विमुद्रीकरण के नाम पर धन की कमी, जीएसटी के नाम पर उधार का व्यवसाय नष्ट करना, 100% एफ.डी.आई. के नाम पर स्वदेशी उद्योग की प्रतिस्पर्धा में बिना किसी तैयारी के विदेशी पूंजीपतियों को आमंत्रित करना जैसे अनेकों उदाहरण हैं !

लगभग 2 महीने 10 दिन से सब कुछ बंद है ! लेबर उद्योग क्षेत्र को छोड़ कर अपने अपने गाँव पलायन कर गयी है ! जिससे सारे छोटे और मंझोले उद्योग बंद पड़े हैं ! परन्तु शेयर मार्किट, बड़े उद्योग और बैंक आदि कभी बंद नही हुये ! सारे छोटे अस्पताल और क्लिनिक बंद हैं परन्तु अपोलो जैसे बड़े अस्पताल बंद नही हुये ! सारे होटल्स बंद हैं परन्तु जोमेटो और स्वैगी जैसी कंपनियां चल रही हैं ! स्वदेशी शो रूम बंद पर ऐमजोंन और फिलिप कार्ड चल रहे हैं ! गन्ने का रस, मैंगो शेक बंद पर कोल्ड ड्रिंक चल रही है ! आटा चक्की बंद पर फ्लोर मिल चल रही है ! डोसा बंद पर मेगी चल रही है ! मंदिर बंद हैं पर दारू के ठेके चल रहे हैं ! जब 150 मामले थे तो अचानक लाक डाउन और जब तीन माह बाद 1,50,000 मामले हैं तो पूरा भारत खोल दिया गया ! यह क्या बतलाता है ?

किराना और मेडिकल छोड़ दें तो बाकी दुकानों की भी यही हालात हैं ! कोई नया माल आ नही रहा है ! कारण फैक्ट्रियां बंद हैं और अब यह फैक्ट्रियां खुलेंगी भी नही ! एक तो वैसे ही मंदी के कारण घाटे में जा रही थी ! ऊपर से यह पुर्णतः बंदी के बाद मजदूर कहाँ से लायेंगे क्योंकि सारे तो मौत के भय से घर चले गये ! वह भी ऐसी पीड़ा के साथ गये हैं कि सब कुछ सामान्य होने के बाद भी कम से कम 1 वर्ष से पहले तो नही लौटेंगे ! तब तक बैंक लोन के कारण इन फैक्ट्रियों पर ताला लग जायेगा !

जब सारी छोटी मोटी फैक्ट्रियां बंद हो जायेंगी तब विदेशी बड़े व्यापारियों के मोनोपोली का गेम शुरू होगा ! क्योंकि उन्हें चुनौती देने वाला कोई नही रह जायेगा ! फिर F.D.I. की बाढ़ आयेगी इस देश में और सरकारें वाहवाही लूटेंगी हम विदेशों से इतना निवेश और नयी तकनीकी लाये हैं ! इतनों को रोजगार दिया है आदि आदि ! पर यह नही बतायेगी कि देश के कितने फैक्ट्रियों के मालिक तब तक या तो आत्महत्या कर चुके होंगे या फिर विदेशी कंपनियों में नौकरी कर रहे होंगे !

इन दो महीनों के लॉकडाउन के अंतराल में अमेरिका के टॉप 600 अरबपतियों की संपत्ति में 400 बिलियन डॉलर अर्थात 30,429 करोड़ की भारी वृद्धि हुई है ! केवल टॉप 5 लोगों की संपत्ति में 75.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है ! केवल जेफ़ बेजोस की संपत्ति में 30 % की बढ़ोतरी हुई है !

पूरी दुनिया में कुछ भी हो जाये पर इन्हें कोई फर्क नही पड़ता है ! बल्कि हर आपदा से इन्हें लाभ ही होता है ! परन्तु इसी क्रम में भारत की बात की जाये तो यहाँ के सबसे ताकतवर व्यक्ति मुकेश अम्बानी को एक महीने के अन्दर 3 बार जिओ की हिस्सेदारी बेचनी पड़ी ! बी.एस.एन.एल. बिकने की तैयारी में है ! अब सरकारी औद्यगिक प्रतिष्ठान तो छोड़िये, रेल की पटरियां तक लोग बेचने को आमादा बैठे हैं ! यह देश की कंपनियों को क्या बचायेंगे ! यही हाल रहा तो इस देश में स्वदेशी उद्योग या उद्यमिता के नाम पर कुछ नही बचेगा ! केवल नौकर और मजदूर ही बचेंगे जो विदेशी कंपनियों में काम कर रहे होंगे !

कोरोना महामारी नही बल्कि यह देश को आर्थिक रूप से पंगु बनाने का बहुत बड़ा षड़यंत्र है ! जिसका उद्देश्य इस देश की उद्यमिता, उद्योग-धंधों को तबाह करना है ! जिसमें विदेशी मिडिया और शासक मिले हुये हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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