क्या भारत वित्तीय आपातकाल की ओर बढ़ रहा है ! : Yogesh Mishra

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कोरोना वायरस के मद्देनजर संविधान के अनुच्छेद- 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने की गुहार की गई है ! याचिका सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमैटिक चेंजेज ने दायर की है !

वकील विराग गुप्ता के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि कोरोना वायरस की महामारी के दौरान राज्यों एवं स्थानीय अथॉरिटी द्वारा की जा रही मनमानी को देखते हुए कानून के शासन को सरंक्षित करने की दरकार है !

याचिका में गुहार की गई है 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान बिजली, पानी टेलिफोन सहित अन्य जरूरी बिलों और ईएमआई भुगतान को निलंबित कर दिया जाए ! याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन से एक मायने में कहीं भी जाने-आने के अधिकार सहित अन्य मौलिक अधिकार निलंबित हो गये हैं ! आजादी के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है जब आम आदमी को अखबार तक नहीं मिल पा रहा है !

अदालतों के बंद होने से न्याय पाने का अधिकार भी प्रभावित हो रहा है ! ऐसे में संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल लगाने की जरूरत है ! याचिका में यह दावा किया गया है भारत की आजादी के बाद का सबसे बड़ा आपातकाल है ! लिहाजा संवैधानिक प्रावधानों के तहत इससे निपटने की जरूरत है !

साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा करने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत अधिसूचना जारी की गई ! लेकिन अलग-अलग राज्य और पुलिस अथॉरिटी द्वारा धारा 144 के तहत अपने हिसाब से कार्रवाई की जा रही है ! जो एक मायने में संवैधानिक फ्रॉड है !

विभिन्न अथॉरिटी द्वारा अलग-अलग उठाये जा रहे हैं ! इन कदमों की वजह से भ्रम एवं अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो रही है ! किसी भी स्थिति में कोरोना वायरस से निपटने के लिए यह समाधान नहीं हो सकता है !

लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से रुक गई है ! याचिका में यह भी गुहार की गई है कि राज्य पुलिस और स्थानीय अथॉरिटी को गृह मंत्रालय द्वारा दिए गये निर्देशों का सही तरीके से पालन करने का निर्देश दिया जाए जिससे कि आवश्यक सेवाओं मैं किसी तरह का व्यवधान न आये !

असल में इसकी शुरुआत भाजपा के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी के एक ट्विट से हुई ! वैसे वे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर काफी समय से सवाल उठाते रहे हैं ! पर उन्होंने 21 मार्च को ट्विट करके कहा कि “क्या भारत में वित्तीय आपातकाल अनिवार्य हो गया है ? उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को इस बारे में सारी अटकलों को दूर करना चाहिये !”

वित्तीय आपतकाल हमारे संविधान की एक ऐसी व्यवस्था है ! जिससे देश या देश की किसी राज्य में आई वित्तीय दुर्व्यवस्था का सामना किया जा सके !

आर्टिकल 360 में जो लिखा है कि “अगर हमारे राष्ट्रपति जी को लगे कि कोई क्षेत्र या फिर पूरे देश में आर्थनैतिक मंदी बहुत नीचे तक चली गई है, या फिर सरकार के पास काम चलाने को धनराशि नहीं है, अथवा कहीं से लाने का साधन भी नहीं है या फिर ऐसी कोई आर्थिक दुर्व्यवस्था है, तब वो देश या प्रदेश में “ वित्तीय आपातकाल” घोषणा कर सकते हैं !”

ऐसी स्थिति जिसमें भारत का वित्‍तीय स्‍थायित्‍व या साख संकट में हो, तो उसे वित्‍तीय आपात कहते हैं ! संविधान में भी इसे ‘वित्‍तीय आपात‘ कहा गया है !

भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 360(1) के तहत वित्तीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा (मंत्रिपरिषद की सलाह पर ) तब की जाती है, जब राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से विश्वास हो जाए कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है ! अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं, सरकार दिवालिया होने के कगार पर आ जाती है ! भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाये ! तब इस वित्तीय आपात के अनुच्छेद का प्रयोग किया जा सकता है !

आरंभ में उद्घोषणा दो माह तक प्रवृत्‍त रहती है, यदि दो माह की अवधि के भीतर संसद, साधारण बहुमत से उद्घोषणा का अनुमोदन कर देती है तो उद्घोषणा अनिश्चित काल तक बनी रह सकती है ! क्‍योंकि अनुच्‍छेद 360 में उद्घोषणा के लिये अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं की गई है !

यदि लोकसभा अस्तित्‍व में नहीं है तो अनुमोदन राज्‍यसभा द्वारा किया जाएगा और उद्घोषणा का नवगठित लोकसभा के द्वारा अपनी पहली बैठक के 30 दिनों के भीतर अनुमोदन आवश्‍यक है, अन्‍यथा 30 दिन की अवधि पूरी होते ही उद्घोषणा स्‍वत: समाप्‍त हो जाएगी !

वित्‍तीय आपात की उद्घोषणा को किसी भी पश्‍चातवर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस लिया जा सकता है ! इसके लिये संसद के अनुमोदन की आवश्‍यकता नहीं होती है !

इस घोषणा के तहत –

सरकारी कर्मचारियों के वेतन राशि को घटाये जाने पर कोई विरोध नहीं हो सकता !

सारे आर्थिक बिल को राष्ट्रपति जी की मुहर लगती है !

सेवा कर तथा आयकर में सरकार बढ़ोत्तरी कर सकते हैं आदि !

सरकार बैंक तथा आरबीआई को कह कर ब्याज फिर रेपो रेट बढ़ा भी सकती हैं !

कहने की बात यह है कि सरकार तब वित्तीय अवस्था सुधारने हेतु जो भी पदक्षेप लेगी, उसका जनसाधारण विरोध नहीं कर सकती !

यहाँ पर ध्यान देना पड़ेगा कि सरकार आर्थिक रूप से निम्न वर्ग के लोगों ऊपर कोई भार नहीं डालेगी ! बस मध्यम तथा धनी श्रेणी से भरपाई करेगी !

वित्तीय आपातकाल भारत में अब तक कभी लागू नहीं हुआ है ! लेकिन संविधान में इसको अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है ! अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से विश्वास हो जाये कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है !

अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं, सरकार दिवालिया होने के कगार पर आ जाती है ! भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाये, तब इस वित्तीय आपात के अनुच्छेद का प्रयोग किया जा सकता है !

इस आपात में आम नागरिकों के पैसों एवं संपत्ति पर भी देश का अधिकार हो जायेगा ! राष्ट्रपति किसी कर्मचारी के वेतन को भी कम कर सकता है !

गौरतलब है कि संविधान में वर्णित तीनों आपात उपबंधों में से वित्तीय आपात को छोड़ कर भारत में बाकी दोनों को आजमाया जा चुका है ! भारत में कभी वित्तीय आपात लागू न हो, इसकी हमें प्रार्थना करनी चाहिये ! आपातकाल का सीधा सा मतलब होता है, आम नागरिकों के सारे मौलिक अधिकारों में कटौती ! इस दौरान राज सत्ता निरंकुश और आम नागरिकों की हालत निरीह हो जाती है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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