पूरी दुनिया का उपभोक्तावादी बाजार अब मानव मस्तिष्क को वैचारिक कूड़ा घर समझने लगा है ! इस मानवीय वैचारिक कूड़ा घर में सकारात्मक विचारों के स्थान पर घनघोर निम्न, छिछले, ओछे विचारों का आधुनिक विज्ञान की मदद से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस द्वारा बहुत तेजी से वैचारिक कूड़ा फेंके जा रहा है !
और अब तो व्यक्तियों को भी इन्हीं निकृष्ट विचारों में ही आनंद आने लगा है ! चिंतन का विषय यह भी है कि एक तरफ मनुष्य कहता है कि शैक्षिक उन्नति के साथ मनुष्य का बौद्धिक स्तर विकसित होता है किंतु देखने में जो आ रहा है कि मनुष्य की शैक्षिक उन्नति के साथ साथ मनुष्य बौद्धिक रूप से विकलांग होता चला जा रहा है !
यह आज के मनोचिकित्सकों के विश्लेषण का यह भी विषय है कि मनुष्य ने शिक्षा पर जिस तरह अधिकार जमाया उसके बाद भी मनुष्य निम्न और निकृष्ट विचारों के प्रति इतना आकर्षित क्यों हो रहा है ?
कल तक जो विषय सामाजिक मर्यादा के विपरीत होने के कारण घनघोर आलोचना का शिकार हुआ करते थे ! आज वही सब विषय इस बौद्धिक हमले के बाद सामाजिक स्वीकार्य का विषय हो गये हैं ! मर्यादा विहीन लोग बिना किसी संकोच के इन ओछे विचारों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं !
यही नहीं कुछ लोग तो ऐसे सामाजिक मर्यादा विहीन विचारों का अनुकरण करके अपने आप को समाज में प्रतिष्ठित घोषित करने की कामना करते हैं और समाज उन्हें प्रतिष्ठा दे भी रहा है !
यह सभी कुछ उपभोक्तावादी बाजार के द्वारा मानव मस्तिष्क को वैचारिक कूड़ा घर समझकर फेंके जाने वाले निकृष्ट किन्तु आकर्षक विचारों का स्पष्ट परिणाम है !
व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, दूरदर्शन, एंड्राइड फोन, असलील वेबसाइट आदि न जाने कितने माध्यम हैं ! जिनके माध्यम से उपभोक्तावादी बाजारों को चलाने वाले संचालक नित्य प्रति हमारी सामाजिक मर्यादा के विपरीत सैकड़ों विचार हमारे मस्तिष्क में प्रति दिन डाल रहते हैं !
हमें उनके इस षड्यंत्र को समझना होगा वरना पीढ़ी गत वैचारिक अंतराल के बहाने हमारी आने वाली पीढ़ियां अपने मूल वैचारिक अवधारणाओं से कट जाएंगी और हमारी सत्य सनातन संस्कृति नष्ट हो जाएगी ! जो अब भी क्षय की गति को प्राप्त कर चुकी है !
देखना यह है कि इस षड्यंत्र को हम कब और कैसे समझ पाते हैं ! क्योंकि मुक्ति इस षडयंत्र को समझने के बाद ही होगी !!