क्या भारत का संविधान ही भारतीय लोकतंत्र का हत्यारा है ! : Yogesh Mishra

कहा जाता है कि लोकतंत्र में जनता की सरकार होती है ! जिसमें शासन सत्ता चलाने वाले लोगों का निर्धारण जनता करती है ! लेकिन भारत के संविधान में जो सबसे बड़ी खामी है ! वह यही है कि भारत में लोकतंत्र तो है लेकिन यहां पर संवैधानिक पदों पर बैठने वाले व्यक्तियों का निर्धारण भारत की जनता नहीं करती है ! बल्कि यह सभी नियुक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक प्रभाव से होती हैं अर्थात जिसकी लाठी उसकी भैंस ! इस पर जनता का सीधा-सीधा कोई नियंत्रण नहीं होता है !

अब प्रश्न यह है कि वह लाठियां किसकी है ! जिससे भैंसों का निर्धारण होगा ! इन लाठियों में सबसे मजबूत और सशक्त लाठी अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों की होती है ! जिनके इशारे पर प्राय: देश के कर्णधारों का निर्धारण किया जाता है !

इसके बाद स्थान आता है ! देश के पूंजीपतियों और मीडिया मालिकों का जो मंत्रिमंडल के चयन में अहम भूमिका निभाते हैं ! वर्तमान राजनीति में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भी इसमें महत्वपूर्ण दखलअंदाजी है ! लेकिन इन सब में भारत के आम आवाम का कोई स्थान कहीं नहीं है ! जिसके दम पर लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है !

भारत की संवैधानिक व्यवस्था के तहत देश को चलाने का दायित्व भारत के संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोगों का है ! अब प्रश्न यह है कि भारत के संवैधानिक पद कौन-कौन से हैं और उन पर बैठे हुये लोगों को क्या कह कर संबोधित किया जाता है !

इस क्रम में भारतीय संविधान के तहत सर्वोच्च पद भारत के राष्ट्रपति का होता है ! उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ही भारत के संवैधानिक पद के तहत कार्य करता है ! इसी तरह प्रधानमंत्री और उसका समस्त मंत्रिमंडल संवैधानिक शक्तियों से ओतप्रोत होता है ! जो देश चलता है ! फिर चुनाव आयुक्त, भारत का महान्यायवादी, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, तथा विभिन्न राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं उनका मंत्रिमंडल, इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष न्यायाधिपतिगण एवं देश के सभी उच्च न्यायालयों के न्यायमूर्तिगण तथा देश के 700 से अधिक विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य गण !

उपरोक्त सभी संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोगों का सीधा चयन कभी भी भारत का आम आवाम नहीं करता है ! अतः हमारे हाथ में यह है ही नहीं कि हम भारत के किस संवैधानिक पद पर बैठे हुये किस व्यक्ति को शासन सत्ता चलाने के लिये नियुक्त करें !

मेरे कहने का तात्पर्य है कि हमें लोकतंत्र का झुनझुना पकड़ा कर बहलाया तो जाता है ! लेकिन वास्तव में भारत के संविधान में जो लोकतंत्र प्रक्रिया वर्णित है ! उसमें आम जनमानस का स्थान एक दोयम दर्जे के नागरिक से अधिक और कुछ नहीं है !

हम किसी को मत दें या न दें ! हम किसी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करें या न करें ! हम किसी को राष्ट्रपति बनाना चाहें या न बनाना चाहें या हम किसी भी व्यक्ति को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाना चाहें या न बनाना चाहें ! इस पर भारत के आम आवाम का कोई भी नियंत्रण नहीं है !

इसीलिये भारत में लोकतंत्र होते हुये भी भारत के आम आवाम की सुनी नहीं जाती है क्योंकि जब हम इन संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोगों की नियुक्त करने में सीधी भागीदारी करने का कोई अधिकार ही नहीं रखते हैं ! तो फिर इन संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोग हमारे प्रति जवाब देह यह संवेदनशील कैसे हो सकते हैं !

यही भारतीय संविधान की कूटनीतिक छल पूर्ण लोकतंत्र की पहचान है ! जिसमें सब कुछ नागरिकों के हाथ में बतलाया तो जाता है ! लेकिन वास्तव में होता कुछ भी नहीं है !

अगर भारत को विश्व के अन्य देशों की तरह सशक्त बनाना है ! तो इन संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोगों की जवाबदेही जनता के प्रति बनानी होगी और जब तक इन संवैधानिक पदों पर बैठे हुये लोगों पर जनता का सीधा अंकुश नहीं होगा ! तब तक लोकतंत्र जैसे शब्द का प्रयोग विशुद्ध बेईमानी के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगी !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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