कहीं यह शिव नगरी काशी उजाड़ने का दण्ड तो नहीं है : Yogesh Mishra

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पूरे विश्व में भगवान शिव द्वारा स्थापित की गई अति प्राचीन नगरी काशी का सनातन संस्कृति में अपना एक विशेष महत्व है ! यह माना जाता है कि भगवान शिव साक्षात रूप में कैलाश के अलावा काशी में ही निवास करते हैं ! इसी वजह से कि सतयुग से आज तक काशी के मनकर्णिका घाट के शव की अग्नि शांत नहीं हुई ! यहां रातों दिन शव दाह का सिलसिला चलता रहता है !

अनादि काल से बहुत से राजाओं ने इस काशी नगरी को उजाड़ने का अनेक बार प्रयास किया और काल के प्रवाह ने सभी को दंडित किया है ! जो इतिहास में दर्ज है !

इसी तर्ज पर 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था ! उस समय औरंगजेब ने काशी के महत्व को घटाने के लिये काशी विश्वनाथ मंदिर पर विशेष सेना भेजकर उसका विध्वंस करवाया था और वहीं से मुगल सल्तनत का पतन शुरू हो गया था और देखते ही देखते मात्र चार पीढ़ी बाद बहादुर शाह जफर के समय में मुगल सल्तनत इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया ! इसके बाद बहुत से सशक्त शासक भारत में आये लेकिन किसी में भी वह साहस नहीं था जो काशी विश्वनाथ धाम को उजाड़ सके !

किंतु काल का प्रवाह बार-बार अपने आप को दोहराता है ! भगवान शिव की कृपा से वर्ष 2014 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने के बाद सत्ता के शीर्षस्थ लोगों ने मिलकर पुन: काशी को उजाड़ने का निर्णय लिया ! एक विधिवत योजना बनाई गई और काशी की संस्कृति जो वहां की गलियों में बसती थी ! जिन पर पौराणिक मंदिरों की कृपा थी ! उन्हें बुलडोजर चलाकर तोड़ दिया गया और वहां के शिव भक्त देखते रह गये !

मंदिरों के प्राचीन विग्रह या तो तोड़ दिये गये या फिर अंतर्राष्ट्रीय मंडियों में बेच दिये गये ! मंदिरों में गड़े खजाने कहां गये ! आज भी यह जांच का विषय है ! लेकिन दुख तब हुआ, जब काशी में हर हर बम बम का नारा लगाने वाले शिव भक्त मूक दर्शक बन कर इस विध्वंस को देखते रहे और शासन सत्ता के मुखिया की वाहवाही ने कसीदे पढ़ते रहे !

काशी की व्यासपीठ उजाड़ दी गई ! जिसके अफसोस में काशी के व्यास आचार्य ने संघर्ष करते हुए प्राण त्याग दिये लेकिन काशी के तथाकथित हिंदुओं ने व्यास आचार्य को उनके संघर्ष में कोई सहयोग नहीं किया ! बल्कि उल्टा काशी को उजाड़ने वाले सत्ताधीशों के गुणगान करते रहे !

शायद भगवान शिव को यह सब पसंद नहीं आया और कालों के काल महाकाल भगवान शिव ने अपने द्वारा स्थापित अनादि नगरी काशी पर होने वाले अत्याचार से कुपित होकर उन महाकाल विरोधियों को दंडित करने का निर्णय लिया !

फिर वह चाहे भगवान शिव की प्राचीन नगरी वेटिकन सिटी द्वारा संचालित धर्म के अनुपालन करने वालों का समूह हो या मक्केश्वर महादेव को उजाड़ने वाले और अपना नया धर्म स्थापित करने वालों का समूह हो, जब भगवान शिव का क्रोध जागृत हुआ तो उन्होंने हर शिव विरोधी को दंडित करने का निर्णय लिया !

काल के प्रवाह के क्रम में जिसने भगवान शिव के साथ जितना पहले विश्वासघात किया है ! वह उतना पहले ही दंडित होगा ! यही प्रकृति का विधान है ! लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि काशी नगरी को उजड़ता देखने वाले और काशी को उजाड़ने वाले भगवान शिव के क्रोध से बच जायेंगे !

समस्त सांसारिक सम्पन्नता होने के बाद भी जब भगवान शिव की क्रोध अग्नि धड़कती है और उनके द्वारा तृतीय नेत्र खोलकर जब तांडव आरंभ होता है तो मात्र उनके विचार मात्र से ही इस पृथ्वी पर लाशों के ढेर लगने लगते हैं ! जो आज साक्षात दिखाई दे रहा है !

इसलिये अभी भी वक्त है जिन्होंने भगवान शिव के क्रोध को जगाया है ! वह प्रायश्चित करें और भगवान शिव की शरण में आकर उन्हें मनाने का प्रयास करें ! अन्यथा काल के प्रवाह से अगले 21 वर्ष तक भगवान शिव का जो तांडव चलेगा ! वह इस समस्त पृथ्वी को लाशों के ढेर में बदल देगा !

आज मेरी बात लोगों को हंसी लग रही होगी ! लेकिन शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के क्रोध की व्याख्या इन्हीं शब्दों में की गई है और मैं पुराण को साक्षी मानकर कहता हूं कि जब तक आम जनमानस पुनः भगवान शिव के अनुसरण में नहीं आयेगा ! तब तक भगवान शिव का यह रौद्र रूप शांत नहीं होगा !

ॐ शान्ति शान्ति शान्ति !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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