जानिए । जन्म कुण्डली में दूसरे भाव आपको कितना धन देगा ? । Yogesh Mishra

जन्म कुण्डली में दूसरे भाव कितना धन देगा ?

जन्म लग्न के दूसरे भाव (सैकिण्ड हाउस) को धन-स्थान माना गया है। दूसरे भाव से अन्य अनेक विषय ज्ञात होते हैं किन्तु मुख्य रुप से इसे मंगल स्थान कहा गया है।
व्यक्ति के जीवन में धन की क्या स्थिति रहेगी इसे जानने के लिए गणना का प्रारम्भ इसी द्वितीय भाव से किया जाता है। इस भाव की स्थिति, इस भाव के स्वामी की स्थिति, इस भाव में बैठे ग्रह या ग्रहों के आपसी सम्बन्ध् से ही धन सम्बन्धी गणना प्रारम्भ होती है।

दूसरा भाव (सैकिण्ड हाउस) एवं दूसरे भाव का स्वामी (सैकिण्ड लॉर्ड के दो मुख्य बिन्दु हैं जिनके साथ अन्य भाव व ग्रह भिन्न-भिन्न समीकरण बनाते हैं और उन्हीं समीकरणों का अधययन कर, जीवन पर्यन्त धन की क्या स्थिति रहेगी? इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाता है। दूसरे भाव व भावेष के साथ जिन अन्य भावों व भावेषों का विशेष योगदान इस विषय में होता है वे हैं – नवम स्थान अर्थात् ‘कर्म स्थान’ एकादश स्थान अर्थात् लाभ स्थान एवं इन तीनों स्थानों (भावों) के स्वामी।

इन्हीं के साथ लग्न व लग्नेश के सम्बन्ध् से ही लक्ष्मी जी की कृपा की जानकारी प्राप्त होती है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि जन्म कुण्डली’ के ‘लग्न-लग्नेश’, ‘द्वितीय भाव व धनेष’ ‘नवम भाव व भाग्येश’ दशम भाव व कर्मेशु’ एवं ‘एकादश भाव व लाभेश’। इन सब के बीच जब आपस में अच्छा सम्बन्ध् स्थापित होता है तो व्यक्ति विशेष के जीवन में धन की कभी कोई कमी नहीं रहती। यह एक सामान्य वक्तव्य है जिससे भिन्न-भिन्न बनने वाले ‘धन योगों’ के मूल में उपस्थित भावों, ग्रहों व उनके बीच के सम्बन्ध् की अनिवार्यता व महत्व को स्पष्टता से समझा जा सकता है।

यहां मन का प्रश्न स्वाभाविक है कि इन पांचों भावों व इनके स्वामियों के बीच सम्बन्ध् होना तो बहुत कठिन है तो फिर धन कैसे मिलेगा यानि कि दूसरा प्रश्न कि यदि पांचों के बीच सम्बन्ध् स्थापित हुआ तो फिर धन की वर्षा निश्चित? दोनों ही प्रश्नों का औचित्य बनता है। पहले का उत्तर है कि पांचों का सम्बन्ध् स्थापित हो यह आवश्यक नहीं, इनमें से दो या तीन का सम्बन्ध् भी पर्याप्त है, किन्तु आवश्यक है कि अन्य तत्व सहायक हो अर्थात् यह योग वाली (स्टै्रन्थ) हो, इन योगों के निर्माता ग्रहों की स्थिति बहुत अच्छी हो, वे नवांश आदि वर्गों में भी अच्छी स्थिति में हों एवं इन्हीं की दशा-अन्तर्दशा प्राप्त हो।

ऐसा होने पर ये धन योग पूर्ण फल देने में सक्षम होंगे। दूसरे प्रश्न का उत्तर पहले उत्तर का दूसरा भाग है अर्थात् पांचों में सम्बन्ध् स्थापित होने पर भी यदि उनकी स्थिति सुदृढ़ नहीं है, वे नवांश आदि वर्गों में भी कमजोर हुए एवं उनकी दशा अन्तर्दशा नहीं प्राप्त हुई तो ऐसा धन-योग फलित नहीं होगा। साथ ही यहां भी स्पष्ट करूं कि जो मुख्य पांच भाव व भावेष उपरोक्त बताएं हैं। उनके अतिरिक्त भी अन्य भाव द्वितीय व लग्नेश से सम्बन्ध् बनाकर धन-योगों का निर्माण कर सकते हैं। ज्योतिष है ही इतना वृहद विषय कि जिसमें अनेक समीकरणों व सम्भावनाओं का निर्माण होने की सम्भावना सदैव बनी रहती है। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। मंगल के साथ चन्द्र की युति को एक धन योग तो माना गया है, किन्तु हमारे शास्त्रों में उसे गलत रास्ते से प्राप्त होने वाला धन-योग माना गया है। अब इसी ‘चन्द्र – मंगल’ योग पर यदि गुरु की दृष्टि पड़ जाये तो इसे एक सुन्दर ‘कुबेर-योग’ के रूप में जाना जाता है।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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