हिमालय में देव ऋषियों का एक समूह है ! जो वस्त्र व भोजन से रहित है ! न तो उन्हें भोजन की आवश्यकता है और न ही वस्त्रो की ! ऋषि कई प्रकार के होते हैं जैसे- राज, महर्षि, देवर्षि ! राजा का मार्गदर्शन करने वालों को राज ऋषि कहा जाता है ! महर्षि गुरुकुल चलाने वाले, साधना कराने वालों को कहा जाता है ! यह राज ऋषि व महर्षि स्थूल देहधरी होते है ! तीसरा वर्ग है- देवर्षियों का ! यह सबसे अधिक आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न ऋषियों का वर्ग है ! जो स्थूल शरीर के झंझट से परे व समाज से कटे रहकर हिमालय में रहते हैं !
हिमालय की दुर्गम पर्वत श्रंखलाओं में ऐसी ही सूक्ष्म शरीरधारी आत्माओं का निवास स्थान है ! जो अपने स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं ! सामान्यत: यह आत्मायें अपनी तप साधनाओं में लीन रहती हैं ! परन्तु जब धरती पर पस्थितियां बहुत विषम होने लगती हैं जब वह परिस्थितियां धरती पर निवास कर रहे महापुरुषों, सन्तों, वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, विचारकों के नियन्त्रण से बाहर होने लगती हैं ! तब यह आत्मायें धरती की समस्याओं को सुलझाने के लिए जागृत और क्रियाशील होने लगती हैं !
यह आत्मायें उस समय धरती पर उभर रहे भयावह वातावरण को समाप्त करने के लिए संयुक्त प्रयास प्रारम्भ कर देती हैं ! उनके इस स्वरूप को ही ऋषि संसद की संज्ञा दी जाती है ! यह आत्मायें धरती की भीषण समस्याओं के निराकरण के लिए तरह-तरह की योजनायें बनाना प्रारम्भ कर देती हैं ! इन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिये इन्हें स्थूल शरीरधारी व्यक्तियों की आवश्यकता होती है ! अत: यह धरती पर उन मानवों से सम्पर्क करती हैं जो अच्छे हृदय के होते हैं जिनकी अपनी इच्छायें, वासनायें,लालसायें कम होती हैं तथा मानव जाति के कल्याण के लिये जिनका हृदय द्रवित होता है !
तब यह दिव्य आत्मायें उन मनुष्यों के माध्यम से ऐसे आश्चर्यजनक कार्य करती हैं ! जिससे पृथ्वी पर व्याप्त अन्याय और अधर्म बहुत तेजी से समाप्त होने लगता है और सत्य व धर्म की पुनः स्थापना होती है ! यही अध्यात्म की शक्ति है ! जिससे सृष्टि संचालित हो रही है !
बस आवश्यकता है अपने को उन दिव्य शक्तियों के लिये कार्य करने हेतु तैयार करने की !