लोकतंत्र में लाठीचार्ज का औचित्य : Yogesh Mishra

बताया जाता है कि भारत में आज तथाकथित लोकतंत्र है ! लोकतंत्र का तात्पर्य शासन तंत्र जो लोक इच्छा से चले ! इसीलिये हमारे यहां केंद्र में संसद है और राज्य में विधानसभाओं की स्थापना की गई है ! जिसके अंदर हम सांसद और विधायक के रूप में लोक समूहों के प्रतिनिधि के तौर पर एक चुनाव प्रक्रिया के दौरान कुछ लोगों को चुनकर भेजते हैं ! जिन के वेतन, भत्ते, पेंशन आदि सुविधायें हमारे द्वारा दिये जाने वाले कर से उन्हें उपलब्ध करवाई जाती है !

ऐसी स्थिति में लोकतंत्र में प्रत्येक सांसद और विधायक का यह कर्तव्य हो जाता है कि उसे जिस किसी भी मतदाता ने अपना जनप्रतिनिधियों को चुना है, उस मतदाता के विचार, उसकी आवाज संसद और विधानमंडल के अंदर तक पहुंचाये ! लेकिन आज ऐसा नहीं रहा है !

इसका मूल कारण है कि आज लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि का चयन मतदाताओं को मूर्ख बनाकर करवाया जा रहा है ! इसीलिये जो जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, वह जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व सदन में नहीं करते हैं बल्कि जिस राजनीतिक दल से चुने जाते हैं, उस राजनीतिक दल की इच्छा और विचारधारा का प्रतिनिधित्व वह लोग सदनों में किया करते हैं !

उसी का परिणाम है कि जब मतदाता द्वारा चयनित जनप्रतिनिधि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे हैं, तो जनता को अपनी बात सदन तक पहुंचाने के लिये धरना, प्रदर्शन आदि का सहारा लेना पड़ रहा है !

अब यह लोकतंत्र का कितना दुर्भाग्य है कि एक तरफ तथाकथित जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं और दूसरी तरफ जब जनता सीधे अपनी आवाज सदन तक पहुंचाने के लिये धरना प्रदर्शन कर रही है तो उस पर इस लोकतंत्र में जनता की आवाज को सुनने के स्थान पर उसे दबाने या कुचलने का प्रयास किया जा रहा है !

मैं पूछता हूं कि क्या औचित्य है “लोकतंत्र में पुलिस के लाठीचार्ज का” ! क्या जनप्रतिनिधि के कर्तव्य विमुख हो जाने के कारण आज तक सदन में किसी भी जनप्रतिनिधि को उसके दायित्व से मुक्त किया गया या उस पर कोई अर्थ दण्ड लगाया गया ! जब कि जनप्रतिनिधि के आधीन यदि कोई सरकारी कर्मचारी अपने दायित्व का निर्वहन सही तरह नहीं करता है तो उसे मात्र इसी दोष में उसके दायित्व से मुक्त कर दिया जाता है !

ठीक यही स्थिति जब जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि सदन के अंदर पहुंचकर जनता के की आवाज का प्रतिनिधित्व सदन में नहीं करता है तो क्या ऐसे जन प्रतिनिधि को अनावश्यक वेतन, भत्ते देने के स्थान पर उसे उसके दायित्व से मुक्त नहीं कर देना चाहिये और यदि ऐसा नहीं किया जा रहा है तो यह क्या सीधे-सीधे लोकतंत्र की हत्या नहीं है ! आखिर जनता अपनी बात सदन तक कैसे पहुंचायेगी !

और यदि जनता की आवाज पहुंचाने वाला जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्य से विमुख है तो उसी स्थिति में जब जनता अपनी सीधी आवाज सदन तक पहुँचाने के लिये धरना प्रदर्शन का मार्ग अपनाती है तो उस राष्ट्र के नागरिक जन समूह की आवाज सुनने के स्थान पर पुलिस बल द्वारा उसके ऊपर आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं ! गोलियां चलाई जाती है या लाठीचार्ज किया जाता है !

आखिर प्रश्न यह खड़ा होता है कि जनता की आवाज सदन तक पहुंचे कैसे ! क्योंकि धरना प्रदर्शन के दौरान जो “जन प्रत्यावेदन” सरकारी अधिकारियों को दिये जाते हैं ! वह मात्र एक रद्दी के कागज से अधिक कोई औचित्य नहीं रखते हैं ! क्योंकि पिछले 70 सालों में धरना प्रदर्शन के दौरान दिये गये किसी भी जन प्रत्यावेदन पर आज तक शासन सत्ता ने कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया !

कहने को तो हम तथाकथित एक लोकतांत्रिक सभ्य समाज में रहते हैं ! लेकिन सदन के अंदर बैठे हुये लोग हमारी आवाज नहीं सुनते और जब हम अपनी आवाज सुनाने के लिये लोकतांत्रिक तरीके से धरना प्रदर्शन करते हैं तो शासन सत्ता में बैठे हुये हमारे जनप्रतिनिधि सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करके हमारे ऊपर लाठीचार्ज करवाते हैं या गोलियां चलवाते हैं !

क्या यही तथाकथित सभ्य समाज का लोकतंत्र है ! और यदि इसी को सभ्य समाज का लोकतंत्र कहते हैं तो तानाशाही किसे कहते हैं ? सच्चाई यह है कि भारत में लोकतंत्र नहीं तानाशाही तंत्र चल रहा है ! यदि सत्ता में बैठे हुये तानाशाह की इच्छा के विपरीत आप कोई भी आवाज उठाते हैं तो आपकी आवाज को कुचलने के लिये शासन सत्ता ने अरबों रुपये खर्च करके सशस्त्र पुलिस बल तैयार कर रखा है ! जो लाठीचार्ज से लेकर, फर्जी केस में फंसाने तक, हर तरह के हथकंडे अपनाने के लिये ही वेतन पाती है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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