हमें धर्म स्थलों से दूर रखना, कहीं विश्व सत्ता की साजिश तो नहीं है : Yogesh Mishra

यह एक सामान्य मनोविज्ञान का शोध है कि यदि किसी व्यक्ति की दिनचर्या से किसी कार्य को निरंतर 40 दिन के लिये अलग कर दिया जाये, तो वह व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी नई दिनचर्या में उस कार्य को स्थाई रूप से त्याग देता है ! इस पर अनेकों प्रमाणित शोध भी हो चुके हैं !

इसी मनोविज्ञान के शोध को आधार बनाते हुये मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि कोरोना वायरस संक्रमण काल में जो सभी नागरिकों को पूरी दुनिया में अपने-अपने धर्म स्थलों से दूर रहने का प्रतिबंध लागू किया गया था ! उसकी अवधि अलग अलग देशों में 40 दिन से अधिक है !

इस दौरान नियमित रूप से अपने धर्म स्थल पर जाने वाले बहुत से नागरिकों ने अपनी दिनचर्या से स्थाई रूप से अपने धर्म स्थल पर जाने का क्रम ही त्याग दिया है और कुछ लोग जो धर्म के प्रभाव से लॉक डाउन खुलने के बाद अपने धर्म स्थल की तरफ जाना भी चाहते हैं ! तो उन्हें कोरोना संक्रमण का भय दिखाकर उनके ऊपर इतने तरह के प्रतिबंध लगा दिये गये हैं कि उनका अपने धर्म स्थलों से मोह ही भंग हो जाये !

अब प्रश्न यह है कि व्यक्ति की यह अवधारणा है कि भगवान सर्वशक्तिमान है और वह व्यक्ति को किसी भी समस्या से बाहर निकाल सकता है ! ऐसी स्थिति में हमारे ही नहीं विश्व के सभी धर्म शास्त्रों में सैकड़ों ऐसे उदाहरण दिये गये हैं कि जब पूरी दुनिया में निराशा फैल गई ! तब ईश्वर के दिखाये हुये मार्ग पर चलने से व्यक्ति के अंदर पुनः उत्साह का संचार हुआ और सृष्टि का क्रम आगे चलता रहा है !

किंतु अब की बार हर धर्म स्थलों पर लगाये गये प्रतिबंध हमें मानसिक रूप से यह महसूस करा रहे हैं कि कोरोना वायरस भगवान से भी अधिक शक्तिशाली है और ईश्वर में भी यह सामर्थ नहीं है कि वह हमें कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा सके !

इसीलिये मंदिरों में घंटी बजाना, प्रसाद चढ़ाना, बैठकर पाठ करना आदि आदि पर अनेकों प्रतिबंध लगा दिये गये हैं ! गुरुद्वारे में लंगर खिलाना जो कि सिख धर्म का सबसे पुनीत कार्य है ! उस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है ! मस्जिदों में जमात में नवाज नहीं अदा हो सकती है ! चर्चा में साप्ताहिक प्रेयर नहीं हो सकती है ! यह सभी प्रतिबंध यह सिद्ध करते हैं कि संभवत: कोरोना वायरस का संक्रमण भगवान की कृपा और विश्वास से अधिक शक्तिशाली है !

लेकिन इसके पीछे एक विचार और भी चल रहा है कि कहीं विश्व सत्ता जो पूरे विश्व में भविष्य का एक ही अज्ञात धर्म लागू करना चाहती है ! वह सभी वर्तमान के धर्म स्थलों पर लगाये जाने वाला यह प्रतिबंध, उसके भविष्य के एक ही धर्म लागू करने के षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है ! जिसे अभी तक हम नहीं समझ पा रहे हैं !

बहुत संभावना है कि निकट भविष्य में धर्म अनुयायियों की कमी के कारण धीरे-धीरे सभी धर्मों के धर्म स्थलों में यूरोप की तरह ताले लगने लगें और पूरे विश्व में इन सभी विभिन्न धर्म स्थलों के स्थान पर एक सर्वमान्य धर्म स्थल व्यवस्थित योजना के तहत स्थापित कर दिया जाये ! जो पूरे विश्व के सभी विभिन्न धर्मों को समाप्त करके विश्व सत्ता की योजना के तहत मात्र एक धर्म की स्थापना के उद्देश्य को पूरा करता हो !

यदि ऐसा कोई षड्यंत्र चल रहा है तो यह विषय गंभीर है और इस पर विभिन्न धर्म संप्रदाय के लोगों को इस विश्वव्यापी षड्यंत्र पर गहन विचार करना चाहिये ! जिससे हमारी जिस भगवान में आस्था है ! वह विश्वास जीवित बना रहे !

भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने संस्कार, बुद्धि और परिवेश के अनुरूप अलग-अलग भगवान की पूजा करने के लिये अलग-अलग पूजा पद्धति को स्वीकारने के लिये स्वतंत्र है ! उसे कभी भी नियंत्रित करने का विचार प्रकृति की विभेदात्मक व्यवस्था में सीधा हस्तक्षेप है ! जो प्रकृति के सामान्य सिद्धांतों के विपरीत है !

इस दृष्टिकोण से भी संपूर्ण विश्व में वर्तमान धर्म स्थलों पर लगाये जाने वाले प्रतिबंध कहीं विश्व सत्ता के षडयंत्र तो नहीं है ! इस पर भी विचार किया जाना चाहिये !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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