रावण का दयालु चरित्र : Yogesh Mishra

स्वयं महर्षि वाल्मीकि ने रावण की प्रशंसा करते हुये कहा है कि उनमें दस गुण थे ! जो उसके दस सिर का प्रतीक थे ! उनके अनुसार रावण महापंडित, महायोद्धा होने के साथ साथ सुन्दर, दयालु, तपस्वी, उदार हृदय के साथ दान वीर भी था !

तोरवे रामायण के अनुसार भी जब रावण युद्ध के लिये प्रस्थान किया तो उसके पूर्व उसने अपनी समस्त सम्पत्ति युद्ध में मरे सैनिकों के विधवाओं में बाँट दीं और सभी कैदियों को रिहा कर दिया था ! उसने जनता के मध्य यह घोषणा की थी कि जो व्यक्ति इस युद्ध से भयभीत होकर लंका छोड़ कर जहाँ जाना चाहता है, उसे वहां शासकीय ख़र्चे पर वहां भिजवा दिया जायेगा और भेजा भी !

अरब के मक्केश्वर महादेव की स्थापना के बाद वहां की संस्कृति उसी ने बसायी थी ! जिसकी संरक्षिका रावण के न रहने के बाद सूपनखा काफी समय तक रही ! जिसने अपने जीते जी विभीषन और राम को कभी भी अरब क्षेत्र में नहीं घुसने दिया ! यहाँ के ब्राह्मणों को इसीलिये मय ब्राह्मण कहा गया क्योंकि वह लोग माया विज्ञान की समझ रखते थे ! उन्होंने भविष्य पुराण की रचना की ! जिसमें वर्णित भविष्यवाणी आज भी सत्य हो रही हैं ! इस संस्कृति को बाद में बौद्धों ने नष्ट कर दिया ! जिसके परिणाम स्वरूप इस्लाम धर्म का जन्म हुआ !

अर्थात राम भी जग आलोचना से दुखी होकर अपने नागरिकों को बेसहारा छोड़ कर सरयू में आत्म हत्या कर ली थी किन्तु रावण ने मरते वक्त तक कभी जनता का साथ नहीं छोड़ा !

यह रावण के तपोबल का पता था कि रावण के शासनकाल में लंका साम्राज्य में कभी सूखा नहीं पड़ा जबकि राजा दशरथ और राजा जनक दोनों ही अपने शासनकाल में अकाल से ही जूझते रहे ! रावण के राज्य में कभी लंका साम्राज्य में भूकंप नहीं आया ! सुनामी नहीं आयी अर्थात किसी भी तरह की कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आयी !

लंका का प्रत्येक नागरिक नित्य प्रातः यजुर्वेद के शुक्ल पक्ष से रुद्र अभिषेक करता था ! तभी लंका में दिनचर्या शुरू होती थी ! वहां का प्रत्येक नागरिक 11 तोला सोने का शिवलिंग सोने की चैन के साथ अपने गले में धारण करता था और प्रत्येक नागरिक के घर पर 11 किलो सोने का शिवलिंग हुआ करता था ! यह सोना पहनने की परंपरा आज भी दक्षिण भारत में पाई जाती है !

रावण के राज्य में कभी किसी भी नागरिक से कोई “कर” नहीं लिया जाता था और उसके साम्राज्य में नागरिकों के जीवन निर्वाह के लिये सभी संसाधन राजकोष से दिये जाते थे ! उसके साम्राज्य में सभी गुरुकुलों का संपूर्ण व्यय रावण स्वयं उठाता था !

रावण के साम्राज्य में सभी राजमार्ग सुव्यवस्थित एवं अपराध विहीन थे ! किसी भी तरह का कोई भी अपराध रावण के साम्राज्य में कभी नहीं हुआ ! रावण के साम्राज्य की परिधि श्रीलंका से लेकर अफ्रीका और अफ्रीका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक थी ! जिसे राम रावण युद्ध के दौरान राम ने बड़े-बड़े परमाणु हमले करके समुद्र में डुबो दिया था !

वर्तमान लंका रावण साम्राज्य की मात्र राजधानी थी ! शेष रावण साम्राज्य आज ही हिंद महासागर में अवशेष के रूप में विद्यमान है !

रावण के साम्राज्य में तंत्र, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष, अंतरिक्ष विज्ञान, वायुयान विज्ञान, मनोविज्ञान, वेद, व्याकरण के साथ साथ युद्ध कला आदि की उच्चतम शिक्षा रावण के व्यय पर पूरी दुनियां के छात्रों को नि:शुल्क दी जाती थी ! जिसे प्राप्त करने के लिये पूरे विश्व से छात्र “रक्ष प्रदेश” आया करते थे ! जिसके संचालन का दायित्व कुंभकरण के पास था जोकि मूलतः अति विद्वान और वैज्ञानिक था ! इसी वजह से वह रावण के दरबार में अधिक समय नहीं दे पाता था ! जिसको वैष्णव लेखकों ने बतलाया कि वह आलसी था और सदैव सोता रहता था !
रावण केवल अपने परिवार का ही नहीं बल्कि अपने संपूर्ण खानदान का पालन पोषण करता था ! शास्त्रों के अनुसार उसके संपूर्ण खानदान में 1 लाख पुत्र पुत्रियां तथा सवा लाख नाती पोते थे ! जिन सभी का खर्चा रावण स्वयं उठाता था और उसके बदले में उन्हें सम्मान के साथ अपने राजकीय पदों पर भी नियुक्त करता था !

रावण के शासनकाल में शिक्षा और चिकित्सा पूरी तरह से निशुल्क थी ! व्यापार व्यवसाय के लिये व्यक्ति को सदैव राजकोष से सहायता मिलती रहती थी ! रावण के साम्राज्य के व्यापारी पूरी दुनिया में आधुनिकतम तकनीकी के सहयोग से व्यापार करते थे ! जिससे देवलोके के व्यापारी सदैव परेशान रहते थे !

रावण की यही सब दक्षता और कुशलता देवताओं से देखी नहीं जाती थी ! इसलिये इंद्र के नेतृत्व में देवताओं ने एक बड़ा षड्यंत्र रच कर रावण की कुल परिवार सहित हत्या कर दी और उसे धर्म युद्ध का नाम दे दिया !

इस सामूहिक हत्या के पीछे और भी बहुत से गहरे षड्यंत्र थे ! जिन्हें हमने अपने पूर्व के अलग-अलग लेखों में लिख रखे हैं ! जो मेरी वेबसाइट पर उपलब्ध है !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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