इस्लाम के प्रणेता मोहम्मद साहब का देहांत 632 ईसवी में हुआ ! उस घटना के बाद 20 बरस के भीतर भीतर अरब में उदयीमान दस्युदल ने भारत के पश्चिमी सीमांत तक समस्त राष्ट्रों तथा संस्कृतियों का दलन कर डाला ! इस प्रकार विध्वस्त होने वालों में प्राचीन तथा शक्तिशाली पारसीक साम्राज्य प्रमुख था ! किंतु भारतवर्ष के सीमांत को लांघने में इस्लाम के दस्युदल को सत्तर वर्ष तक दुर्दांत संघर्ष करना पड़ा !
सिंधु, सौवीर तथा गंधार के छोटे-छोटे हिंदू राज्यों ने दस-बारह बार बगदाद से भेजी गई नई-नई सेनाओं को मार भगाया ! यह समस्त वृतांत तत्कालीन तथा परवर्ती मुसलमान इतिहासकारों द्वारा लिखित इतिहास-ग्रंथों में विस्तरश: उपलब्ध है ! तदनंतर 712 ईसवी में अरब सेना सिंधु देश में प्रवेश पा गई और उस परवर्ती काल में उसने रुक-रुक कर पूर्व में उज्जैन, उत्तर में कांगड़ा तथा दक्षिण की ओर नवसारी तक धावे किये ! वह सेना किस प्रकार हिंदू शौर्य के सामने पराजित हुई और अन्ततः मुल्तान तथा मानशुरा में चारों ओर से घिर कर बैठ गई ! यह सब इतिहासबद्ध है !
किंतु यह बात इतिहास में नहीं मिलती कि हिंदू समाज ने इन सेनाओं का प्रवर्तन करने वाले इस्लाम के विषय में क्या सोचा-समझा ! यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय इस्लाम ने आत्मपरिचय देने में कोई कसर छोड़ रखी थी ! पराजय के उपरांत आत्मसमर्पण करने वाले सैन्य दल का संहार, अनेक सहस्त्र स्त्री-पुरुषों को बंदी बनाकर बगदाद भेजना व नीलाम करना, अबलाओं के साथ बलात्कार, मंदिरों का ध्वंस, धर्मग्रंथों का अग्निकांड, देव मूर्तियों का भंजन, संपत्ति का अपहरण, अरबों का यह समस्त कार्यकलाप मुसलमान इतिहासकारों ने इस्लाम की महान विजय मानकर स्तवित किया है ! साथ ही कुरान के हवाले भी दिए हैं, जिनके अनुसार यह सब करना इस्लाम के लिए अपरिहार्य है ! किंतु हिंदू समाज के तत्कालीन मनीषियों ने यह सब दुष्कर्म देख-सुन कर भी इस्लाम के विषय में कोई निष्कर्ष निकाला हो, इसका कोई भी सूत्र इतिहास में कहीं नहीं मिलता !
पारस्परिक युद्ध भारतवर्ष में निरंतर होते रहते थे ! ग्रीक, शक तथा हूण जातियों के द्वारा बाहर से भी भारत पर कई आक्रमण हुए थे, जिनका वर्णन इतिहासग्रंथों में मिलता है ! किंतु इस्लाम की सेनाओं ने जो दस्युलीला प्रस्तुत की वह हिंदू समाज के लिए सर्वथा अभूतपूर्व थी ! आत्मसमर्पण करने वालों का संहार, पराजित लोगों को बंदी बनाकर नीलामी करना, स्त्रियों का अपमान, पराजित लोगो को लूट लेना, ये सब कुकृत्य भारतीय परंपरा में अभी तक अचिंतनीय थे ! और सबसे अधिक अचिंतनीय यह बात थी कि अरब सेनाओं ने यह समस्त कुकृत्य अपने धर्म-शास्त्रों की शब्दशः दुहाई देकर किये थे ! फिर भी भारतवर्ष के मनीषियों ने इस अभूतपूर्व घटना की कोई समीक्षा नहीं की !
तत्कालीन तथा परवर्ती साहित्य और शिलालेखों में हिंदू राजाओं के उस अतुल शौर्य का लेखा-जोखा तो मिलता है जो उन लोगों ने इस्लामिक सेनाओं के समक्ष दिखलाया, किंतु अरब सेनाओं की आततायी-वृति के विषय में किसी मनन-चिंतन का कोई संकेत नहीं मिलता ! यह नहीं कहा जा सकता कि उस काल में भारतवर्ष मनीषियों से विहीन था ! आदि शंकराचार्य का लीलाकाल तो अरब आक्रमण का समसामयिक माना जाता है ! और भी अनेक मनीषियों- बौद्ध, जैन, शैव, वैष्णव, शाक्त, तांत्रिक, हठ-योगी का विशद वर्णन उस काल में है ! यह संभव नहीं है कि इनमें से किसी ने भी इस्लाम का नाम नहीं सुना हो, अथवा अरब सेनाओं द्वारा किये गए कुकृत्य का समाचार न पाया हो ! किंतु ये सब मनीषी “ब्रह्मा सत्यं जगत मिथ्या” के परे किसी भी स्थापना का साक्षात्कार नहीं कर पाये !
स्यात मिथ्या जगत में होने वाला दुराचार उनके निकट माया से अधिक कुछ नही था ! माया को लेकर उहापोह का कारण स्यात वह लोग नहीं देख पाये ! प्रथम पराक्रम में ही मुंह की खाने के बाद इस्लाम की सेनाओं ने तो 200 वर्ष तक भारत की ओर दोबारा मुख नहीं मोड़ा ! किंतु इस्लाम के कुछ तथाकथित संत उत्तर भारत के अनेक नगरों तथा ग्राम-अंचलों में आ बसे ! मुसलमान इतिहासकार साक्षी हैं कि हिंदू राजाओं तथा जनगण ने इन बगुलाभगतों का कैसा स्वागत किया तथा किस प्रकार मस्जिद तथा खानकाह बनाने के लिए उनको भूमि और धन दिया ! यह बगुलाभगत यत्र-तत्र कुछ हिंदुओं को मुसलमान बनाने लगे तो भी किसी ने इनको नही टोका ! इनके टोने-टोटके, जंतर-मंतर तथा चमत्कारों ने तो बहुत से हिंदुओं का मन मोह लिया ! इस बात की ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि ठीक इसी प्रकार के बगुलाभगतों ने कुछ समय पूर्व आगे बढ़ती हुई अरब सेनाओं की अपार स्तुति गाई थी और उनके द्वारा किये गए अनाचार को इस्लाम द्वारा सर्वथा विहित भी ठहराया था !
अतएव यह आश्चर्य का विषय नहीं कि इन्ही मुस्लिम संतों ने आगे चलकर इस्लाम के लिए भारत में जासूसी की और महमूद गजनवी को कांगड़ा, स्थानेश्वर, मथुरा, कन्नौज, कालिंजर, वाराणसी और सोमनाथ का मार्ग दिखाया ! मुसलमान इतिहासकार मुस्लिम संतों द्वारा की गई इस्लाम की इस सेवा का गुणगान करते हैं किंतु हिंदू समाज आज भी इन जघन्य जासूसों की मजारों पर जाकर बड़े भक्ति-भाव से फूल-मालाएं चढ़ाता है, कव्वाली सुनता है ! इसका एकमात्र कारण यही रहा कि हिंदू समाज ने इस्लाम को धर्म मान लिया है !