जानिये इजराइल के 1/10 के सिद्धान्त को : Yogesh Mishra

भारत की आजादी के बाद विश्व के धरातल पर स्थापित हुआ छोटा सा देश इजरायल आज विश्व की महाशक्तियों में गिना जाने लगा है ! इसके पीछे इजराइल के नागरिकों का राष्ट्र के प्रति समर्पण और इसराइल के योजनाकारों के राष्ट्र रक्षा की बेहतरीन नीति है ! तभी इतने कम समय में इजराइल जैसा छोटे से देश ने शक्ति और सामर्थ के विषय में भारत को भी पीछे छोड़ दिया है !

इजराइल के पूरी की पूरी रणनीति पर विचार करने के बाद मुझे जो उनका सबसे सटीक सिद्धांत समझ में आया वह है “1/10 का सिद्धांत” अर्थात किसी भी राष्ट्रीय विषय पर यदि चिंतन किया जा रहा है और उनमें से 10 में से 10 व्यक्ति किसी एक नीति का समर्थन कर रहे हैं, तो इसराइल के अंदर उस कमेटी को भंग कर दिया जाता है और तत्काल नयी समिति गठित की जाती है या 10 में से 1 व्यक्तियों को हटाकर किसी एक ऐसे व्यक्ति को नीतिकार मंडल में जोड़ा जाता है जो बाकी के 9 व्यक्तियों के विपरीत सोच रखता हो ! अर्थात जो सामान्य नीतिकारों के विरोध में अपनी विचारधारा प्रमाणों के साथ रख सके और फिर उस विरोधी विचारधारा पर गहन चिंतन किया जाता है !

होता यह है कि जब किसी भी राष्ट्र का आम आवाम भावुकता या दबाव में निर्णय लेने लगता है ! तो प्रायः बहुमत के निर्णय भी गलत हो जाते हैं ! क्योंकि एक ही दिशा में निरंतर कार्य करने वाले व्यक्ति के बौद्धिक क्षमता की एक सीमा है और व्यक्ति का लालच असीमित है ! ऐसी स्थिति में किसी योजना समिति में एक ही मत के व्यक्ति जब एक स्थान पर बैठ कर चिंतन करते हैं, तो लोग एक दूसरे के दबाव में आ जाते हैं और उस चिंतन के दौर में सभी एक समान विचार वाले व्यक्ति के होने के कारण विपरीत विचारधारा पर चिंतन ही विलुप्त हो जाता है !

ऐसी स्थिति में यहूदियों ने अनेक बार धोखा खाया था और अपने सर्वस्व को लुटा दिया ! अतः वर्तमान समय में यहूदियों ने एक सिद्धांत विकसित किया कि यदि किसी भी विषय पर 10 में से एक व्यक्ति भी विरोध नहीं कर रहा है तो इसका मतलब हमारा निर्णय गलत है क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी भी विषय पर विरोधी दृष्टिकोण न हो !

शायद यही इन्हीं यहूदियों के निरंतर विस्तार की राजनीतिक वजह है ! विरोध सदैव स्वागत किये जाने योग्य होता है, इसीलिये हमारे यहां विद्वान चिंतकों ने कहा है कि

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय !
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय !!

अर्थात: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिये क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बतला कर हमें स्वभाव को साफ कर देता है।

किंतु भारत का यह दुर्भाग्य है कि भारत में वर्तमान में “अंध भक्त दर्शन” चल रहा है ! जिसमें राजनीतिक दलों के मुखियाओं के किसी भी निर्णय पर कोई भी नकारात्मक टिप्पणी किया जाना “अक्षम्य सामाजिक अपराध” है ! चाहे भले ही राष्ट्र का सर्वनाश ही क्यों न हो जाये !

इसी स्थिति ने ही आज भारत को सर्वनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है ! इसीलिये आज संपन्न व्यक्ति देश छोड़कर भाग गये हैं और अक्षम व्यक्ति दो वक्त की रोटी के लिये परेशान है ! लोगों के पास मेहनत से बनायीं गयी संपत्ति तो है लेकिन उसे खरीदने वाला कोई नहीं है !

विद्यालय और विद्यालयों में फीस तो ली जा रही है लेकिन वहां पढ़ाने वाला कोई नहीं है ! आय शुन्य है लेकिन “कर” पूरी प्रशासनिक ताकत से वसूला जा रहा है ! समाज में कहीं किसी की कोई भी जिम्मेदारी निर्धारित नहीं है ! पूरी तरह से अराजकता और लूट का वातावरण बन गया है ! किंतु इन विषयों पर यदि किसी ने सामान्य टिप्पणी भी कर दी तो उसे हवालात का रास्ता दिखा दिया जाता है ! अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार की हत्या आज के संविधान के रक्षकों द्वारा की जा चुकी है ! क्या विविधता से संपन्न देश इस तरह के छोटे और संकीर्ण विचारों से चलेगा !

राजनीतिज्ञ का ह्रदय बड़ा होना चाहिये, तभी राष्ट्र बड़ा होता है ! क्योंकि अंततः राष्ट्र की सभी संवैधानिक शक्तियां तो इस लोकतंत्र में जीते हुये राजनीतिज्ञों में ही निहित हैं ! जो देश को चलाते हैं !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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